Women’s Chess World Cup: दिव्या देशमुख भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गई हैं जिन्होंने FIDE वूमेंस चेस वर्ल्ड कप का खिताब जीता है। सिर्फ 19 साल की उम्र में दिव्या ने यह उपलब्धि हासिल कर देश को गर्व से भर दिया।
उन्होंने फाइनल मुकाबले में भारत की ही अनुभवी ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी को हराकर यह गौरवशाली जीत दर्ज की।
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Women’s Chess World Cup दिव्या ने कोनेरू हम्पी को हराया
फाइनल मुकाबला जॉर्जिया के बाटुमी शहर में खेला गया। शनिवार और रविवार को दोनों खिलाड़ियों के बीच क्लासिकल राउंड हुआ, जो 1-1 की बराबरी पर समाप्त हुआ। इसके बाद सोमवार 28 जुलाई को रैपिड राउंड में भिडंत हुई,
जिसमें दिव्या देशमुख ने शानदार खेल दिखाते हुए कोनेरू हम्पी को हरा दिया। जैसे ही जीत मिली, दिव्या भावुक हो गईं और उनकी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले।
दोनों फाइनलिस्ट भारतीय
दिव्या की यह जीत इसलिए भी खास है क्योंकि पहली बार चेस वर्ल्ड कप के फाइनल में दोनों फाइनलिस्ट भारतीय थीं। यह भारत के लिए गर्व की बात है कि न सिर्फ एक खिलाड़ी बल्कि दोनों खिलाड़ी भारत की बेटियां थीं।
इससे यह साबित होता है कि भारत की महिलाएं अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शतरंज जैसे बौद्धिक खेल में भी पूरी मजबूती से खड़ी हैं।
सेमीफाइनल में चीन को हराया
सेमीफाइनल में दिव्या देशमुख ने चीन की मजबूत खिलाड़ी टैन झोंग्यी को हराकर फाइनल में प्रवेश किया था। वहीं कोनेरू हम्पी ने चीन की ही टिंगजी लेई को हराया था। यानी भारत की दोनों बेटियों ने चीन की टॉप खिलाड़ियों को हराकर फाइनल तक का सफर तय किया, जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।
दिव्या देशमुख का यह खिताब भारत की नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। वह पहले ही भारत की सबसे तेज़ उभरती शतरंज प्रतिभाओं में गिनी जाती थीं, लेकिन अब इस ऐतिहासिक जीत ने उन्हें देश के खेल इतिहास में अमर कर दिया है।
उनकी यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं है, यह मेहनत, धैर्य और आत्मविश्वास की जीत है। उन्होंने यह दिखा दिया कि अगर हौसले बुलंद हों, तो उम्र कोई रुकावट नहीं बन सकती।