Thursday, November 21, 2024

BJP ने संघ से क्यों बनाई दूरी, जो लोकसभा चुनाव पर पड़ी भारी

BJP: 400 सीटों का दावा करने वाली करने वाली भाजपा करीब आधी सीटों तक में सिमट के रह गई है, इसको लेकर लोगों के कई तरह के बयान सामने आ रहे है, लेकिन संघ से दूरी भी इसकी एक बड़ी वजह बतायी जा रही है। ये एक ऐसा चुनाव है जिसमें BJP ने प्रत्याशियों के चयन से लेकर चुनावी रणनीतियां तैयार करने तक में संघ से सलाह नहीं ली गई थी और खुद के कार्यक्रमों तक ही समेटे रखा। जिसका बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा।

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BJP और संघ में दूरी

बता दें कि यह पहला ऐसा चुनाव था जिसमें चुनावी प्रबंधन में संघ परिवार और भाजपा में दूरी दिखी। भाजपा ने किसी भी फैसले में संघ से सलाह तक लेना जरूरी नहीं समझा। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मौन रहना ही सही समझा। आमतौर पर चुनाव में जमीनी प्रबंधन में सहयोग करने वाले संघ के स्वयंसेवक इस चुनाव में शायद ही कहीं नजर आये हो। साथ ही जिले में न तो संघ और न ही बीजेपी की समन्वय समितियां दिखाईं दी। ना ही डैमेज कंट्रोल के लिए छोटे-छोटे स्तर पर अमूमन होने वाले संघ परिवार की बैठके होती नजर आईं। कम मतदान पर लोगों को घर से निकालने वाले समूह भी इस चुनाव में कहीं नजर नहीं आए।

नड्डा का बयान संघ के लोगों को किया उदास

ऐसे में ये बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो संघ ने चुनाव से किनारा कर लिया। संघ से जुड़े कुछ वर्तमान, पूर्व पदाधिकारियों व प्रचारकों के अनुसार इसकी मुख्य वजह भाजपा के एकांगी निर्णय और संघ परिवार के संगठनों के साथ संवादहीनता रही। माना जा रहा है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के बयान “भाजपा अब पहले की तुलना में काफी मजबूत हो गई है। इसलिए उसे अब संघ के समर्थन की जरूरत नहीं है” इस बयान ने भी स्वयंसेवकों को उदासीन कर दिया।

 मतदान प्रतिशत में दिखी कमी

संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चुनाव से पहले प्रदेश भाजपा ने कई क्षेत्रीय अध्यक्षों के साथ ही जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की। इसमें भी संघ परिवार के फीडबैक को नहीं लिया गया। खासतौर से गोरक्ष प्रांत और काशी के क्षेत्रीय अध्यक्ष और कुछ पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर संघ ने नाराजगी व्यक्त की थी। वहीं चुनाव के दौरान काशी समेत कई लोकसभा क्षेत्रों में भी मतदान प्रतिशत में कमी देखने को मिली।

बहुत से घरों तक नहीं पहुंची पर्चियां

संघ से दूरी बनाने का दुष्परिणाम यह भी रहा कि जमीनी स्तर पर काम करने वाला बीजेपी का संगठन भी पूरी तरह से सक्रिय नहीं रहा। ऐसे में संघ से बेहतर समन्वय नहीं बनने की वजह से बीजेपी की अधिकांश बूथ कमेटियां व पन्ना प्रमुख भी निष्क्रिय बैठे रहें। साथ ही संघ के स्थानीय कार्यकर्ता निरंतर जनता के बीच काम करते हैं और संगठन से जनता को जोड़ने में उनकी प्रमुख भूमिका होती है। पार्टी और संघ में समन्वय नहीं होने की वजह से दोनों तरफ के कार्यकर्ता उदासीन नजर आएं। नतीजा यह रहा कि तमाम घरों व परिवारों तक तो पर्चियां भी नहीं पहुंची।

सभाओं में दिखा चेहरा

बात की जाएं तो इस बार बीजेपी ने हर चुनाव से हटकर हर लोकसभा क्षेत्र के लिए प्रवक्ता नियुक्त किया था। जो कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए। इसकी वजह यह बताई जा रही है की ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों में बाहरी नेताओं को प्रभारी बनाया गया था, जिन्हें न तो संबंधित लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक जानकारी थी और न ही जातीय समीकरण व मुद्दों की। मतदाताओं के बीच भी बाहरी प्रभारियों की कोई पकड़ नहीं थी। लिहाजा तमाम प्रभारियों ने जमीन पर काम करने के बजाय सिर्फ क्षेत्रों में होने वाले बड़े नेताओं के सभाओं में चेहरा दिखाने तक ही खुद को सीमित रखा।

Madhuri Sonkar
Madhuri Sonkarhttps://reportbharathindi.com/
ETV Bharat में एक साल ट्रेनिंग कंटेंट एडिटर के तौर पर काम कर चुकी हैं। डेली हंट और Raftaar News में रिपोर्टिंग, V/O का अनुभव। लाइफस्टाइल, इंटरनेशनल और बॉलीवुड न्यूज पर अच्छी पकड़।
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