Thursday, July 31, 2025

वाशिंगटन पोस्ट कर रहा था ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत विरोधी एजेंडा, खुली पोल

ऑपरेशन सिंदूर के समय जब भारत ने आतंक के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की, उसी समय पश्चिमी मीडिया का एक वर्ग इसे भारत विरोधी प्रोपेगेंडा के रूप में भुनाने लगा।

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वॉशिंगटन पोस्ट ने भारतीय मीडिया पर गलत सूचनाएँ फैलाने का आरोप लगाया, लेकिन खुद ही उसी जाल में फँस गया।

वॉशिंगटन पोस्ट ने स्वीकारी अपनी गलती, लेख में किया संशोधन

4 जून 2025 को प्रकाशित रिपोर्ट में वॉशिंगटन पोस्ट ने दावा किया था कि भारत-पाक संघर्ष के दौरान भारतीय न्यूज़ चैनलों ने फर्जी खबरें, वीडियो और नाटकीय दावे प्रसारित किए।

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पत्रकार करिश्मा मेहरोत्रा की इस रिपोर्ट में भारतीय मीडिया पर निष्पक्षता भंग करने का आरोप लगाया गया था, लेकिन अब उसी लेख में उन्होंने चुपचाप एक सुधार जोड़ा है।

‘प्रसार भारती’ पर लगाया गया आरोप निकला झूठा

रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया कि एक भारतीय पत्रकार को व्हाट्सऐप पर यह संदेश मिला कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख को तख्तापलट में गिरफ्तार कर लिया गया है।

और यह मैसेज प्रसार भारती से आया था। लेकिन अब वॉशिंगटन पोस्ट ने माना है कि यह सूचना न तो सरकारी थी और न ही पुष्टि योग्य।

आरोपों की बुनियाद ही संदिग्ध, प्रसार भारती ने भी किया खंडन

वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में उल्लेख था कि मैसेज प्रसार भारती के किसी “कर्मचारी” ने भेजा, लेकिन उसका नाम, पद या स्रोत की प्रामाणिकता कहीं नहीं बताई गई।

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दूसरी ओर, प्रसार भारती ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी संस्था ने कोई ऐसी सूचना जारी नहीं की और उनका फैक्ट-चेक सिस्टम बहुत कठोर है।

TV9 भारतवर्ष के खिलाफ झूठे आरोप हटाए गए

रिपोर्ट में TV9 भारतवर्ष पर यह आरोप लगाया गया था कि उसने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के आत्मसमर्पण की खबर चलाई। लेकिन बाद में इस झूठे आरोप को भी लेख से चुपचाप हटा लिया गया। यह दर्शाता है कि वॉशिंगटन पोस्ट ने बिना पर्याप्त पुष्टि के गंभीर आरोप लगाए।

सूडान के दृश्य और हिंदी शब्दों के अनुवाद में भारी चूक

रिपोर्ट में यह भी गलत दावा किया गया कि भारतीय चैनलों ने सूडान संघर्ष के दृश्य प्रसारित किए, जो असत्य साबित हुआ। साथ ही हिंदी शब्दों का गलत अनुवाद भी रिपोर्ट की कमजोरी बना।

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जैसे “तबाही” का अर्थ अफरा-तफरी होता है, लेकिन रिपोर्ट में इसे “पूरी तरह बर्बाद” के रूप में दर्शाया गया।

भारतीय भाषाओं को न समझने की कीमत चुकाई वॉशिंगटन पोस्ट ने

वॉशिंगटन पोस्ट ने स्पष्ट रूप से किसी AI या Google Translate जैसे टूल से हिंदी का शब्दशः अनुवाद किया, जिससे अर्थ का अनर्थ हो गया।

यह साफ दर्शाता है कि भारतीय संदर्भ की समझ के बिना लिखी गई रिपोर्ट विश्वसनीयता के मानकों पर खरी नहीं उतरती।

पश्चिमी मीडिया की पत्रकारिता पर सवाल, आत्ममंथन की ज़रूरत

जिस रिपोर्ट को भारतीय मीडिया की गलतियों को उजागर करने के लिए लिखा गया था, वह खुद ही एक उदाहरण बन गई कि कैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी झूठी सूचनाओं का हिस्सा बन सकते हैं।

वॉशिंगटन पोस्ट को अब अपनी पत्रकारिता और संपादकीय प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर पुनर्विचार करना होगा।

पत्रकारिता में निष्पक्षता की ज़रूरत सबको

इस पूरे प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जब भी कोई संगठन दूसरे पर अंगुली उठाए, तो उसे पहले अपने तथ्यों और नैतिक मापदंडों की भी जाँच करनी चाहिए।

पत्रकारिता का मूल आधार सत्य है, न कि पूर्वाग्रह और सनसनी। वॉशिंगटन पोस्ट की यह गलती भारतीय मीडिया नहीं, बल्कि स्वयं उसकी अपनी जवाबदेही को कठघरे में खड़ा करती है।

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