Waqf Amendment Act: वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गहन बहस छिड़ गई है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि अगर 200 साल पहले किसी समुदाय को कोई जमीन वक्फ के तौर पर दी गई थी, तो अब सरकार उसे कैसे वापस मांग सकती है।
इस पर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर ऐसा ही तर्क मान लिया जाए, तो क्या लखनऊ का ऐतिहासिक इमामबाड़ा भी सरकार वापस ले लेगी?
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Waqf Amendment Act: कब्रिस्तानों का जिक्र
सुप्रीम कोर्ट की पीठ में मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह मौजूद थे। याचिकाकर्ताओं की ओर से सिब्बल ने कहा कि सरकार द्वारा पुरानी वक्फ संपत्तियों पर दोबारा दावा करना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि इससे एक पूरे समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर असर पड़ता है। उन्होंने विशेष रूप से कब्रिस्तानों का जिक्र किया जो 200 वर्षों से अस्तित्व में हैं और अब सरकार कह रही है कि वे जमीनें उसकी हैं।
सरकारी जमीनों को वापस किया जाए
सिब्बल ने तर्क दिया कि मुस्लिम समुदाय ने ऐतिहासिक रूप से सरकार से कब्रिस्तानों और अन्य धार्मिक उपयोगों के लिए जमीनें ली थीं। अब सरकार ये कह रही है कि वे जमीनें सरकारी थीं और उन्हें वापस किया जाए। उनका कहना था कि यह प्रक्रिया गलत है और इससे धार्मिक संपत्तियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
100 साल पुराने दस्तावेज उपलब्ध नहीं
मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर 1923 के वक्फ एक्ट के तहत इन संपत्तियों का पंजीकरण कराया गया होता, तो ऐसी स्थिति नहीं आती। उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था आज से सौ साल पहले भी थी। इस पर सिब्बल ने स्वीकार किया कि रजिस्ट्रेशन की जरूरत थी, लेकिन यह भी जोड़ा कि 100 साल पुराने दस्तावेज अब उपलब्ध नहीं हैं और उनकी मांग करना अव्यावहारिक है।
वक्फ बोर्ड का नियंत्रण हटेगा
जस्टिस मसीह ने चिंता जताई कि अगर कोई व्यक्ति वक्फ प्रॉपर्टी पर दावा करता है और जांच शुरू हो जाती है, तो क्या तब तक वक्फ का कब्जा समाप्त हो जाएगा? इस पर सिब्बल ने सहमति जताई और कहा कि यह सबसे बड़ी दिक्कत है। जांच शुरू होते ही वक्फ बोर्ड का नियंत्रण हट जाएगा और फाइनल रिपोर्ट तक संपत्ति सरकार के कब्जे में रहेगी।
धार्मिक संपत्तियों पर संकट
याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्ति यह है कि नए कानून में जांच और निर्णय की पूरी प्रक्रिया सरकार के हाथ में दे दी गई है, जिससे निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। उनका कहना है कि सरकार खुद वादी भी है और वही फैसला भी करेगी। इससे धार्मिक संपत्तियों की स्वायत्तता पर संकट खड़ा हो सकता है।
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