Friday, June 6, 2025

Virat Kohli: RCB का जश्न बदला मातम में, कोहली विदेश रवाना

Virat Kohli: रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की 18 साल की लंबी प्रतीक्षा खत्म ट्रॉफी उठाने के साथ हुई है। आईपीएल 2025 में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की ऐतिहासिक जीत का जश्न देशभर में मनाया गया। बेंगलुरु की सड़कों पर लाखों लोग उमड़ पड़े, हर चेहरा गर्व और उल्लास से भरा हुआ था।

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लेकिन इस जश्न के बीच एक ऐसा खौफनाक हादसा हो गया, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। भीड़ में मची भगदड़ में 11 मासूम लोगों की जान चली गई और कई घायल हो गए। इनमें बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं भी थीं। यह वो लोग थे जो सिर्फ़ अपनी टीम की जीत का हिस्सा बनने आए थे।

Virat Kohli: RCB का रातों रात स्टार बना दिया

लेकिन जब ये लोग अपनों को खो रहे थे, उसी समय उसी टीम के सबसे बड़े सितारे विराट कोहली, अपनी पत्नी अनुष्का शर्मा के साथ चुपचाप देश छोड़कर लंदन रवाना हो चुके थे। न कोई संवेदना, न कोई शोक संदेश, और न ही कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया।

यह दृश्य जितना दुखद था, उतना ही आंखें खोलने वाला भी। शायद इसी वजह से विजनरी विजय माल्या ने कोहली को इतनी कम उम्र में, जब वह बिल्कुल कच्चे थे, आरसीबी में जगह दी थी और उन्हें RCB का रातों रात स्टार बना दिया गया।

फैंस की अहमियत सेलेब्रिटी के बाल जैसी

यह घटना कई सवाल उठाती है क्या हम केवल भीड़ हैं? क्या हमारी भावनाएं, हमारा जीवन और हमारी मौजूदगी सिर्फ़ स्टेडियम में ताली बजाने और सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करने तक सीमित है? विराट कोहली जैसे खिलाड़ी, जिनकी एक झलक के लिए लाखों लोग घंटों खड़े रहते हैं, क्या उनकी कोई सामाजिक जिम्मेदारी नहीं बनती?

सेलेब्रिटी की मौजूदगी पर उदासीनता

वास्तव में, यह पूरा वाकया उस मानसिकता को उजागर करता है जो भारतीय समाज में गहराई तक बैठी है सेलेब्रिटी भक्ति की मानसिकता। हम स्टार्स को भगवान की तरह पूजते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि वो भी इंसान हैं, और उनके भी नागरिक और नैतिक दायित्व होते हैं।

एक शिक्षित समाज होने के नाते अब समय आ गया है कि हम सेलेब्रिटीज़ को उनके काम तक सीमित रखें। क्रिकेटर को क्रिकेट के मैदान तक, अभिनेता को स्क्रीन तक। जब तक वो अभिनय या खेल रहे हैं, तालियां दीजिए,

लेकिन उनके निजी जीवन को पूजा का स्थान न दीजिए। क्योंकि जब आप मुसीबत में होते हैं, तब ये सेलेब्रिटी आपके साथ नहीं होते और न ही उन्हें होना ज़रूरी लगता है।

समाज के लिए उसका कोई मूल्य नहीं

यह भी समझने की जरूरत है कि भक्ति केवल धर्म तक सीमित नहीं होनी चाहिए। अगर किसी की भक्ति में ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का भाव नहीं है यानि सभी के सुख और शांति की भावना नहीं है तो वह भक्ति केवल निजी संतोष तक सीमित रह जाती है, समाज के लिए बेअसर होती है।

जो लोग इस हादसे में मारे गए, उन्हें शायद यह उम्मीद थी कि उनकी टीम, उनके हीरो, उनकी मौत पर कुछ तो कहेंगे। लेकिन उन्हें मिला — मौन। और यही मौन आज के भारत के सामाजिक ताने-बाने की विडंबना है।

लोग देश छोड़ने में देर नहीं करते

समाज को अब तय करना होगा कि वह किसे अपना नायक मानता है। वह जो जीत के बाद विदेश चला जाता है, या वह जो जीत के बाद भीड़ में अपनी जान गंवा देता है। अब वक्त आ गया है कि हम सम्मान दें, अंधभक्ति नहीं। और ध्यान रखें, जब आप किसी को सिर पर बैठाते हैं, तो उसके गिरने का झटका भी आपको ही लगता है।

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Madhuri Sonkar
Madhuri Sonkarhttps://reportbharathindi.com/
ETV Bharat में एक साल ट्रेनिंग कंटेंट एडिटर के तौर पर काम कर चुकी हैं। डेली हंट और Raftaar News में रिपोर्टिंग, V/O का अनुभव। लाइफस्टाइल, इंटरनेशनल और बॉलीवुड न्यूज पर अच्छी पकड़।
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