विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: 1885 से 1947 का काल आधुनिक भारत का सबसे निर्णायक और उथल-पुथल भरा दौर था। इसी काल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सभी प्रमुख अध्याय घटित हुए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आंदोलन का नेतृत्व किया, परंतु इसके भीतर नेतृत्व, उद्देश्य, रणनीति और कार्यपद्धति को लेकर गहरी खींचतान और उलझन बनी रही।
स्वतंत्रता संग्राम को प्रार्थना, विनती, संवैधानिक राजनीति, सत्याग्रह और धरना-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रमों में सीमित कर दिया गया।
यह एक प्रकार से पिकनिक-प्रदर्शन में बदल गया, जिसके सूत्रधार गांधीजी थे। विश्व के अन्य राष्ट्रों की तरह युवाओं की प्रचंड ऊर्जा को संगठित कर निर्णायक संघर्ष की दिशा में लगाने का साहस कभी नहीं दिखाया गया।
मुस्लिम लीग का उदय और कांग्रेस की घोर विफलता
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: 1906 में मुस्लिम लीग के गठन के बाद से ही मुस्लिम नेतृत्व ने साफ कर दिया था कि उनका उद्देश्य हिंदुस्तान का विभाजन है।
उनका तर्क था कि 600 वर्षों तक शासन करने के बाद उन्हें एक पृथक राष्ट्र का अधिकार है।
1906 से 1947 तक, जिन्ना और मुस्लिम लीग ने अलगाव की दिशा में हर ऐतिहासिक मोड़ का उपयोग किया।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: कांग्रेस ने इस पूरी अवधि में कभी भी मुस्लिम लीग की इस जिहादी, राष्ट्रविरोधी राजनीति का सशक्त प्रतिरोध नहीं किया। न कोई ठोस रणनीति बनी, न ही किसी निर्णायक संघर्ष की तैयारी।
गांधीजी ने अखंड भारत की रक्षा के लिए कभी आमरण अनशन तक का सहारा नहीं लिया, जबकि यही समय था जब जिन्ना की महत्वाकांक्षा को तोड़ा जा सकता था।
जिन्ना का उत्थान और कांग्रेस की आत्मघाती राजनीति
1933 में जिन्ना का राजनीतिक करियर पतन की ओर था। वे अवसाद में थे, परंतु कांग्रेस की कमजोरियों और गलतियों ने हालात पलट दिए।
1946 आते-आते जिन्ना इतिहास के सबसे शक्तिशाली अलगाववादी नेता बन गए। डायरेक्ट एक्शन डे और उससे पहले हुई कांग्रेस की चूकें इस त्रासदी के निर्णायक कारण बनीं।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: गांधीजी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने ऐसे निर्णय लिए जो भूल नहीं, बल्कि सुनियोजित अपराध थे।
नतीजा यह हुआ कि भारत का विभाजन हुआ, लाखों हिंदुओं का कत्ल, बलात्कार और विस्थापन हुआ, और पाकिस्तान का जन्म हुआ।
विभाजन के बाद का निरंतर विश्वासघात
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के निर्माण के साथ मुस्लिम नेतृत्व ने 622 ईस्वी से चली आ रही अपनी वैश्विक इस्लामी प्रतिज्ञा को सिद्ध कर दिया।
इसके बावजूद कांग्रेस ने कभी भी जिन 4 करोड़ से अधिक मुस्लिमों ने विभाजन का समर्थन किया, उन्हें दोषी नहीं ठहराया।
इसके विपरीत, स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने हिंदू आस्था केंद्रों और सांस्कृतिक प्रतीकों को कमजोर किया, मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया।
और खिलाफत आंदोलन की गांधीवादी राजनीति को ही आगे बढ़ाया। यही कारण है कि आज भी मुस्लिम समुदाय के प्रति राजनीतिक दलों का रवैया पूरी तरह तुष्टिकरणकारी है।
कांग्रेस का असली चेहरा
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: राष्ट्रीय आंदोलन के तथाकथित नायक, जिनका हम गुणगान करते हैं, उनमें राष्ट्रनिर्माण की प्रेरणा और दूरदर्शिता का घोर अभाव था।
सरदार पटेल को छोड़ दें तो बाकी नेतृत्व सत्तालोलुप, स्वार्थी और सांस्कृतिक रूप से खोखला था।
यह चेहरा कभी भी सांस्कृतिक और जातीय एकता के निर्माण के लिए तैयार नहीं था। इसने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर किया, बल्कि विभाजन के बाद भी बहुसंख्यक हिंदुओं को अपराधी ठहराने की परंपरा शुरू की।
आधुनिक भारत के इस दौर को पढ़ते समय श्रद्धा में डूबने की बजाय, आंख और कान खोलकर सच्चाई को देखना चाहिए।
1885 से 1947 और 1947 से 2014 तक का यह कालखंड आज भी हमारे चारों ओर फैला है, और इसकी असलियत किसी से छुपी नहीं है।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस: कांग्रेस का इतिहास हिंदुत्व दृष्टि से देखने पर एक राष्ट्रघाती साजिश की तरह सामने आता है।