देवव्रत महेश रेखे
भारत की वेद परंपरा में ऐसा चमत्कारिक दृश्य काशी ने सदियों बाद देखा। अहिल्यानगर महाराष्ट्र के 19 वर्षीय देवव्रत महेश रेखे ने शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिनी शाखा का समायोजित दण्डक्रम में निर्दोष 165 घंटे का कंठस्थ पारायण पूरा किया।

वह भी लगातार 50 दिन बिना ग्रंथ देखे 25 लाख से अधिक वैदिक पदों का अखंड उच्चारण करते हुए। यह उपलब्धि स्वतंत्र भारत में केवल दूसरी बार देखने को मिली।
काशी में अद्वितीय वेद साधना का समापन
देवव्रत की तप साधना के अंतिम दिवस पर काशी में विविध शैक्षणिक धार्मिक और परंपरागत संस्थानों ने संयुक्त रूप से दिव्य समारोह आयोजित किया।
जिस क्षण उन्होंने अंतिम पद का पारायण किया सभामंडप में उपस्थित विद्वत समाज खड़ा होकर दीर्घ समय तक उनके तप पराक्रम को प्रणाम करता रहा।

काशी के वरिष्ठ आचार्यों ने इसे आधुनिक भारत में वेद स्मृति की पुनर्स्थापना कहा और बताया कि इस स्तर का दण्डक्रम पारायण किसी एक व्यक्ति द्वारा करना विशाल तप दीर्घ साधना और अद्भुत स्मरण शक्ति का संकेत है।
पचास दिनों का तप और पच्चीस लाख से अधिक पद
दण्डक्रम पारायण के अंतर्गत वेद का उच्चारण सामान्य क्रम से नहीं बल्कि अत्यंत कठिन बहुस्तरीय विन्यास में किया जाता है जिसमें हर पद का संरचनात्मक विस्तार शामिल होता है।
देवव्रत ने यह कठिन साधना लगातार पचास दिनों में प्रतिदिन कई घंटों तक बिना किसी ग्रंथ सहायता के सिद्ध की।

काशी के विद्वानों ने बताया कि इतने लंबे समय तक बिना त्रुटि स्मरण स्वर घन जटा और विभिन्न रूपों को आत्मसात कर पाना अत्यंत दुर्लभ क्षमता है और यह परंपरा के शीर्ष स्तर पर स्थान रखने योग्य उपलब्धि मानी जाती है।
काशी के विद्वानों द्वारा दुर्लभ सम्मान
पूज्य डॉ. दिव्यचेतन ब्रह्मचारी गुरुजी ने देवव्रत को अपने कर कमलों से
1. चांदी की हनुमान चालीसा
2. प्रभु श्रीराम का विग्रह
3. मां भगवती का चंदन इत्र
प्रदान किया और वेद दीक्षा की दीर्घ परंपरा के अनुरूप आशीर्वाद दिया।
श्रृंगेरी शारदा पीठ के जगद्गुरु श्री शंकराचार्य की ओर से
1. स्वर्ण कड़ा
2. एक लाख रुपये की आशीर्वाद राशि
प्रेषित की गई जिस पर पूरे समारोह में भाव विभोर वातावरण छा गया। इसे काशी के आचार्यों ने वैदिक परंपरा के पुनरुत्थान का स्वर्णाक्षरी संकेत कहा।
दण्डक्रम विक्रमादित्य सम्मान से अलंकृत
कभी भी केवल अत्यंत उच्च कोटि के वेद पारंगत आचार्यों को प्रदान किया जाने वाला दण्डक्रम विक्रमादित्य सम्मान देवव्रत रेखे को दिया गया।
काशी की वरिष्ठ ब्राह्मणसभा ने कहा कि इस आयु में यह सम्मान प्राप्त करना अभूतपूर्व है और देशभर में युवा वैदिक अध्ययन के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
क्या होता है वेदों का दण्डक्रम परायण ?
१९ वर्षीय वेदपाठी ने शुक्ल यजुर्वेद माध्यदिन शाखा का दण्डक्रम पारायण किया। इन पाठों का परिचय यहां प्रस्तुत है –
||प्रकृति पाठ||
१ संहिता पाठ
२ पदपाठ
३ क्रमपाठ
||विकृति पाठ||
१ जटापाठ
२ मालापाठ
३ शिखापाठ
४ लेखपाठ
५ दण्डपाठ
६ ध्वजपाठ.
७ रथपाठ
८ घनपाठ.
१ संहिता पाठ
वेदमंत्र का यथावत् पाठ
अ॒ग्निमी॑ळे पु॒रोहि॑तं य॒ज्ञस्य॑ दे॒वमृ॒त्विज॑म् ।
होता॑रं रत्न॒धात॑मम् ॥
२ पदपाठ
पदच्छेद रूप में पाठ
अ॒ग्निम् । ई॒ळे॒ । पु॒रःऽहि॑तम् ।
य॒ज्ञस्य॑ । दे॒वम् । ऋ॒त्विज॑म् ।
होता॑रम् । र॒त्न॒ऽधात॑मम् ॥
३ क्रम पाठ
पदक्रम- १ २ | २ ३| ३ ४| ४ ५| ५ ६
अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् |
पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ |
य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्|
ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्|
होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||
१ जटा पाठ
पदक्रम – १ २| २ १| १ २|
२ ३| ३ २| २ ३|
३ ४| ४ ३| ३ ४|
४ ५| ५ ४| ४ ५|
५ ६| ६ ५| ५ ६|
६ ७| ७ ६| ६ ७|
अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ अ॒ग्निम्| अ॒ग्निम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् ई॒ळे॒| ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् य॒ज्ञस्य॑| य॒ज्ञस्य॑ दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् दे॒वम्| दे॒वम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्| ऋ॒त्विज॑म् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्| र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम्| होता॑रम् र॒त्न॒ऽधात॑मम्||
२ माला पाठ
पदक्रम- १ २ ६ ५|
२ ३ ५ ४|
३ ४ ४ ३|
४ ५ ३ २|
५ ६ २ १|
अ॒ग्निम् ई॒ळे॒ र॒त्न॒ऽधात॑मम् होता॑रम् | ई॒ळे॒ पु॒रःऽहि॑तम् होता॑रम् ऋ॒त्विज॑म्| पु॒रःऽहि॑तम् य॒ज्ञस्य॑ य॒ज्ञस्य॑ पु॒रःऽहि॑तम्|….
इस तरह से
३ शिखापाठ
पदक्रम- १ २| २ १ | १ २ ३|
२ ३| ३ २ | २ ३ ४|
३ ४| ४ ३ | ३ ४ ५|
४ ५| ५ ४ | ४ ५ ६|
४ ध्वज पाठ
पदक्रम- १ २ २ ३ ३ ४
३ ४ २ ३ १ २|
४ ५ ५ ६ ६ ७
६ ७ ५ ६ ४ ५|
५ दण्डपाठ
पदक्रम- १ २| २ १| १ २| २ ३ | ३ २ १||
२ ३| ३ २| २ ३| ३ ४ | ४ ३ २||
६ रथ पाठ
पदक्रम- १ २ ४ ५|
१ २ ५ ४|
१ २ २ ३|
४ ५ ५ ४|
३ ४ ६ ७|
३ ४ ७ ६|
३ ४ ४ ५| इत्यादि
७ घनपाठ
पदक्रम- १ २| २ १| १ २ ३| ३ २ १|
१ २ ३| २ ३| ३ २| २ ३ ४| ४ ३ २|
२ ३ ४| ३ ४| ४ ३| ३ ४ ५| ५ ४ ३| इत्यादि
८ लेखपाठ
पदक्रम- १ २ २ १ १ २| २ ३ ४ ४ ५ २ २ ३ ३ ४ इत्यादि
काशी में भव्य शोभायात्रा
पारायण समापन के बाद काशी की गलियों में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। इसमें विभिन्न मठ मंदिरों के प्रतिनिधि विद्वान अध्यापक छात्र साधु संत और नगरवासी सम्मिलित हुए।
शोभायात्रा दशाश्वमेध घाट से लेकर काशी विश्वनाथ धाम तक निकली जिसका दृश्य काशी के लिए ऐतिहासिक क्षण बन गया।
शोभायात्रा में वैदिक मंत्र नगाड़ों की ध्वनि पुष्प वर्षा और रथ सज्जा से पूरा मार्ग आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठा।
नागरिक अभिनंदन में काशी के निवासियों ने देवव्रत को सनातन परंपरा के प्रतीक के रूप में सम्मानित किया।
सनातन संस्कृति का वैश्विक सिंहनाद
समारोह में अनेक आचार्यों ने कहा कि देवव्रत की यह उपलब्धि केवल एक सम्मान नहीं बल्कि सनातन वेद संस्कृति का विश्व मंच पर पुनः उदय है।
काशी के कई मठों ने संयुक्त घोषणा की कि आने वाले वर्षों में देशभर में वैदिक अध्ययन को संरक्षित करने हेतु विशेष अभियान चलाए जाएंगे।
देवव्रत ने स्वयं कहा कि वह इस साधना को आचार्य वचन की कृपा मानते हैं और आगे जीवन वेद सेवा के लिए समर्पित करना चाहते हैं।

