Thursday, August 7, 2025

अमेरिका के टैरिफ से भारत का बंपर फायदा, रूस से व्यापार को अब खुली छूट: ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव संभव

अमेरिका द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ़ लगाए जाने के फैसले ने वैश्विक व्यापार और ऊर्जा कूटनीति में एक निर्णायक मोड़ ला दिया है।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

यह कदम पहली दृष्टि में भारत के लिए आर्थिक दबाव की तरह प्रतीत होता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव भारत के पक्ष में एक बड़े रणनीतिक अवसर में बदल सकते हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह वही क्षण है जब भारत अपनी ऊर्जा नीति में स्वतंत्रता और स्पष्टता के साथ निर्णय ले सकता है।

रूस से पेट्रोलियम आयात पर अब नहीं रहेगा संतुलन का दबाव

अब तक भारत को पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को संतुलित रखते हुए रूस से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करना पड़ता था।

Donald Trump:
अमेरिका के टैरिफ से भारत का बंपर फायदा, रूस से व्यापार को अब खुली छूट: ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव संभव 5

यह संतुलन एक राजनीतिक-सामरिक मजबूरी थी, जहाँ भारत को अपनी ज़रूरतों और वैश्विक दबावों के बीच झूलना पड़ता था।

लेकिन अमेरिका द्वारा भारत पर 50% आयात शुल्क थोपने के बाद यह संतुलन अब अप्रासंगिक हो गया है।

भारत को अब नैतिक, कूटनीतिक या आर्थिक रूप से रूस से तेल खरीदने में किसी प्रकार की हिचक नहीं रह गई है।

आत्मनिर्भर ऊर्जा नीति की ओर निर्णायक क़दम

भारत पहले ही ऊर्जा क्षेत्र में दीर्घकालिक रणनीतियों पर कार्य कर रहा है, जिसमें सस्ता और भरोसेमंद आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है।

रूस से मिलने वाला कच्चा तेल न केवल भारत के लिए किफायती है, बल्कि दीर्घकालिक अनुबंधों के माध्यम से आपूर्ति भी स्थिर बनी रहती है।

India Russia Relations
अमेरिका के टैरिफ से भारत का बंपर फायदा, रूस से व्यापार को अब खुली छूट: ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव संभव 6

टैरिफ़ के बाद भारत इन संबंधों को और प्रगाढ़ बना सकता है, जिससे घरेलू ऊर्जा लागत पर नियंत्रण बना रह सकेगा और मुद्रास्फीति को भी साधा जा सकेगा।

आपदा में अवसर: भारत की परंपरागत कूटनीतिक वृत्ति

भारत ने सदैव संकटों को अवसर में बदलने की योग्यता दिखाई है। चाहे 1991 का आर्थिक संकट रहा हो या कोरोना महामारी, भारत ने हर आपदा को नई दिशा में अग्रसर होने के अवसर में बदला है।

इस टैरिफ़ को भी उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। अब भारत को खुला अवसर है कि वह ऊर्जा, व्यापार और भूराजनीतिक नीति को पुनः परिभाषित करे।

भारत अपने हितों के अनुरूप वैश्विक गठबंधन तय करे और रूस, ईरान जैसे वैकल्पिक साझेदारों से संबंध मजबूत करे।

अमेरिका के निर्णय से उसका नैतिक आधार भी कमजोर

अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ़ को लेकर आलोचकों का कहना है कि यह निर्णय वाशिंगटन की ‘फेयर ट्रेड’ नीति के उलट है।

TRUMP डोनाल्ड ट्रंप
अमेरिका के टैरिफ से भारत का बंपर फायदा, रूस से व्यापार को अब खुली छूट: ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव संभव 7

जब भारत रूस से तेल खरीद रहा था, तब अमेरिका ने कभी सार्वजनिक रूप से भारत की निंदा नहीं की, बल्कि कई बार यह कहा गया कि यह भारत का “स्वतंत्र निर्णय” है।

लेकिन जब भारत ने वैश्विक कीमतों को देखते हुए अपने नागरिकों को सस्ता ईंधन देने की नीति अपनाई, तब उस पर टैरिफ़ थोप दिया गया।

इससे अमेरिका की दोहरी नीति सामने आई है, और भारत के लिए आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता और भी स्पष्ट हो गई है।

भारत-रूस ऊर्जा सहयोग को मिल सकती है नई गति

अब जबकि भारत को पश्चिमी देशों की आलोचनात्मक निगाहों की चिंता नहीं करनी, तो वह रूस से ऊर्जा आपूर्ति के नए दीर्घकालिक समझौते कर सकता है।

साथ ही, भारत अब तेल के अतिरिक्त प्राकृतिक गैस, कोयला, और ऊर्जा तकनीक के क्षेत्र में भी रूस के साथ संयुक्त परियोजनाएँ शुरू कर सकता है।

इससे न केवल भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि रूस को भी पश्चिमी प्रतिबंधों से राहत मिलेगी। दोनों देशों के लिए यह स्थिति ‘विन-विन’ हो सकती है।

भविष्य की राह: कूटनीति में स्पष्टता और नीतिगत निर्भीकता

यह टैरिफ भारत के लिए एक कूटनीतिक ‘ब्लेसिंग इन डिसगाइज’ बन सकता है। अब भारत को न किसी की नाराज़गी की चिंता करनी है, न किसी प्रतिबंध की।

भारत अपनी ऊर्जा नीति, व्यापार मार्ग और रणनीतिक गठजोड़ बिना किसी दबाव के तय कर सकता है।

India Visit of Russia President
अमेरिका के टैरिफ से भारत का बंपर फायदा, रूस से व्यापार को अब खुली छूट: ऊर्जा नीति में बड़ा बदलाव संभव 8

इस स्थिति में चीन जैसी मजबूती और रूस जैसी गहराई भारत की विदेश नीति का नया चेहरा बन सकती है।

अब भारत तय करेगा कि किससे और कैसे व्यापार करना है

अमेरिका का यह टैरिफ़ फैसला भारत को वैश्विक नीति में और अधिक आत्मनिर्भर, निर्भीक और दीर्घदर्शी बनने की प्रेरणा दे सकता है।

रूस से तेल खरीदने की अब कोई ‘छुपी’ या ‘बैलेंस्ड’ मजबूरी नहीं रह गई है। भारत खुले रूप से, अपने हित में, हर उस साझेदार से जुड़ सकता है जो दीर्घकालिक स्थिरता, सामरिक लाभ और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित कर सके।

- Advertisement -

More articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -

Latest article