US: अमेरिका के लॉस एंजिल्स शहर में अवैध प्रवासियों के खिलाफ चलाए गए इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) अभियान ने शहर को हिंसा की आग में झोंक दिया है। कई इलाकों में आगजनी, पथराव और सड़क पर उतरे नाराज प्रदर्शनकारियों ने हालात को दंगों की कगार तक पहुंचा दिया।
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US: 33 साल बाद लॉस एंजिल्स में फिर से नेशनल गार्ड्स
इस बढ़ती अराजकता के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 33 साल बाद लॉस एंजिल्स में फिर से नेशनल गार्ड्स की तैनाती का आदेश जारी किया है। 1992 के कुख्यात लॉस एंजिल्स दंगों के बाद यह पहला मौका है जब इस शहर में सेना की वापसी हुई है।
मजदूरों को बनाया निशाना
विरोध की चिंगारी तब भड़की जब ICE ने लॉस एंजिल्स में एक डोनट शॉप, फैशन डिस्ट्रिक्ट के एक कपड़ों के गोदाम और दो होम डिपो स्टोर्स समेत कई जगहों पर छापेमारी की। इन छापों में संदिग्ध नकली दस्तावेजों वाले मजदूरों को निशाना बनाया गया।
जैसे ही एजेंटों की मौजूदगी की खबर फैली, स्थानीय लोग बड़ी संख्या में जमा हो गए और ICE की गाड़ियों को घेर लिया।
हिरासत में लिए गए प्रवासियों की रिहाई की मांग करते हुए प्रदर्शनकारियों ने रास्ते जाम किए और जल्द ही ये प्रदर्शन हिंसक रूप लेने लगे।
भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश
प्रदर्शनकारी संघीय कार्यालयों और डिटेंशन सेंटर्स के बाहर भी जुट गए। जब पुलिस ने रैलियों को अवैध करार देते हुए भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की, तो हालात और बिगड़ गए।
जवाबी कार्रवाई में पुलिस पर पथराव हुआ, गाड़ियों में आग लगा दी गई और दर्जनों अफसर घायल हुए।
ट्रंप का तानाशाही रवैया
ICE के अधिकारियों ने बताया कि अब तक 125 अवैध प्रवासियों को हिरासत में लिया गया है, जबकि 44 प्रदर्शनकारियों को आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसम ने ट्रंप प्रशासन की कार्रवाई की आलोचना करते हुए इसे “तानाशाही रवैया” बताया और कहा कि सेना का इस्तेमाल नागरिक आंदोलनों को दबाने की कोशिश है।
वहीं FBI निदेशक काश पटेल ने चेतावनी दी कि नेशनल गार्ड्स पर हमला करने वालों के खिलाफ सख्त और निर्णायक कार्रवाई की जाएगी।
अवैध प्रवासी जिम्मेदार
ट्रंप प्रशासन ने हिंसा के लिए अवैध प्रवासियों को जिम्मेदार ठहराया है और कहा है कि ये लोग कानून व्यवस्था बिगाड़कर सुरक्षा एजेंसियों को उनका काम करने से रोक रहे हैं। इस घटना ने अमेरिका में प्रवासी नीतियों और मानवाधिकारों को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है।
जहां एक तरफ कानून प्रवर्तन एजेंसाएं सुरक्षा बनाए रखने में जुटी हैं, वहीं दूसरी तरफ आम नागरिकों का गुस्सा और असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा।
33 वर्षों बाद सेना की तैनाती ने यह साफ कर दिया है कि हालात सामान्य नहीं हैं और लॉस एंजिल्स एक बार फिर इतिहास के उस मोड़ पर खड़ा है। जहां लोकतंत्र, अधिकार और सुरक्षा आपस में टकरा रहे हैं।
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