UP: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अत्यंत महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठाया है, जो राज्य में अपराध नियंत्रण कानूनों की भूमिका और प्रासंगिकता को लेकर एक नई बहस छेड़ सकता है।
अदालत ने सवाल किया है कि जब भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 में संगठित अपराधों को नियंत्रित करने के लिए विस्तृत और कठोर प्रावधान शामिल किए जा चुके हैं, तो फिर राज्य सरकार द्वारा गैंगस्टर एक्ट के तहत की जा रही कार्यवाही अब किस हद तक आवश्यक और वैध है?
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UP: राजनीतिक द्वेष में मुकदमा
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने मिर्जापुर निवासी विजय सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिकाकर्ता विजय सिंह के खिलाफ हलिया थाना क्षेत्र में उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है।
याची के अधिवक्ता अजय मिश्रा ने अदालत में तर्क दिया कि विजय सिंह के खिलाफ जिन मामलों को आधार बनाकर गैंगस्टर एक्ट लगाया गया है, उन सभी मामलों में वह पहले ही जमानत पर रिहा हो चुके हैं। उनका दावा है कि यह मामला राजनीतिक द्वेष के चलते दर्ज किया गया है और आरोप पूरी तरह से झूठे हैं।
अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त
राज्य सरकार की ओर से पेश अपर शासकीय अधिवक्ता ने विरोध करते हुए दावा किया कि विजय सिंह संगठित अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त है और उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों में दम है। मगर अदालत ने इस तर्क को एकदम सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया और पूरे मामले को एक बड़े कानूनी सवाल के रूप में देखा।
कोर्ट ने यूपी सरकार को लगाई फटकार
कोर्ट ने अपने आदेश में विशेष रूप से BNS-2023 की धारा 111 का उल्लेख किया, जिसमें संगठित अपराधों की परिभाषा और उनसे संबंधित कठोर दंडात्मक प्रावधान दिए गए हैं।
इस धारा में अपहरण, वसूली, डकैती, साइबर अपराध, मानव तस्करी, सुपारी किलिंग, ज़मीन पर अवैध कब्जा और अन्य संगठित अपराध शामिल हैं। इतना ही नहीं, इन अपराधों में सहयोग करने, छिपाने या सहायता देने वाले लोगों को भी कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
कोर्ट का कहना है कि जब राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो चुकी BNS में संगठित अपराध के लिए इतनी व्यापक कानूनी व्यवस्था मौजूद है, तो फिर गैंगस्टर एक्ट के तहत अलग से मुकदमा चलाना कानूनी रूप से तार्किक नहीं लगता।
इसी आधार पर अदालत ने याची की गिरफ्तारी पर अंतरिम रोक लगाते हुए राज्य सरकार समेत अन्य सभी प्रतिवादियों से तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा है।