कन्नड़ भाषा विवाद में तेजस्वी सूर्या का बयान बीजेपी की विचारधारा से विचलन
हाल ही में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की चंदापुरा शाखा में एक घटना ने भाषाई अस्मिता के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया। बैंक मैनेजर और एक ग्राहक के बीच कन्नड़ भाषा में संवाद करने को लेकर हुई तीखी बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस विवाद ने न केवल स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर बहस को जन्म दिया, बल्कि बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के बयान ने इसे और गर्मा बना दिया।
विवाद की एक एक जानकारी
विवाद की पृष्ठभूमि
20 मई 2025 को बेंगलुरु के चंदापुरा में SBI की सूर्या नगर शाखा में एक ग्राहक ने बैंक मैनेजर प्रियंका, जो मूल रूप से बिहार की हैं, से कन्नड़ में बात करने की मांग की। ग्राहक का तर्क था कि कर्नाटक में स्थानीय भाषा कन्नड़ में सेवा प्रदान करना अनिवार्य है, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में।
जवाब में, प्रियंका ने कहा, “यह भारत है, मैं हिंदी बोलूंगी। मैं कन्नड़ नहीं जानती।” इस बहस का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने कन्नड़ भाषी समुदाय में आक्रोश पैदा किया। इस घटना ने कर्नाटक में लंबे समय से चली आ रही कन्नड़ बनाम हिंदी की बहस को फिर से हवा दी।
प्रो-कन्नड़ संगठन जैसे कर्नाटक रक्षणा वेदिके (KRV) ने इस घटना को कन्नड़ भाषा और कर्नाटक की सांस्कृतिक पहचान का अपमान बताते हुए विरोध प्रदर्शन की घोषणा की। दूसरी ओर, कुछ लोगों ने मैनेजर का समर्थन करते हुए तर्क दिया कि भारत एक बहुभाषी देश है, और किसी को क्षेत्रीय भाषा बोलने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
SBI ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मैनेजर का तबादला कर दिया और एक बयान जारी कर कहा कि वे ग्राहकों की भावनाओं का सम्मान करते हैं और ऐसी घटनाओं के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति अपनाते हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी इस घटना की निंदा की और बैंकों से स्थानीय भाषा में सेवा प्रदान करने की अपील की।
तेजस्वी सूर्या का बयान
इस विवाद में मोड़ तब आया जब बेंगलुरु दक्षिण से बीजेपी सांसद और भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने बैंक कर्मचारी का विरोध करते हुए आग उगलता बयान दे दिया।
तेजस्वी सूर्या ने सोशल मीडिया पर गुस्से में कहा कि कर्नाटक में काम करने वाले बैंकों को कन्नड़ में सेवाएं प्रदान करनी चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “बस, बहुत हो गया”।
तेजस्वी सूर्या का यह बयान कई मायनों में महत्वपूर्ण था। पहला, यह भाषावादी फासिस्टों की शैली में कन्नड़ भाषा के लिए दिया गया आक्रामक ब्यान था जिसमें एक अधिकारी के विरुद्ध गैरजरूरी कार्यवाही करने की धमकी दी गई। दूसरा, यह बीजेपी की राष्ट्रीय छवि, जो “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” और हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में बढ़ावा देने की नीति से जुड़ी है, के विपरीत प्रतीत हुआ।
बयान पर विवाद क्यों हुआ?
बीजेपी की विचारधारा से विचलन:
बीजेपी ने हमेशा राष्ट्रीय एकता और “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के सिद्धांत को बढ़ावा दिया है, जिसमें हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रोत्साहन शामिल है। तेजस्वी सूर्या का कन्नड़ भाषा को प्राथमिकता देने वाला बयान कुछ लोगों को बीजेपी की इस विचारधारा से उलट लगा। एक यूजर ने लिखा, “तेजस्वी सूर्या के हिसाब से किसी भी बैंक में दूसरे राज्य के कर्मचारी का चयन या ट्रांसफर नहीं हो सकता। ये भारत के संघीय ढांचे पर चोट है।”
SBI एक राष्ट्रीय बैंक है जिसके कर्मचारियों का हर 3 साल में देश में ट्रांसफर होता है, यदि हर जगह की स्थानीय भाषा हर कर्मचारी सीखे तो उसे 30 साल के कैरियर में 10 क्षेत्रीय भाषाएँ सीखनी पड़ेंगी जो कि असंभव है। ऐसे में कर्मचारी बैंक का काम करेगा या भाषा सीखेगा? ऐसे में तो तेजस्वी सूर्या के अनुसार राष्ट्रीय संस्थाएं ही ठप्प हो जाएंगी।
भाषाई राजनीति में उलझाव:
तेजस्वी सूर्या का बयान कुछ लोगों ने भाषा क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाला माना। कर्नाटक में पहले भी हिंदी बनाम कन्नड़ विवाद देखे गए हैं, जैसे ऑटो चालकों द्वारा हिंदी बोलने वालों से अधिक किराया वसूलने की घटनाएं। तेजस्वी सूर्या का बयान ऐसे समय में आया जब कर्नाटक में भाषाई अस्मिता का मुद्दा पहले से ही गर्म था, जिसने उनके बयान को और विवादास्पद बना दिया। पर SBI की मैनेजर की इसमें कोई तकनीकी गलती नजर नहीं आती है क्योंकि –
- भारतीय संविधान के अनुसार, केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए केवल हिंदी और अंग्रेज़ी का ज्ञान आवश्यक माना गया है।
- बैंकिंग के संदर्भ में, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की गाइडलाइन्स के अनुसार सूचनापट्ट, फॉर्म और स्थानीय कर्मचारियों की भर्ती में स्थानीय भाषाओं का उपयोग सुनिश्चित किया जाता है, ताकि आम जनता से संवाद में सहूलियत हो। लेकिन ये दिशानिर्देश भी किसी केंद्रीय कर्मचारी को प्रत्येक राज्य की स्थानीय भाषा बोलना अनिवार्य नहीं बनाते।
- तेजस्वी सूर्या की इस प्रकार की मांग प्रायोगिक रूप से असंभव है। एक अधिकारी आज कर्नाटक में तैनात हो सकता है, कल केरल में और फिर हिमाचल या बंगाल में। ऐसे में हर कुछ वर्षों में नई भाषा सीखने की अपेक्षा व्यावहारिक नहीं है।
- दशकों से केंद्रीय कर्मचारी देश के विभिन्न राज्यों में बिना किसी भाषा संघर्ष के सेवा दे रहे हैं। हमेशा कोई स्थानीय कर्मचारी, सुरक्षा गार्ड या ग्राहक मदद को उपलब्ध रहता है। हालिया भाषावादी विरोध पूर्णतः राजनीतिक प्रेरित प्रतीत होते हैं।
- यदि वास्तव में भाषा-संबंधी कोई समस्या है तो राज्य सरकार को उचित माध्यम से केंद्र से संवाद करना चाहिए। यदि किसी राज्य को केंद्र सरकार की सेवाएँ स्वीकार्य नहीं हैं, तो वे उनका उपयोग न करें, अपने स्थानीय बैंकों में खाता खोलें, SBI का बहिष्कार करें, लेकिन राजनीतिक एजेंडे के लिए कर्मचारियों को बलि का बकरा बनाना न्यायसंगत नहीं।
राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद:
तेजस्वी सूर्या का बयान बीजेपी की राष्ट्रवाद की विचारधारा के बजाय क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाला है। एक एक्स पोस्ट में यूजर ने तेजस्वी को “फर्जी सूर्या” कहकर निशाना साधा और बीजेपी से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की। कुछ लोगों ने तेजस्वी सूर्या की राजनीति को राज ठाकरे और बाल ठाकरे की मराठी विभाजनकारी राजनीति की कॉपी करार दिया।
गौरतलब है कि शिवसेना के बाल ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे की भड़काऊ राजनीति के चलते मराठी माणूस हिन्दी भाषियों पर हमले करते रहे हैं। वे लोग मराठी के नाम पर हिन्दी भाषियों से ज्यादा किराया वसूलते हैं और यूनियन बाजी करके ओला उबर तक को कई शहरों में चलने नहीं देते।
पर अक्सर देखा गया है कि इन भाषाई उग्रवादियों का जोर उत्तर भारत के हिन्दुओं पर ही चलता है, मुसलमानों से यह लोग खुलकर हिन्दी और उर्दू में बात करते हैं। मुसलमान न मराठी बोलते हैं न कन्नड़ बोलते हैं, वे केवल हिन्दी उर्दू मिश्रित भाषा बोलते हैं। पर किसी भी भाषाई उग्रवादी का उनपर जोर नहीं चलता।
अभी हाल ही में जब एक मराठी उग्रवादी एक व्यक्ति को जबरन मराठी बोलवाने की कोशिश कर रहा था तो पता चला वह व्यक्ति मुस्लिम है फिर मुस्लिमों ने मिलकर उससे खूब माफी मंगवाई थी, जिससे इन भाषाई उग्रवादियों की फट के 74 हो गयी थी।
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तेजस्वी सूर्या को भाजयुमो राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने की माँग
तेजस्वी सूर्या के बयान के बाद सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ तीखी प्रतिक्रियाएं देखी गईं। कई यूजर्स ने उनके बयान को बीजेपी की राष्ट्रीय एकता की नीति के खिलाफ बताया और इसे भाषाई गुंडागर्दी को समर्थन देने वाला करार दिया। उनको तुरंत भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रिय अध्यक्ष पद से हटाने की जोरदार माँग की जा रही है।
एक यूजर ने लिखा, “महाराष्ट्र और कर्नाटक में भाषा के नाम पर हो रही गुंडागर्दी को भाजपा के नेता खुल कर समर्थन दे रहे हैं। तेजस्वी सूर्या द्वारा आज जो बात कही गई है, वो भाषाई राजनीति में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की नीति को लात मारते हुए, विपक्ष के द्वारा लाए विषयों पर स्वयं को कीचड़-क्रीड़ा में घसीटने जैसा है।” इसके अलावा, कुछ यूजर्स ने तेजस्वी सूर्या को “कट्टर हिंदू अल्ट्रा प्रो मैक्स” कहकर तंज कसा और उनके बयान को राष्ट्रवाद के बजाय भाषावाद को बढ़ावा देने वाला बताया।
बीजेपी की विचारधारा “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” और राष्ट्रीय एकता पर आधारित है। पार्टी ने हमेशा हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रोत्साहित किया है, हालांकि यह क्षेत्रीय भाषाओं के सम्मान को भी स्वीकार करती है। बीजेपी कर्नाटक में एक मजबूत राजनीतिक शक्ति है और वहां क्षेत्रीय अस्मिता के साथ राष्ट्रीय एकता को संतुलित करने की कोशिश करती है।
परन्तु बीजेपी के एक प्रमुख नेता द्वारा यह बयान क्षेत्रीय अस्मिता को प्राथमिकता देने का संकेत देता है, इसलिए उन्हें राष्ट्रीय पद से मुक्त करने की माँग करते हुए X पर #ResignTejasviSurya #BoycottTejasviSurya जैसे हैशटैग चलाए जा रहे हैं। एक यूजर ने तो तेजस्वी सूर्या को कर्नाटक का तेजस्वी यादव बताते हुए 7वीं फेल करार दे दिया।
बीजेपी ने हमेशा क्षेत्रीय संस्कृतियों के सम्मान की बात की है, लेकिन राष्ट्रीय एकता को सर्वोपरि रखा है। तेजस्वी सूर्या का बयान शायद स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखकर दिया गया हो, लेकिन बीजेपी की राजनीति ऐसी नहीं रही है। उनके खिलाफ चली मुहिम इस बात का संकेत है कि भाषाई मुद्दे भारत में कितने संवेदनशील हैं और कैसे एक गलत बयान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भावनाओं को भड़का सकता है।
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