Suryakant Waghmore: आईआईटी बॉम्बे के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सूर्यकांत वाघमारे एक बार फिर विवादों के घेरे में हैं। 12 जून को संस्थान ने उन्हें एक औपचारिक कारण बताओ नोटिस (Show-cause notice) जारी किया।
आरोप यह है कि उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया में “Mumbai’s Big Cash Polls”” शीर्षक से एक राजनीतिक लेख प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने बीएमसी चुनावों पर टिप्पणी की।
इस लेख में उन्होंने अपना आधिकारिक पदनाम भी इस्तेमाल किया, जो संस्थान के आचार संहिता के अनुसूची बी, पैरा 5(ii) का स्पष्ट उल्लंघन है।
इसके अलावा वाघमारे ने नोटिस का जवाब देने के बजाय इसे सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दिया और लिखा, “आईआईटी सिस्टम में सुधार के लिए एक और संघर्ष शुरू!”
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Suryakant Waghmore: कौन हैं सूर्यकांत वाघमारे?
प्रो. वाघमारे आईआईटी बॉम्बे में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनकी शोध रुचियों में सामाजिक बहिष्करण, जाति और हिंसा, दलित राजनीति, संस्थागत वंचना और “हिंदू धर्म” शामिल हैं — जिसे वे आमतौर पर आलोचनात्मक नजरिए से देखते हैं।
वे लिखते हैं कि उन्होंने जाति को समझने के लिए “गुस्सा और हास्य” जैसे भावनात्मक पक्षों का अध्ययन किया है। वे भारत की “लोकतांत्रिक आधुनिकता” को जातीय दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करते हैं।
इसके अलावा वे कटकरी जनजाति पर भी काम कर चुके हैं, और सामाजिक आंदोलनों के माध्यम से “वास्तविक नागरिकता” की खोज को अपने शोध का हिस्सा मानते हैं।
हिंदू मान्यताओं का उपहास
Suryakant Waghmore: प्रोफेसर वाघमारे लंबे समय से हिंदू परंपराओं और सामाजिक रीति-रिवाजों पर कटाक्ष करते रहे हैं। एक वायरल पोस्ट में उन्होंने लिखा —
“अगले जन्म में शुद्ध शाकाहारी बनने की आशा है। अरेंज मैरिज करूंगा, दहेज लूंगा, गौमूत्र पिऊंगा, बीजेपी को वोट दूंगा और मुसलमानों पर हमला करूंगा। यह जन्म अंबेडकरवाद को समर्पित है।”
इस कथन को शाकाहार, अरेंज मैरिज और हिंदू परंपराओं का उपहास मानते हुए कई लोगों ने इसकी आलोचना की।
Suryakant Waghmore: धार्मिक प्रथाओं और भारत-विरोधी मानसिकता पर टिप्पणी
वाघमारे ने एक बार यूरोप से एक तस्वीर साझा की, जिसके कैप्शन में लिखा —
“कहीं यूरोप में, जहां कोई जनेऊ नहीं पहनता, दहेज नहीं लेता, अरेंज मैरिज नहीं होती, महिलाओं को पीरियड्स में रसोई और मंदिर में जाने से नहीं रोका जाता… जारी रखूं?”
एक अन्य पोस्ट में उन्होंने कहा कि “मानविकी में पीएचडी करना ऐसा है जैसे कैंसर के इलाज के लिए गौमूत्र न पीना।”
उनका एक शोध पत्र “The Dominant Victim” यह दावा करता है कि सवर्ण हिंदू “कल्पित पीड़ितत्व” का दावा करते हैं ताकि दलित संघर्षों को दबाया जा सके।
शाकाहारी छात्रों को बताया ‘कट्टरपंथी’
Suryakant Waghmore: 2023 में जब कुछ शाकाहारी (ज्यादातर जैन) छात्रों ने आईआईटी बॉम्बे के कॉमन मेस में 129 में से 6 टेबल शाकाहारियों के लिए सुरक्षित रखने की मांग की, तो वाघमारे ने उन्हें “कट्टरपंथी” कहा और आरोप लगाया कि वे “शुद्धता-अपवित्रता की प्रथा” थोप रहे हैं।
उन्होंने एक छात्र अभिषेक माली का समर्थन किया जिसने जानबूझकर शाकाहारी टेबल पर मांसाहारी भोजन खाया। संस्थान ने माली पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया, जिसे वाघमारे ने “अपमानजनक” बताया।
एक इंटरव्यू में वाघमारे ने कहा
“शाकाहार भी हिंसक है, क्योंकि आप अपने बच्चों को मांस की खुशबू और दृश्य से भी दूर रखते हैं, जो वास्तव में आकर्षक होते हैं।”
आलोचकों का कहना है कि यदि अलग शाकाहारी टेबल “छुआछूत” है, तो रमजान में अलग भोजन, हलाल व्यवस्था, या कुछ धर्मों के लिए विशिष्ट भोजन की छूट को क्यों नहीं चुनौती दी जाती?
शोध में कथित पक्षपात
Suryakant Waghmore: 2024 में पीएचडी प्रवेश परीक्षा में “हिंदुत्व” पर एक सवाल पूछा गया जिसे कई छात्रों ने पक्षपातपूर्ण और विचारधारा-आधारित माना। जब छात्रों ने विरोध किया, तो प्रो. वाघमारे ने एक डांस वीडियो पोस्ट कर उनका मजाक उड़ाया।
इसके बाद उन्होंने अपना X (ट्विटर) खाता हटा दिया था, लेकिन अब वह दोबारा सक्रिय हो चुका है।
Suryakant Waghmore: आईआईटी बॉम्बे में विचारधारा आधारित नेटवर्क का सवाल
प्रो. वाघमारे अकेले नहीं हैं। आईआईटी बॉम्बे में कई अन्य शिक्षकों पर भी पक्षपात और राजनीतिक एजेंडा चलाने के आरोप लग चुके हैं।
जैसे कि प्रो. अनुपम गुहा — जो खुले तौर पर वामपंथी विचारों के समर्थक हैं। उन्होंने न केवल CAA विरोधी प्रदर्शनों और स्टरलाइट विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया, बल्कि हामास से सहानुभूति रखने वाली मेघा विमुरी जैसे विवादित लोगों के साथ भी खड़े दिखाई दिए।
वे “The Collective” और “Kosambi Circle” जैसे चरमपंथी समूहों से जुड़े हुए माने जाते हैं और धारा 370 हटाने जैसे राष्ट्रीय नीतिगत निर्णयों की खुली आलोचना कर चुके हैं।
इसके अलावा, एक पीएचडी स्कॉलर आदर्श प्रियदर्शी पर यौन उत्पीड़न के आरोप भी लग चुके हैं, जिससे संस्थान के भीतर अकादमिक जवाबदेही पर सवाल उठे हैं।