शंकराचार्य
वामपंथियों के गढ़ कहे जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में आज शृंगेरी शारदापीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री विधुशेखर भारती सन्निधानम् का आगमन हुआ।

JNU में विद्यारण्य इंस्टिट्यूट ऑफ नॉलेज एन्ड एडवांस्ड स्टडीज (VIKAS) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में शंकराचार्य ने स्वामी विद्यारण्य की मूर्ति का माल्यार्पण किया और वेदांत पर व्याख्यान दिया।
गौरतलब है कि जवाहर लाल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (JNIAS) का नाम बदलकर विद्यारण्य इंस्टिट्यूट ऑफ नॉलेज एन्ड एडवांस्ड स्टडीज (VIKAS) किया गया है।

यह संस्थान भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत सनातन धर्म, दर्शन, संस्कृत, तमिल, प्राकृत, पालि आदि विषयों पर शोध को बढ़ावा देता है।
शंकराचार्य ने JNU में दिया व्याख्यान
इस अवसर पर शंकराचार्य ने अपने उद्बोधन में स्वामी विद्यारण्य के जीवन पर प्रकाश डाला। उनके शृंगेरी शंकराचार्य बनने एवं विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के बारे में बताया।
वेदांत की चर्चा करते हुए उन्होंने ब्रह्म सत्य जगत्मिथ्या का अर्थ समझाया एवं ब्रह्म की सर्वस्वता का प्रतिपादन किया।

शंकराचार्य ने बताया कि छात्रों को किसी ग्रन्थ का सर्वप्रथम चिंतन करना चाहिए, फिर अभ्यास करना चाहिए, फिर उस पर पूर्वाचार्यों के मत को पढ़ना चाहिए फिर आपस में लोगों से उस विद्या पर वार्ता करनी चाहिए, इससे विद्या अच्छे से ग्रहण होती है।
‘विकास’ के माध्यम से छात्र बुद्धि, जीवन आदि सभी क्षेत्रों में विकसित होकर समाज व राष्ट्र का भी विकास करेंगे ऐसी कामना की।

गौरतलब है कि यही वह JNU है जहां भारत विरोधी नारे गुंजायमान होते थे। आज भी यहां की छात्रसंघ अध्यक्ष अदीति मिश्रा ब्राह्मण विरोधी नारे लगाती है।

दूसरी ओर कैम्पस में शंकराचार्य का आगमन व ज्ञानप्रद शिक्षाएं देना और उसमें छात्रों का भाग लेना एक अलग ही तस्वीर पेश करता है और आशा की किरण जगाता है। कार्यक्रम में JNU की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पण्डित उपस्थित रहीं।

इस कार्यक्रम में शृंगेरी शंकराचार्य को जयपुर से प्रकाशित राजस्थान एवं पश्चिम भारत का सूर्यसिद्धान्त पर आधारित एकमात्र पञ्चाङ्ग “श्री जयादित्य पञ्चाङ्ग” समर्पित किया गया, जिसपर “श्री” अंकित कर उन्होंने अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
कौन हैं शृंगेरी के शंकराचार्य स्वामी विधुशेखर भारती?

जगद्गुरु शंकराचार्य श्री विधुशेखर भारती का जन्म श्री कुप्पा वेंकटेश्वर प्रसाद शर्मा के रूप में शुभ नाग पंचमी के दिन (24 जुलाई, 1993) को आंध्र प्रदेश के तिरूपति में वैदिक विद्वानों के एक परिवार में हुआ था।
भगवान के प्रति भक्ति और वैदिक जीवन शैली के पालन में डूबे वातावरण में पले-बढ़े, उन्होंने अपने पिता और दादा से कृष्ण यजुर्वेद में प्रारंभिक प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिसके दौरान उन्होंने तीव्र प्रगति और निपुणता दिखाई।

2009 की शुरुआत में श्रृंगेरी की अपनी यात्रा के दौरान, श्री वेंकटेश्वर प्रसाद ने जगद्गुरु श्री भारती तीर्थ महासन्निधानम की शरण ली और जगद्गुरु के अधीन शास्त्रों का अध्ययन करने की इच्छा व्यक्त की।
इस बालक की ईमानदारी और उसकी बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर, जगद्गुरु ने उसे आशीर्वाद दिया और स्वयं शास्त्रों की शिक्षा दी।
ब्रह्मचारी श्री वेंकटेश्वर प्रसाद शर्मा ने शिक्षाओं को शीघ्रता से ग्रहण कर लिया और उनकी शिक्षा तीव्र गति से आगे बढ़ी।

23 जनवरी, 2015 को, अखंड गुरु-शिष्य वंश को जारी रखते हुए, जो सीधे जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य तक फैला हुआ है, जगद्गुरु श्री भारती तीर्थ महासन्निधानम ने ब्रह्मचारी को संन्यास की दीक्षा दी, उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया, और उन्हें नाम ‘श्री विधुशेखर भारती’ प्रदान किया।
स्वयं श्री महासन्निधानम् के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में शास्त्रों का अध्ययन और उनमें निपुणता प्राप्त करने के बाद, श्री विधुशेखर भारती सन्निधानम् एक अद्वितीय विद्वान के रूप में विख्यात हैं।

गुरु के निर्देशन में, श्री सन्निधानम् श्रृंगेरी मठ के कार्यों का संचालन कर रहे हैं, स्वतंत्र भ्रमण कर रहे हैं, भक्तों को आशीर्वाद दे रहे हैं और सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रसार कर रहे हैं।
श्री सन्निधानम् की संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, तमिल और हिंदी भाषाओं में वाक्पटुता उनके सार्वजनिक प्रवचनों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
जगद्गुरु श्री विधुशेखर भारती सन्निधानम् अपनी गर्मजोशी, करुणा, कृपा और ज्ञान से सभी भक्तों का धार्मिक पथ पर मार्गदर्शन करते रहे हैं।

