बरेली के शाही थाना क्षेत्र के काशीपुर गांव का रहने वाला ओमप्रकाश मात्र 15 वर्ष की उम्र में घर छोड़कर निकल गया था। परिवार को उम्मीद थी कि कुछ दिनों में वह लौट आएगा, लेकिन महीनों के बाद भी उसका पता नहीं चला।
सालों बीतते गए और रिश्तेदारों ने उसे मृत मानकर अपनी जिंदगी आगे बढ़ा दी। किसी को अंदाज़ा नहीं था कि ढाई दशक बाद वही ओमप्रकाश एक बिल्कुल बदली हुई पहचान के साथ वापस लौटेगा।
दिल्ली में मिली नई पहचान: ओमप्रकाश से सलीम
घर से निकलने के बाद कुछ समय बरेली में मज़दूरी करने के बाद ओमप्रकाश दिल्ली पहुंचा। वहां किराए पर कमरा लेने के लिए आईडी की ज़रूरत पड़ी, लेकिन उसके पास कोई दस्तावेज़ नहीं थे। इसी परेशानी में स्थानीय लोगों ने उसका नाम बदलकर “सलीम पुत्र ताहिर हुसैन” करवा दिया।
उस्मानपुर, दिल्ली का पता दर्ज कर मतदान पहचान पत्र भी बन गया। नई पहचान के साथ नई जिंदगी शुरू हुई।
यहीं उसकी मुलाकात शाहरबानो से हुई और दोनों का निकाह हो गया। धीरे-धीरे परिवार बढ़ा—चार बेटियाँ रुखसाना, रुखसार, रूपा, कुप्पा और एक बेटा जुम्मन पैदा हुए। तीन बेटियों का विवाह भी हो चुका है।
एसआईआर अभियान ने बदल दी कहानी
दिल्ली में चल रहे मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के दौरान कठिनाई तब आई जब ‘ताहिर हुसैन’ के नाम से कोई भी आईडी उपलब्ध नहीं मिली। दस्तावेज़ों का अभाव आगे की प्रक्रियाओं में बड़ी रुकावट बन गया। इसी मजबूरी में ओमप्रकाश को अपने असली गांव लौटने का फैसला करना पड़ा।
गांव में लौटे तो हुआ शाही स्वागत
25 साल बाद जब ओमप्रकाश अपनी बड़ी बहन चंद्रकली और 15 वर्षीय बेटे जुम्मन के साथ गांव पहुंचे तो नज़ारा किसी त्योहार जैसा था।
ग्रामीणों ने उन्हें फूलमालाएँ पहनाकर, बैंड-बाजे बजवाकर स्वागत किया। हर किसी के चेहरे पर हैरानी और खुशी साथ दिखाई दी।
छोटे भाई रोशनलाल, भतीजे कुंवर सेन, वीरपाल, प्रधान वीरेंद्र राजपूत सहित दर्जनों ग्रामीण उनके घर लौटने से भावुक हो गए।
फिर से अपनाई पुरानी पहचान
गांव पहुंचकर मंदिर में विधि-विधान से शुद्धिकरण कराया गया और ओमप्रकाश ने पुनः हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया।
उन्होंने स्पष्ट कहा कि अब वह अपने परिवार के बीच गांव में ही रहना चाहते हैं और यहीं अपना पहचान पत्र बनवाएंगे।
ढाई दशक की कहानी, एक नई शुरुआत
15 वर्ष की उम्र में नाराज़गी में घर छोड़ना, फिर बदली हुई पहचान के साथ दिल्ली में नई जिंदगी बनाना और आखिर में दस्तावेज़ों की समस्या के कारण असल पहचान की ओर लौटना—ओमप्रकाश की कहानी किसी फ़िल्मी पटकथा से कम नहीं है।
25 वर्षों के बाद बेटे के साथ गांव की चौखट पर वापस लौटने पर मिली सम्मानपूर्ण वापसी उनके लिए किसी पुनर्जन्म से कम नहीं।

