SHRI JOYNACHARAN BATHARI: श्री जोयनाचरण बाथरी, दीमा हसाओ जिले के एक ऐसे अनमोल रत्न हैं जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी दिमासा समुदाय की पारंपरिक लोकसंगीत विरासत को सहेजने और जनमानस तक पहुँचाने में लगा दी।
एक साधारण सरकारी कर्मचारी के रूप में सेवा देने के बाद, उन्होंने असाधारण सांस्कृतिक योगदान देकर असम और पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया है।
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SHRI JOYNACHARAN BATHARI: संगीत के लिए समर्पित एक जीवन
SHRI JOYNACHARAN BATHARI: 1 जुलाई 1940 को दीमा हसाओ (तत्कालीन उत्तर कछार हिल्स) के जोराई बाथरी गांव में जन्मे श्री बाथरी ने बेहद कम उम्र में ही दिमासा लोकसंगीत के प्रति अपनी रुचि और समर्पण प्रकट किया।
उनका जीवन सिर्फ एक कलाकार का नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रहरी का है, जिन्होंने अपनी पहचान और समुदाय की आवाज़ को न केवल संरक्षित किया, बल्कि उसे मंच भी दिया।
आकाशवाणी से दिल्ली तक का सफर
SHRI JOYNACHARAN BATHARI: उनकी प्रतिभा ने उन्हें आकाशवाणी सिलचर, हाफलोंग, डिब्रूगढ़ और शिलांग जैसे प्रतिष्ठित रेडियो स्टेशनों तक पहुँचाया, जहाँ उनके गीतों की गूंज वर्षों तक श्रोताओं को मोहती रही।
उन्होंने हाफलोंग, माईबांग, सिलचर, अगरतला, डिफू, गुवाहाटी और दिल्ली तक के सांस्कृतिक मंचों पर अपने गीतों और वादन के माध्यम से दिमासा संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया।
SHRI JOYNACHARAN BATHARI: वाद्य संगीत में दक्षता
गायन के साथ-साथ वे दिमासा पारंपरिक वाद्ययंत्रों के भी ज्ञाता रहे हैं।
- “खरम” (पारंपरिक ढोल)
- “मुरी” (बांसुरी)
इन वाद्ययंत्रों की मधुरता और लोकभावना को उन्होंने नई पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य पूरी निष्ठा से किया। उनके माध्यम से कई सांस्कृतिक सम्मेलनों में दीमा हसाओ जिले की पहचान बनी रही।
सामाजिक नेतृत्व और परंपराओं का पालनकर्ता
SHRI JOYNACHARAN BATHARI: 31 जुलाई 1998 को उपमंडल कार्यालय, हाफलोंग से सेवा निवृत्ति के बाद भी, उनका सामाजिक योगदान थमा नहीं।
- 2001 से 2007 तक मौजादार, हाफलोंग मौजा
- 1987 से 2001 और 2012 से 2020 तक खुनांग (गाँव बुरा), सैंजा राजी
- 1979 से 1987 तक सहायक खुनांग
वे न केवल एक सांस्कृतिक प्रतिनिधि रहे, बल्कि पुजारी के रूप में भी दिमासा धर्म और परंपराओं का पालन करते रहे। एनजीओ “जदीखे नैशो होशोम” (दिमासा एपेक्स बॉडी) से उनका जुड़ाव उनकी सेवा भावना और सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रतीक रहा।
SHRI JOYNACHARAN BATHARI: सम्मान और पहचान
श्री बाथरी की सेवाओं को कई महत्वपूर्ण मंचों से सराहा गया:
- 2013 – प्रतिमा बरुआ पांडे स्मारक पुरस्कार, अखिल असम छात्र संघ (AASU)
- 2018 – लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, अखिल भारत हिंदू सम्मेलन, असम
- 2018 – जोहाया बाथरी पुरस्कार, बाथरी सेंगफोंग मेल
ये सम्मान इस बात का प्रमाण हैं कि उन्होंने अकेले दम पर एक लोक समुदाय की सांस्कृतिक आवाज़ को देश के सामने रखा।
84 की उम्र में भी संजीवनी की तरह सक्रिय
आज, 84 वर्ष की आयु में भी, श्री बाथरी गाते हैं, बजाते हैं, और दिमासा समुदाय को अपनी जीवंत ऊर्जा से प्रेरणा देते हैं। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि संस्कृति को जीवित रखने के लिए संस्थाएं नहीं, जुनून चाहिए — और वह जुनून श्री जोयनाचरण बाथरी में प्रचुर मात्रा में है।
एक जीवित धरोहर, जो सम्मान का हकदार है
SHRI JOYNACHARAN BATHARI: श्री बाथरी केवल एक गायक नहीं, बल्कि एक पीढ़ी के सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं। उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्मों से यह सिद्ध किया है कि परंपराएं केवल पुस्तकों में नहीं, सांस्कृतिक कर्मशीलों के जीवन में फलती-फूलती हैं। दिमासा संस्कृति के इस मसीहा को भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर विशेष स्थान दिया जाना चाहिए।