Shekhar Kapur: शेखर कपूर भारत के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली फिल्म निर्देशकों में से एक हैं, जिन्होंने न केवल भारतीय सिनेमा में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय फिल्मों की प्रतिष्ठा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
वर्तमान में वे ICAEW (Institute of Chartered Accountants in England and Wales) में एक फेलो हैं और भारतीय सिनेमा की छवि को वैश्विक पटल पर नए रंग देने के लिए जाने जाते हैं। उनकी फिल्में न केवल कलात्मक दृष्टिकोण से समृद्ध होती हैं, बल्कि समाज को गहरे और सार्थक संदेश भी देती हैं।
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Shekhar Kapur: सिनेमा को संस्थागत योगदान
कपूर ने भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII) के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है, जहाँ उन्होंने उभरते फिल्मकारों का मार्गदर्शन किया और शिक्षा प्रणाली में नए दृष्टिकोण जोड़े।
इसके अतिरिक्त, वे वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म महोत्सव (IFFI) के निदेशक भी हैं, जहाँ वे भारतीय फिल्मों की वैश्विक पहुंच को और सशक्त बना रहे हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
6 दिसंबर, 1945 को लाहौर, ब्रिटिश भारत में जन्मे शेखर कपूर ने सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। इसके पश्चात उन्होंने यूनाइटेड किंगडम में ICAEW के साथ चार्टर्ड अकाउंटेंसी पूरी की और एक पेशेवर करियर की ओर अग्रसर हुए।
निर्देशन की शुरुआत और ‘मासूम’ की सफलता
उन्होंने फिल्म निर्देशन में पदार्पण 1983 में किया जब उन्होंने “मासूम” फिल्म का निर्देशन किया। इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह और शबाना आज़मी जैसे उम्दा कलाकारों ने अभिनय किया। “मासूम” को उस वर्ष सात फिल्मफेयर नामांकन प्राप्त हुए, जिनमें से पाँच पुरस्कार उसने अपने नाम किए।
‘मिस्टर इंडिया’: व्यावसायिक और कलात्मक सफलता
इसके बाद उन्होंने 1987 में “मिस्टर इंडिया” जैसी कालजयी फिल्म बनाई, जिसमें अनिल कपूर, श्रीदेवी और अमरीश पुरी मुख्य भूमिकाओं में थे। यह फिल्म न केवल व्यावसायिक रूप से सफल रही बल्कि आलोचकों द्वारा भी इसे भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में गिना गया। इस फिल्म का “मोगैंबो खुश हुआ” संवाद आज भी भारतीय पॉप संस्कृति का हिस्सा है।
‘बैंडिट क्वीन’ और अंतर्राष्ट्रीय पहचान
1994 में, शेखर कपूर ने “बैंडिट क्वीन” का निर्देशन किया, जो फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म का प्रीमियर 1994 के कान फिल्म महोत्सव के डायरेक्टर्स फोर्टनाइट सेक्शन में हुआ। “बैंडिट क्वीन” को वैश्विक स्तर पर काफी प्रशंसा मिली और इसे एक सशक्त जीवनीपरक फिल्म के रूप में सराहा गया।
‘एलिजाबेथ’ श्रृंखला और ऑस्कर नामांकन
इसके पश्चात शेखर कपूर ने पश्चिमी सिनेमा की ओर रुख किया और “एलिजाबेथ” (1998) का निर्देशन किया, जिसमें केट ब्लैंचेट ने रानी एलिज़ाबेथ प्रथम की भूमिका निभाई। यह फिल्म अकादमी पुरस्कारों में नामांकित हुई और इसने BAFTA व गोल्डन ग्लोब जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भी जीते। इस फिल्म की सफलता ने कपूर की एक अंतरराष्ट्रीय फिल्मकार के रूप में पहचान को और मजबूत किया।
वैश्विक परियोजनाओं की ओर कदम
“एलिजाबेथ: द गोल्डन एज” के माध्यम से उन्होंने इस कहानी को आगे बढ़ाया, जो एक बार फिर ऑस्कर नामांकन और कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए चयनित हुई। उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान और प्रतिष्ठा इस श्रृंखला से अत्यधिक सुदृढ़ हुई।
‘फोर फेदर्स’ और स्टेज प्रोडक्शंस
“एलिजाबेथ” के बाद शेखर कपूर ने कई अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं में भी काम किया। उन्होंने “फोर फेदर्स” जैसी फिल्म का निर्देशन किया, जिसमें हीथ लेजर जैसे हॉलीवुड अभिनेता ने अभिनय किया। इसके साथ-साथ उन्होंने डिजिटल स्टोरीटेलिंग, लघु फिल्मों, और स्टेज-थिएटर के क्षेत्र में भी कदम रखा।
‘बॉम्बे ड्रीम्स’ और ए. आर. रहमान की उड़ान
स्टेज प्रोडक्शन की बात करें तो, उन्होंने प्रसिद्ध संगीतकार एंड्रयू लॉयड वेबर के साथ मिलकर “बॉम्बे ड्रीम्स” नामक स्टेज शो का निर्माण किया। यह शो ब्रॉडवे और वेस्ट एंड में चला और अत्यंत लोकप्रिय हुआ। इस शो ने ए. आर. रहमान को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई।
तकनीक, TED Talks और MIT में शोध
शेखर कपूर हमेशा से तकनीक और कहानी कहने के नए माध्यमों में रुचि रखते रहे हैं। उन्होंने MIT जैसे संस्थान में कहानी कहने और नई तकनीकों के मिश्रण पर शोध कार्य किया है।
इसके अलावा उन्होंने TED टॉक्स सहित कई वैश्विक मंचों पर विचार प्रस्तुत किए हैं, जहाँ उन्होंने डिजिटल युग में सिनेमा और कल्पनाशीलता की भूमिका पर गहन चर्चा की।
पर्यावरण के प्रति सजगता और ‘पानी’
एक फिल्मकार होने के अलावा शेखर कपूर पर्यावरण संरक्षण को लेकर भी सजग हैं। वे जल संकट को लेकर विशेष रूप से चिंतित रहे हैं, और इसी विषय को केंद्र में रखकर उन्होंने अपनी आगामी फिल्म “पानी” की अवधारणा विकसित की। यह फिल्म न केवल एक मनोरंजन का साधन होगी, बल्कि समाज को जल संरक्षण का गंभीर संदेश भी देगी।
एक रचनात्मक विरासत और प्रेरणा
शेखर कपूर की फिल्मों की विविधता और उनकी रचनात्मक दृष्टि ने भारतीय सिनेमा को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित किया है। “बैंडिट क्वीन” के माध्यम से उन्होंने भारत की यथार्थवादी और सशक्त कहानियों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, वहीं “एलिजाबेथ” जैसी फिल्मों के माध्यम से उन्होंने हॉलीवुड में भी अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी।
कहानीकारों की अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा
उनकी विरासत केवल उनकी फिल्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने अगली पीढ़ी के कहानीकारों और फिल्म निर्माताओं को जो प्रेरणा दी है, वह कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि कोई व्यक्ति कला, सामाजिक चेतना और तकनीकी नवाचार को साथ लेकर चले, तो वह न केवल एक सफल फिल्मकार बन सकता है, बल्कि एक विचारशील वैश्विक नागरिक भी बन सकता है।
पद्म भूषण सम्मान: एक राष्ट्रीय मान्यता
शेखर कपूर को उनके असाधारण योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वर्ष 2025 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
यह सम्मान उन्हें इसलिए प्रदान किया गया क्योंकि उन्होंने भारतीय सिनेमा की अंतर्राष्ट्रीय पहचान को नया आयाम दिया और फिल्मों के माध्यम से सामाजिक विषयों को सशक्त तरीके से प्रस्तुत किया। उनके कार्य ने भारत की सांस्कृतिक छवि को वैश्विक मंच पर सशक्त बनाया और देश की रचनात्मक शक्ति को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
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