SC: सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा दंपति को जो सलाह दी, उसने कानूनी गलियारों में संवेदनशीलता की एक मिसाल कायम की। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ के सामने पेश हुए।
एक मामले में कोर्ट ने पति-पत्नी से बेहद मानवीय और भावुक अपील की कि वे अपने मतभेदों को कोर्टरूम की दीवारों के बाहर शांतिपूर्वक हल करने की कोशिश करें और हो सके तो डिनर या कॉफी पर जाकर बातचीत करें।
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SC: बच्चे की कस्टडी
यह मामला एक फैशन उद्यमी महिला द्वारा अपने तीन साल के बेटे को विदेश यात्रा पर ले जाने की अनुमति मांगने से जुड़ा था। पति-पत्नी के बीच तलाक और बच्चे की कस्टडी को लेकर मामला पहले से ही अदालत में लंबित है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने गहरी चिंता व्यक्त की कि माता-पिता के बीच जारी यह कानूनी संघर्ष नन्हे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
कोर्ट ने कहा डिनर डेट पर मिलिए
पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा आपका तीन साल का बच्चा है। दोनों पक्षों के बीच इतने अहंकार की क्या आवश्यकता है? हम जानते हैं कि हमारी कोर्ट की कैंटीन डिनर के लिए आदर्श नहीं है,
लेकिन हम आपको एक अलग ड्रॉइंग रूम जरूर उपलब्ध करवा सकते हैं। आज रात डिनर पर मिलिए। एक कप कॉफी से भी बहुत कुछ सुलझ सकता है।
अतीत की कड़वाहट को पीछे छोड़ें
कोर्ट की यह टिप्पणी सिर्फ व्यंग्य नहीं थी, बल्कि उसमें एक गहरा संदेश छिपा था। दंपति अपने अतीत की कड़वाहट को पीछे छोड़ें और अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए मिलकर सोचें।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ एक छोटी-सी बातचीत या प्रयास भी रिश्तों को नया मोड़ दे सकता है।
दोनों पक्षों को बातचीत के लिए आरामदायक माहौल
इस भावनात्मक अपील के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को अगले दिन तक स्थगित करते हुए उम्मीद जताई कि पति-पत्नी के बीच संवाद से कोई सकारात्मक समाधान निकल सकेगा।
पीठ ने यह भी कहा कि वह दोनों पक्षों को बातचीत के लिए आरामदायक माहौल देने को तैयार है। ताकि मतभेद कम हों और बच्चे की परवरिश बेहतर ढंग से हो सके।
यह मामला केवल एक दंपति की कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि यह समाज को यह सीख देता है कि रिश्तों में संवाद, समझदारी और छोटे-छोटे मानवीय प्रयास कितने आवश्यक होते हैं।
कोर्ट की यह पहल दिखाती है कि न्याय सिर्फ कानून के नियमों तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसमें इंसानियत और संवेदनशीलता की भी अहम भूमिका होती है।
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