Satyapal Malik: जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का आज दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वे कई दिनों से बीमार चल रहे थे और उनका इलाज जारी था। उनके निधन की जानकारी उनके निजी सचिव केएस राणा ने दी।
सत्यपाल मलिक भारतीय राजनीति के एक ऐसे चेहरे रहे जो न केवल सत्ता के करीब रहे, बल्कि वक्त आने पर सरकार की नीतियों पर खुलकर सवाल भी उठाते रहे। उनका राजनीतिक जीवन उतार-चढ़ाव भरा रहा, लेकिन वे हमेशा अपने स्पष्ट और बेबाक विचारों के लिए जाने जाते रहे।
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Satyapal Malik: छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत
सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1968-69 में छात्र राजनीति से की थी। 1974 में उन्होंने बागपत से विधानसभा चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बनने का मौका पाया।
चौधरी चरण सिंह के करीबी माने जाने वाले मलिक लोक दल में शामिल हुए और पार्टी के महासचिव भी बने। इसके बाद 1980 में वे लोक दल की ओर से राज्यसभा पहुंचे।
1984 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए और 1986 में उन्हें दोबारा राज्यसभा में भेजा गया। लेकिन राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स घोटाले के आरोप लगने के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।
पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी
इसके बाद वे जनता दल में शामिल हुए और 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने। उन्हें संसदीय कार्य और पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई। 2004 में सत्यपाल मलिक ने बीजेपी का दामन थाम लिया।
हालांकि उस साल के लोकसभा चुनाव में उन्हें बागपत से रालोद प्रमुख अजीत सिंह से हार का सामना करना पड़ा।
इसके बावजूद मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विचार करने वाली संसदीय समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया, लेकिन उन्होंने विधेयक पर सरकार से अलग राय दी।
2017 में बने बिहार के राज्यपाल
2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके बाद अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया गया। उनके कार्यकाल के दौरान ही 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
बाद में उन्हें गोवा और फिर मेघालय का राज्यपाल बनाया गया। हालांकि जैसे-जैसे उनका कार्यकाल खत्म हुआ, वे मोदी सरकार के मुखर आलोचक बनकर सामने आए।
किसान आंदोलन के समय उन्होंने तीन कृषि कानूनों को लेकर बार-बार केंद्र सरकार की आलोचना की। इसके अलावा पुलवामा आतंकी हमले को लेकर भी उन्होंने सरकार पर सवाल उठाए।
उन्होंने यहां तक कहा कि अगर सरकार उनकी बातों की जांच कराए, तो वह राजनीति से संन्यास ले लेंगे। सत्यपाल मलिक की ये बातें न केवल चर्चा का विषय बनीं, बल्कि विपक्षी दलों ने भी उनके बयानों का सहारा लिया।