Sadhvi Rithambara: साध्वी ऋतंभरा, एक ऐसा नाम, जिसको याद करते है अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन की गूंज सुनाई देने लगती है। उनका जीवन राष्ट्रभक्ति, धर्म सेवा और सामाजिक कल्याण की प्रेरणादायक मिसाल है। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
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Sadhvi Rithambara: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सम्मानित किया
जो उनके दशकों लंबे समर्पण और योगदान की एक महत्वपूर्ण मान्यता है। साध्वी ऋतंभरा उत्तर प्रदेश की उन आठ प्रमुख हस्तियों में से एक हैं जिन्हें इस वर्ष राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा सम्मानित किया गया।
पंजाब के लुधियाना जिले के दोराहा में जन्मी साध्वी ऋतंभरा ने अध्यात्म की राह पर चलते हुए स्वामी परमानंद जी को अपना गुरु माना। उन्होंने 1982 में हरिद्वार में उनसे दीक्षा ली और यहीं से उनका सेवा का सफर शुरू हुआ।
साध्वी ऋतंभरा न केवल एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व हैं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन की वाहक भी हैं। उन्होंने “वात्सल्य ग्राम” नामक संगठन की स्थापना की, जो अनाथ और निराश्रित बच्चों, बेसहारा महिलाओं और बुजुर्गों के लिए घर, परिवार और शिक्षा की एक नई परिकल्पना प्रस्तुत करता है।
इस संस्था में बच्चों को केवल भोजन और शिक्षा नहीं, बल्कि एक संपूर्ण पारिवारिक वातावरण प्रदान किया जाता है, जिसमें वे ममता, दया और संस्कारों के साथ बड़े होते हैं।
दीदी माँ” के नाम से भी जाना जाता है
उनकी प्रसिद्ध पंक्ति “विश्वनाथ और रघुनाथ की धरती पर कोई अनाथ कैसे हो सकता है?” उनके सेवा भाव और दर्शन को उजागर करती है। साध्वी ऋतंभरा को लोग “दीदी माँ” के नाम से भी जानते हैं, और यही नाम उनके वात्सल्य और करुणा का परिचायक बन गया है।
राम मंदिर आंदोलन में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा है। 6 दिसंबर 1992 को जब लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंचे, उस दिन साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती के जोशीले भाषणों ने आंदोलन को नई ऊर्जा दी।
जनसमूह को दिशा देने की कोशिश
उस समय लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अशोक सिंघल जैसे बड़े नेता कारसेवकों को नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन भीड़ बार-बार उग्र हो रही थी।
उस तनावपूर्ण माहौल में साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती और आचार्य धर्मेन्द्र ने मंच से स्थिति को संभाला और जनसमूह को दिशा देने की कोशिश की।
उनका जीवन केवल आंदोलन और संघर्ष तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वे आज भी समाजसेवा और आध्यात्मिक शिक्षा के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए सक्रिय हैं। उन्होंने जीवनभर यह संदेश दिया है कि सच्चा धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि पीड़ित मानवता की सेवा है।
साध्वी ऋतंभरा का व्यक्तित्व, उनके विचार और उनका काम एक ऐसे युग का प्रतीक है, जहाँ धर्म, राष्ट्र और सेवा एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं। पद्म भूषण सम्मान उनके समर्पण की स्वीकृति मात्र नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति उनकी निष्ठा और समाज के प्रति करुणा का सार्वजनिक सम्मान है।
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