सदानंदन मास्टर: देश की संवैधानिक गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने चार प्रतिष्ठित नागरिकों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। इस सूची में जिन नामों को स्थान मिला है, उनमें एक नाम अपने संघर्ष, साहस और राष्ट्रनिष्ठा के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है—C सदानंदन मास्टर।
अन्य नामों में पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, आतंकवादी अजमल कसाब के खिलाफ मुकदमा लड़ने वाले विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम और इतिहासकार मीनाक्षी जैन शामिल हैं। यह मनोनयन 13 जुलाई को घोषित हुआ और देश की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत करता है।
Table of Contents
सदानंदन मास्टर: सबसे अलग नाम, सबसे गहरी कहानी
इस सूची में सदानंदन मास्टर का नाम सबसे अलग इसलिए है क्योंकि यह वही व्यक्ति हैं जिनके दोनों पैर 1994 में वामपंथी गुंडों ने इसलिए काट दिए थे क्योंकि उन्होंने वामपंथी विचारधारा को छोड़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मार्ग चुना था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा,
“श्री सी. सदानंदन मास्टर का जीवन साहस और अन्याय के आगे न झुकने की प्रतिमूर्ति है। हिंसा और धमकी भी राष्ट्र विकास के प्रति उनके जज्बे को डिगा नहीं सकी। एक शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनके प्रयास सराहनीय हैं।
युवा सशक्तिकरण के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता है। राष्ट्रपति जी द्वारा राज्यसभा के लिए मनोनीत होने पर उन्हें बधाई। सांसद के रूप में उनकी भूमिका के लिए शुभकामनाएँ।”
कौन हैं C सदानंदन मास्टर?
61 वर्षीय सदानंदन मास्टर केरल के कन्नूर जिले से हैं। वे पेशे से शिक्षक और विचार से समर्पित स्वयंसेवक हैं। उनके पिता और भाई दोनों कम्युनिस्ट थे, फिर भी उन्होंने राष्ट्रवादी विचारधारा को अपनाया और संघ कार्यों में सक्रिय रूप से जुड़ गए।
12वीं तक वे संघ से जुड़े रहे, लेकिन कॉलेज में वामपंथी विचारों से कुछ समय के लिए प्रभावित हुए। मगर मलयालम कविता ‘भारत दर्शानांगल’ ने उनकी सोच को फिर राष्ट्रवाद की ओर मोड़ा, और वे संघ की मुख्यधारा में लौट आए।
भाजपा ने उनके समर्पण को पहचाना और उन्हें 2016 में कूथूपरम्बू विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। उनका मुकाबला KK शैलजा से हुआ, जो आगे चलकर केरल की स्वास्थ्य मंत्री बनीं। वे चुनाव हार गए लेकिन संघ कार्यों से दूर नहीं हुए।
1994: जब राष्ट्रनिष्ठा की कीमत चुकानी पड़ी
25 जनवरी 1994 को, वे मट्टनूर की एक सरकारी स्कूल में पढ़ाते थे और बहन की शादी की तैयारियों के बाद लौट रहे थे। तभी CPI(M) से जुड़े गुंडों ने उन्हें घेर लिया और बेरहमी से पीटने के बाद उनके दोनों पैर कुल्हाड़ी से काट दिए।
हमलावरों ने यह भी सुनिश्चित किया कि कोई बचाने न आए, इसलिए बम धमाका कर डर फैलाया। मास्टर को खून से लथपथ सड़क पर छोड़ दिया गया। बाद में उन्हें अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन उनके कटे हुए पैर फिर नहीं जोड़े जा सके।
जहाँ से गिरे, वहीं से उठे: अदम्य साहस की मिसाल
गंभीर चोटों के बावजूद मास्टर का साहस नहीं टूटा। छह महीनों के अंदर उन्होंने नकली पैरों के सहारे चलना सीखा और संघ कार्यों में पहले से अधिक जोश से लौट आए। उनका संदेश साफ था—डर कर नहीं, लड़कर जीना है।
भाजपा को केरल में मजबूत करने में उनका योगदान बड़ा रहा। उनके प्रचार अभियानों में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए। 2007 में हमलावरों को सजा मिली और 2025 में केरल हाई कोर्ट ने उस सजा को फिर से बरकरार रखा।
आज वही शिक्षक, वही स्वयंसेवक, अब राज्यसभा सांसद
जो कभी वामपंथी हिंसा का शिकार बना, वही अब भारत के उच्च सदन का प्रतिनिधि बन चुका है। सदानंदन मास्टर का जीवन इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्र के लिए समर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाता, वह इतिहास रचता है।
उनका राज्यसभा मनोनयन विचारधारा की विजय है, उन लाखों राष्ट्रभक्तों के लिए प्रेरणा जो वर्षों से हिंसा, उपेक्षा और प्रपंचों के बीच भी डटे रहे हैं।
सदानंदन मास्टर प्रतीक हैं उस भारत के जो बार-बार घायल होकर भी उठ खड़ा होता है और राष्ट्रनिर्माण की ओर कदम बढ़ाता है।