Russia-Ukraine War: यूक्रेन ने रूस पर ऐसा हमला किया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया। यूक्रेन ने रूस के अंदर जाकर उसके पांच अलग-अलग मिलिट्री एयरबेस को निशाना बनाया।
खास बात ये रही कि यूक्रेन ने इस हमले के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया, और उन्हें रूस में भेजने का तरीका बेहद चौंकाने वाला था। इस हमले ने पर्ल हार्बर हमले की याद दिला दी है।
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Russia-Ukraine War: यूक्रेन ड्रोन आम ट्रकों में छिपाकर रूस भेजे
यूक्रेन की खुफिया एजेंसी ने ये ड्रोन सीधे उड़ाकर नहीं भेजे, क्योंकि रूस की सीमा पर एयर डिफेंस बहुत मजबूत है। इसलिए यूक्रेन ने ये ड्रोन आम ट्रकों में छिपाकर रूस के अंदर भेजे।
इन ट्रकों में एक नकली छत बनाई गई थी, जिसके नीचे बम और विस्फोटक से लैस छोटे-छोटे ड्रोन रखे गए थे। ये ट्रक रूस के अंदर कई सौ किलोमीटर दूर तक ले जाए गए और एयरबेस के पास खड़े किए गए।
जब सही समय आया, तो दूर से रिमोट कंट्रोल से ट्रकों की सीलिंग खोली गई और ड्रोन उड़ाकर एयरबेस पर खड़े विमानों को निशाना बनाया गया। ये ड्रोन रूसी सेना के उन विमानों को नुकसान पहुंचाने के लिए भेजे गए थे जो परमाणु हथियार ढोने की क्षमता रखते हैं। इस हमले को यूक्रेन ने “स्पाइडर-वेब” नाम दिया।
न्यूक्लियर सबमरीन बेस के पास बम गिरे
हमले में रूस के मुरमांस्क और इरकुत्स्क इलाकों के एयरबेस को खासा नुकसान पहुंचा। रूस ने माना कि उसके कुछ एयरक्राफ्ट्स तबाह हुए हैं, हालांकि उसने यह भी कहा कि कई ड्रोन समय पर रोक दिए गए। रूस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया है जिन्हें शक है कि उन्होंने अंदर से मदद की थी।
इसके अलावा यूक्रेन ने रूस के रेलवे पुलों को भी निशाना बनाया, जिससे दो जगह ट्रेन हादसे हुए। वहीं एक न्यूक्लियर सबमरीन बेस के पास भी बम गिराए गए, जिससे रूस की सैन्य गतिविधियों को झटका लगा।
ये हमला तकनीकी रूप से बहुत ही एडवांस और प्लानिंग के साथ किया गया था। यूक्रेन ने इसे अंजाम देने के लिए डेढ़ साल तक तैयारी की थी। ड्रोन हमले इतने सटीक थे कि रूस का महंगा एयर डिफेंस सिस्टम उन्हें रोक नहीं सका।
हजारों ट्रक आते है नेपाल, बांग्लादेश और भूटान से
इस तरह के हमले भारत जैसे देशों के लिए भी एक चेतावनी हैं। हमारे यहां नेपाल, बांग्लादेश और भूटान से हर दिन हजारों ट्रक आते हैं। ऐसे में अगर कोई देश ट्रकों का इस्तेमाल इस तरह की खतरनाक योजना के लिए करे, तो बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है। सुरक्षा एजेंसियों को अब पारंपरिक तरीकों से हटकर सोचने की जरूरत है।
आज की जंग अब सीधी लड़ाई नहीं रह गई है। दुश्मन अब चुपचाप आता है। कभी ट्रक बनकर, कभी ड्रोन बनकर। और यही वजह है कि हर देश को अपनी सीमाओं के साथ-साथ अंदरूनी सुरक्षा को भी बेहद मजबूत बनाना होगा।
पर्ल हार्बर हमला
दिसंबर 1941 में जापान ने अमेरिका पर एक ऐसा हमला किया, जो इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया। यह हमला हवाई द्वीपसमूह के ओआहू द्वीप पर स्थित अमेरिकी नौसेना के पर्ल हार्बर बेस पर किया गया था।
सुबह 7 बजकर 48 मिनट पर जापानी नेवी के 177 लड़ाकू विमानों ने अचानक आकाश से हमला बोल दिया, जब अमेरिकी सैनिकों की एक बड़ी संख्या सो रही थी या अपने सामान्य कामों में लगी थी।
इस हमले का मकसद अमेरिका की नौसेना को इतने बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाना था कि वह दक्षिण-पूर्व एशिया में जापान के सैन्य कदमों को रोकने की स्थिति में न रहे। पहले हमले में जापानी विमानों ने अमेरिकी हैंगरों और एयरक्राफ्ट्स पर बम गिराए और युद्धपोतों पर टॉरपीडो दागे।
महज पहले पांच मिनट में चार बड़े युद्धपोतों को गंभीर नुकसान पहुंचा, जिनमें यूएसएस ओक्लाहोमा और यूएसएस एरिजोना प्रमुख थे।
हजारों सैनिकों की मौत
यूएसएस एरिजोना पर गिरा एक बम बारूद के गोदाम पर फटा, जिससे जहाज तुरंत डूब गया और उसके 1,177 नौसैनिकों की मौत हो गई। इस हमले की भयावहता यहीं नहीं रुकी।
लगभग एक घंटे बाद जापान ने 163 और फाइटर जेट भेजे, जिन्होंने दोबारा हमला किया और दो घंटे के भीतर अमेरिका के 21 युद्धपोतों को डुबो दिया या उन्हें गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया।
इसके अलावा, 188 अमेरिकी एयरक्राफ्ट भी नष्ट हो गए और कुल मिलाकर 2,403 अमेरिकी सैनिक और नागरिकों की जान चली गई। यह हमला अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन इसी घटना ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में खुलकर उतरने के लिए मजबूर कर दिया।
बाद में, कई क्षतिग्रस्त जहाजों की मरम्मत की गई और उन्होंने फिर से युद्ध में भाग लिया। पर्ल हार्बर हमला न सिर्फ एक सैन्य हमला था, बल्कि यह एक ऐसा मोड़ साबित हुआ जिसने विश्व युद्ध की दिशा ही बदल दी। आज भी यह घटना युद्ध रणनीतियों और सुरक्षा चूक के सबसे बड़े उदाहरणों में गिनी जाती है।
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