Monday, December 1, 2025

संघ का नया शक्तिकेंद्र: अगले 100 साल तक केशव कुंज से आलोकित होगा देश

संघ

नए परिसर का अनावरण और सांकेतिक महत्व

19 फरवरी 2025 को दिल्ली के झंडेवाला क्षेत्र में संघ के नए परिसर के तीन टावर पहली बार पूर्ण रूप में सामने आए।

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मीडिया और स्वयंसेवक इस दृश्य के बीच मौजूद थे, जहाँ कोई धार्मिक मंदिर या चमकदार कॉरपोरेट कैंपस नहीं, बल्कि संघ का नया केंद्रीय तंत्र आकार ले चुका था।

परिसर का उद्भव स्वयं संगठन की शताब्दी यात्रा में उभरी नई ऊर्जा और रणनीति का संकेत है। केशव कुंज नाम से निर्मित यह नया मुख्यालय तीन इमारतों, साधना, प्रेरणा और अर्चना में संयोजित है।

लगभग 300 कमरों, तीन बड़े सभागारों, एक पांच-बेड अस्पताल, सुसज्जित लॉन और परिसर में स्थित हनुमान मंदिर के साथ यह संघ की राजधानी में उभरती नई सत्ता-पंक्ति का ठोस ढांचा बन गया है।

अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर स्पष्ट करते हैं कि संघ का मुख्यालय नागपुर ही रहेगा, किन्तु दिल्ली का राजनीतिक और प्रशासनिक महत्व ऐसा है कि राजधानी में विस्तृत ढांचा होना संगठन के लिए अनिवार्य था।

इस परिसर का उद्देश्य दोनों शहरों में गतिविधियों के संतुलन को नए रूप में स्थापित करना है।

आकार, संरचना और निर्माण की पूरी कथा

चार एकड़ भूमि पर फैले लगभग पाँच लाख वर्ग फीट के इस भवन समूह को 150 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया।

संघ पदाधिकारियों का दावा है कि यह संपूर्ण राशि 75,000 से अधिक व्यक्तिगत दानदाताओं से प्राप्त हुई, जिनमें किसी का योगदान पाँच रुपये जितना छोटा और किसी का योगदान लाखों तक रहा। किसी संस्थागत या सरकारी अनुदान का उपयोग नहीं किया गया।

इस विशाल परिसर का संचालन शुरू हो चुका है। संघ के वरिष्ठ नेताओं के दफ्तर यहाँ स्थानांतरित किए जा रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर की बैठकें लगातार आयोजित हो रही हैं।

यह भवन केवल संगठन का ठिकाना नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीतिक गतिविधियों का संचालन केंद्र बनकर उभर रहा है।

मुख्य प्रवेशद्वार से भीतर प्रवेश करते ही सादगी और भव्यता का मिश्रण सामने आता है। अशोक सिंघल सभागार बड़े कार्यक्रमों के आयोजन में सक्षम है।

एक टावर कार्यालय, चिकित्सालय और फिजियोथेरेपी के लिए समर्पित है, जबकि अन्य दो आवासीय संरचनाओं के रूप में उपयोग में हैं।

पुस्तकालय और शोध केंद्र की भूमिका

दसवीं मंज़िल पर स्थित ‘केशव पुस्तकालय’ में दस हज़ार से अधिक पुस्तकें संकलित हैं। इस वर्ष नियुक्त 31 वर्षीय पुस्तकालय-प्रभारी अंकित बताते हैं कि यहाँ शोधार्थियों का लगातार आना-जाना बढ़ता जा रहा है।

धार्मिक ग्रंथों से लेकर संघ के इतिहास से जुड़ा साहित्य मौजूद है, जिसके कारण पीएचडी और उच्च अध्ययन करने वाले विद्यार्थी यहाँ लंबे समय तक शोध करते देखे जाते हैं।

परिसर में भोजनालय, कैंटीन और 135 कारों की पार्किंग व्यवस्था है। स्थापत्य में राजस्थानी और गुजराती तत्वों को शामिल किया गया है जिन्हें ग्रेनाइट फ्रेम का सहारा दिया गया है ताकि लकड़ी के उपयोग में कमी रखी जा सके। इससे यह भवन परंपरा और टिकाऊपन दोनों का संयुक्त रूप बन गया है।

संघ की आत्म-छवि और दीर्घकालिक लक्ष्यों का संकेत

परिसर में उपलब्ध विशाल सुविधाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि संघ स्वयं को केवल एक संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण, जन-सेवा और वैचारिक मार्गदर्शन के दीर्घकालिक मंच के रूप में गढ़ रहा है।

सेवा कार्य, शोध गतिविधियाँ, युवा प्रशिक्षण और वरिष्ठ नागरिकों तक पहुँच जैसे लक्ष्यों को एक ही केंद्र में संयोजित करने की योजना इस परिसर में दिखाई देती है।

75,000 दानदाताओं द्वारा दिया गया धन, विपक्ष द्वारा इस निर्माण पर जताई गई आलोचना और संघ द्वारा इसे दिल्ली के महत्व के अनुरूप संसाधन केंद्र बताने के बीच का विरोधाभास इस भवन के राजनीतिक महत्व को और गहरा करता है।

संघ की सौ वर्षी परंपरा और भविष्य की दृष्टि

संघ की पारंपरिक गतिविधियों, दैनिक शाखाओं, आपदा राहत, सामाजिक सेवा, शिक्षण सहायता और विविध सहयोगी संगठनों, को नई राजधानी आधारशिला मिल गई है।

केशव कुंज इन गतिविधियों को अधिक केन्द्रीय, संगठित और आधुनिक आधार देता है, जो आगामी दशकों में इसके प्रभाव के विस्तार का संकेत है।

सरसंघचालक मोहन भागवत ने हाल के भाषणों में राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और दीर्घकालिक सामाजिक संगठन पर बल दिया है।

उन्होंने स्वयंसेवकों से कहा कि इस परिसर की भव्यता को काम की गुणवत्ता से सिद्ध करना संघ के लिए वास्तविक चुनौती है।

यह नया परिसर संघ के लिए तीन प्रमुख दिशाएँ खोलता है—राजधानी में प्रभावी उपस्थिति, कथा-निर्माण और शोध का विस्तार, और संस्थागत ढाँचों के साथ गहन साझेदारी। यह भवन इन सभी को स्थायी गति देता है।

विचार संघर्ष का भविष्य और दिल्ली का नया दृश्य

केशव कुंज केवल संघ का केंद्र नहीं, बल्कि एक मंच भी है। यहाँ आंतरिक बैठकों, प्रशिक्षण और रणनीति निर्माण के साथ-साथ राजनेता, शोधकर्ता और जन-प्रभावक भी आमंत्रित किए जाएँगे।

यह मिश्रण इसे केवल भवन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रभाव की प्रयोगशाला बनाता है।

दिल्ली, जो लगातार विचार और सत्ता के संघर्ष का केंद्र रही है, अब संघ के इस नए पते को भी उसी विमर्श में गिन रही है।

यहाँ से संघ अपनी कथा, आधुनिकता और परंपरा, अनुशासन और भव्यता, दोनों को एक साथ प्रस्तुत करेगा। विरोधी इसे वैचारिक विविधता के संकुचन की आशंका के रूप में देखेंगे।

स्थापत्य अक्सर मंशा को उजागर करता है। केशव कुंज के कमरे, सभागार और पुस्तकालय आने वाले दशकों की गतिविधियों, तर्कों और योजनाओं को आकार देंगे।

राजधानी को अब यह तय करना है कि यह नया प्रभाव उसके बहुस्तरीय संवाद का विस्तार करेगा या उसे सीमित करेगा।

Mudit
Mudit
लेखक 'भारतीय ज्ञान परंपरा' के अध्येता हैं और 9 वर्षों से भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा एवं राजनीति पर गंभीर लेखन कर रहे हैं।
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