Friday, April 18, 2025

रौनक खत्री: DU की छात्र राजनीति के गुंडों का हिन्दू विरोध

रौनक खत्री: दिल्ली विश्वविद्यालय के लक्ष्मीबाई कॉलेज में इन दिनों शोध कम और शोर अधिक सुनाई दे रहा है। इस शोर की शुरुआत उस वीडियो से हुई जिसमें कॉलेज की प्राचार्य डॉ. प्रत्यूष वत्सला एक कक्षा की दीवार पर गोबर का लेप करती नजर आईं। वीडियो वायरल हुआ, लोगों ने कयास लगाए—कुछ ने इसे वैज्ञानिक अनुसंधान का प्रयास माना, कुछ ने इसे cowbelt मानसिकता कहकर खारिज कर दिया।

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लेकिन जैसे ही इस बात की पुष्टि हुई कि यह कार्य एक सुव्यवस्थित शोध परियोजना का हिस्सा है, जो भारतीय पारंपरिक ज्ञान के आधार पर ताप नियंत्रण की प्रणाली को परखने के लिए किया जा रहा है, मामला स्पष्ट हो गया। यह शोध “पारंपरिक भारतीय ज्ञान का तापीय तनाव नियंत्रण में अनुप्रयोग” पर केंद्रित है, जो पूरी तरह प्रयोगशाला और विज्ञान के दायरे में आता है। फिर भी, इस विषय पर जिस प्रकार से प्रतिक्रिया आई, वह शिक्षित समाज की वैचारिक अपरिपक्वता का उदाहरण बन गई।

रौनक खत्री: डूसू अध्यक्ष का प्रवेश—विरोध नहीं, प्रदर्शन

रौनक खत्री: घटनाक्रम में नया मोड़ तब आया जब कांग्रेस की छात्र ईकाई NSUI का सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) का अध्यक्ष रौनक खत्री, कुछ छात्रों के साथ लक्ष्मीबाई कॉलेज में प्रिंसिपल कार्यालय में प्रवेश करता है। वीडियो में वह हाथ में गोबर की थैली लिए दिखता है, और कैमरों की उपस्थिति में दीवारों पर गोबर पोतता है। उसके बाद वह कॉलेज के बाथरूम में भी यही हरकत दोहराता है।

यह सब एक संगठित विरोध का हिस्सा बताया गया, लेकिन इसकी शैली, भाषा और प्रवृत्ति कहीं से भी ‘विरोध’ नहीं बल्कि ‘सस्ते शो’ की श्रेणी में आती है। विरोध तब वैचारिक होता है जब वह संवाद के लिए स्थान छोड़ता है, लेकिन यह तो सीधा संस्थान के सम्मान पर ही आघात था। राहुल गाँधी के अनुसरणकर्ता कांग्रेस के अराजक प्यादों से और क्या अपेक्षा की जा सकती है?

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जब वाइस प्रिंसिपल ने पूछा: “क्या आप इस कॉलेज के छात्र हैं?”

रौनक खत्री: घटनाक्रम के दौरान कॉलेज की वाइस प्रिंसिपल प्रो. लता शर्मा ने रौनक खत्री से सीधे पूछा, “क्या आप इस कॉलेज के छात्र हैं?” औपचारिक अनुशासन, और व्यवस्था के लिए पूछे गए इस प्रश्न पर रौनक खत्री बदतमीजी से इसका उत्तर देता है, “मैं डूसू का अध्यक्ष हूं, मेरी जिम्मेदारी है।” यहाँ कांग्रेस के ये नए नवेले नेता छात्र कम राजनीतिक गुंडों की तरह व्यवहार पर उतारू हो गए।

संस्कारहीनता की पराकाष्ठा

रौनक खत्री: जिस तरह से इस ‘विरोध’ को अंजाम दिया गया, वह साफ दर्शाता है कि ये टुकड़े टुकड़े गैंग के हिन्दू विरोधी छात्र नेता केवल पद और प्रदर्शन की आकांक्षा में है। इस पूरे घटनाक्रम में शिक्षण संस्था, शिक्षक समुदाय और शिक्षा की गरिमा का जिस तरह अपमान हुआ, वह एक गहरी चिंता का विषय है।

रौनक खत्री का व्यवहार एक गहरे नैतिक संकट की ओर संकेत करता है। ना उसे गोबर के महत्व की समझ है, ना भारतीय कृषि, आयुर्वेद और पर्यावरणीय परंपराओं का कोई ज्ञान है। उसके लिए यह केवल एक हथियार था, जबकि गोबर भारतीय परंपरा में उर्वरक, कीटाणुनाशक, और पर्यावरण शुद्धिकरण का साधन रहा है। यह सब तो तब है जब प्राचार्य शोध परियोजना के अंतर्गत इस प्राचीन भारतीय प्रणाली का उपयोग कर रही थीं। इसी रौनक खत्री ने करोड़ों हिन्दुओं के लिए पवित्र गोबर के खिलाफ क्रांति जैसे घटिया नारे अपनी सोशल मीडिया पर जारी किए हैं-

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गोबर का वैज्ञानिक आधार और सांस्कृतिक महत्व

भारतीय ग्रामीण जीवन में गोबर कभी अपशिष्ट नहीं रहा। वह घर की दीवारों को शीतल रखने, कीटाणु मुक्त रखने, और जलवायु अनुकूलन के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। आधुनिक शोध भी इसकी पुष्टि करते हैं कि गोबर में एंटी-रेडिएशन और ताप नियंत्रण की प्रवृत्तियाँ होती हैं। यह पूरी शोध परियोजना उसी दिशा में एक सकारात्मक प्रयोग थी।

परंतु रौनक खत्री जैसे छात्र नेता उस सोच का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने पारंपरिक ज्ञान को ‘पिछड़ापन’ और ‘हास्य का विषय’ बना दिया है। भारत का कौनसा ऐसा गाँव है जहाँ प्राचीन काल से घर की दीवारें और फर्श गोबर से नहीं लीपा जाता? हिन्दू पर्व त्यौहारों, हवन , पूजा में भी जमीन को पूजा के लिए शुद्ध बनाने के लिए गोबर से लीपना पड़ता है।

गिरती छात्र राजनीति की पहचान

रौनक खत्री: यदि दिल्ली विश्वविद्यालय जैसी प्रतिष्ठित संस्था में छात्र संघ के अध्यक्ष का स्तर इस प्रकार की हरकत तक आ चुका है, तो यह केवल एक व्यक्ति विशेष की समस्या नहीं, बल्कि एक संस्थागत चेतावनी है। आज छात्र नेता बनने के लिए विचार, अध्ययन और सामाजिक प्रतिबद्धता नहीं चाहिए—जरूरत है केवल ड्रामा, कैमरा, और कुछ वायरल बयान। यह ट्रेंड विश्वविद्यालयों को तो नुक़सान पहुँचा ही रहा है, बल्कि भविष्य की राजनीति की गुणवत्ता को भी खोखला कर रहा है।

शिक्षा नहीं, प्रचार की भूख

यह संपूर्ण प्रकरण इस बात का प्रतीक है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। जब शोध को नौटंकी से जवाब मिलेगा, जब शिक्षक को चुनौती देने का तरीका कीचड़ उछालना होगा, और जब विरोध का अर्थ सार्वजनिक मंचन बन जाएगा—तो यह देश केवल विकास नहीं, पतन की ओर भी दौड़ेगा।

डॉ. प्रत्यूष वत्सला ने जो किया, वह शोध की गरिमा थी। रौनक खत्री ने जो किया, वह छात्र राजनीति का चिढ़ाता हुआ कार्टून था। भारत को आज गांव, गाय और गोबर की ओर लौटने की नहीं, बल्कि इनका वैज्ञानिक और सामाजिक पुनर्पाठ करने की आवश्यकता है—जिसके लिए हमारे विश्वविद्यालयों को संस्कारवान नेतृत्व चाहिए, न कि सस्ती लोकप्रियता के भूखे किरदार।

डोनाल्ड ट्रंप जैसे एक्शन की जरूरत

हार्वर्ड डोनाल्ड ट्रंप donald trump harvard university

भारत के विश्वविद्यालयों जैसा वामपंथी कूड़ा अमेरिका के विश्वविद्यालयों में भी फैला है, जो अपने ही देश की संस्कृति और सभ्यता से दुश्मनी निभाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। हाल ही में ऐसे अराजक कीड़ों के इलाज में अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी के यहूदी विरोधी धार्मिक भेदभाव से निपटने के लिए सख्त कदम उठाते हुए कोलंबिया यूनिवर्सिटी का 400 मिलियन डॉलर का अनुदान रद्द कर दिया था।

इसके बाद ट्रंप प्रशासन ने दूसरे हार्वर्ड विश्वविद्यालय की $2.2 अरब से अधिक की ग्रांट और रिसर्च फंडिंग को भी फ्रीज़ कर दिया था, जिसमें समाजशास्त्र जैसे विषयों पर चल रहे अर्थहीन और समाजतोड़क बहुवर्षीय शोध शामिल थे। ट्रंप ने पहले ही कहा था कि वे विश्वविद्यालय परिसरों में कथित “मार्क्सवादी एजेंडे और वामपंथी ब्रेनवॉश” के विरोध में हैं। 2023 के एक भाषण में उन्होंने कहा था: “हम उन संस्थानों का गला आर्थिक रूप से घोंट देंगे जो हमारी सभ्यता के विरुद्ध प्रचार करते हैं।”

ऐसे ही अनेक यूनिवर्सिटी भारत में भी हैं। दिल्ली की जेएनयू, डीयू के कॉलेज, जामिया मिलिया इस्लामिया, कोलकाता की जादवपुर यूनिवर्सिटी, हैदराबाद की यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद से लेकर देश की कई युनिवर्सिटियों में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के यहूदी भेदभाव की तर्ज पर हिन्दू विरोधी धार्मिक भेदभाव के मामले सामने आते रहे हैं। यह यूनिवर्सिटी भी भारत सरकार के आर्थिक अनुदान से चलती हैं।

हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हिन्दू छात्रों को होली मिलन कार्यक्रम करने की अनुमति न देकर धार्मिक स्वतन्त्रता के उल्लंघन का मामला सामने आया था। भारत की संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था भी इस विश्वविद्यालय में लागू नहीं हो पाई है जिससे हर वर्ष हजारों अनुचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हिन्दू छात्रों के अधिकारों का हनन हो रहा है।

रौनक खत्री जैसे प्यादे गाय के विरोध में गोबर का महत्त्व जाने बिना ही भड़ककर हिन्दू विरोधी कदम उठाते रहते हैं, इसी पर कोई विदेशी शोध कर दे तो चुप हो जाएँगे। इन्हीं वामपंथियों ने कभी यूनिवर्सिटी में गौमांस पार्टी और किस ऑफ लव, भारत से आजादी जैसे देशविरोधी कार्यक्रम आयोजित किए थे, पर फिर भी भारत में अमेरिका जैसा सख्त कदम देखने में नहीं आया है। ऐसे में भारत में भी अमेरिका से सीख लेकर ऐसे संस्थानों पर सख्त कदम उठाने की माँग की जा रही है, जो देश में सांप्रदायिक भेदभाव और कट्टरता को बढ़ावा देते हैं।

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