पॉडकास्ट और उत्तराधिकारी विवाद के बाद सवालों के घेरे में रामभद्राचार्य
पॉडकास्ट में उठे सवाल और आलोचना
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का कद भारतीय संत समाज में अत्यंत ऊँचा माना जाता है। पर शुभंकर मिश्र के साथ उनके हालिया पॉडकास्ट में विवादास्पद बयानों के बाद उन पर सवाल उठ रहे हैं।
लोगों का मानना है कि उन्हें इस तरह के पॉडकास्ट में शामिल ही नहीं होना चाहिए था। यदि गए भी तो अन्य संतों का अपमान नहीं करना चाहिए था। लेकिन उनके तेवर और वक्तव्यों पर सवाल उठ रहे हैं।
प्रेमानंद महाराज के बारे में कीं अपमानजनक बातें
स्वामी रामभद्राचार्य ने पॉडकास्ट में कहा कि, “पहले विद्वान लोग ही कथावाचन किया करते थे, लेकिन आजकल मूर्ख लोग धर्म का ज्ञान दे रहे हैं। चमत्कार नहीं, मेरे लिए बालक के समान हैं प्रेमानंद। चमत्कार है तो मैं चैलेंज करता हूं मेरे सामने प्रेमानंद महाराज एक शब्द संस्कृत बोलकर दिखा दें या फिर मेरे कहे श्लोकों का अर्थ हिंदी में समझा दें।”

उनकी विद्वता पर कोई संदेह नहीं, लेकिन बार-बार स्वयं को सर्वज्ञानी सिद्ध करने का प्रयास और अन्य संतों को ‘अनपढ़’ या ‘मूर्ख’ कह देने की शैली को लोग अनुचित मान रहे हैं। यही कारण है कि उनका यह पॉडकास्ट संत समाज की एकता और परंपरा पर चोट करता प्रतीत हुआ।
आदि शंकराचार्य पर भी उठाया सवाल
पॉडकास्ट में बड़ा विवाद तब खड़ा हुआ जब उन्होंने आदि शंकराचार्य तक की व्याख्या को गलत रूप में प्रस्तुत कर शूद्रों की स्थिति के लिए आदि शंकराचार्य को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया। जबकि उसी पॉडकास्ट में जन्म से जाति व्यवस्था को स्वीकार भी किया।
ऐसे विरोधाभासी बयान के बाद शांकर सम्प्रदाय के संन्यासियों में रोष फैल गया। महानिर्वाणी अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी चिदाम्बरानंद सरस्वती महाराज ने फेसबुक के माध्यम से विरोध दर्ज किया।

उधर स्वामी गोविंदानंद सरस्वती महाराज ने भी लिखित रूप में विरोध दर्ज करवाया।

पॉडकास्ट सुनने पर यह प्रतीत होता है कि यदि वार्ता और खिंचती तो संभव था कि वे नीम करौली बाबा जैसे संतों को भी साधारण सिद्ध करने की कोशिश करते। इस रवैये से उनके संत समाज के प्रति दृष्टिकोण पर सवाल उठने लगे।
राममंदिर निर्माण के संदर्भ में पूछे गए प्रश्न पर रामभद्राचार्य महाराज से लोगों को उम्मीद थी कि वे इसे केवल प्रभु राम की इच्छा बताएँगे। लेकिन उनका उत्तर वैसा नहीं रहा, उन्होंने अधिकांश क्रेडिट स्वयं को देने की कोशिश की।
इसके अलावा हनुमान चालीसा में कथित त्रुटियों को सुधारने का उनका दावा भी कई लोगों को अखरा। ज्ञातव्य है कि इस विषय पर पूर्व में भी बहुत विवाद हो चुका है एवं अधिकांश संत उनके हनुमान चालीसा को सुधारने के दावे को नकार चुके हैं।
उत्तराधिकारी जय मिश्रा पर लगे थे नाबालिग से यौन शोषण के आरोप
विवाद केवल पॉडकास्ट तक सीमित नहीं रहा। उनके उत्तराधिकारी रामचंद्रदास उर्फ जय मिश्रा पर 13 वर्षीय नाबालिग छात्र के साथ दुष्कर्म और धमकाने के गंभीर आरोप लग चुके हैं। पीड़ित के पिता ने कहा था कि आरोपी ने दर्द का बहाना बनाकर लड़के को बुलाया और उसके साथ कुकर्म किया।

शिकायत के अनुसार, घटना फरवरी 2022 की है जब तुलसीपीठ की श्रीमद्भागवत कथा के दौरान जय मिश्रा छात्र को साथ ले गए। आरोप है कि 13 फरवरी की शाम को जय मिश्रा ने अपने कमरे में बुलाकर दुष्कर्म किया और रिवॉल्वर दिखाकर धमकी दी कि अगर उसने किसी को बताया तो गोली मार देंगे।
पीड़ित छात्र ने भय के कारण घटना तुरंत नहीं बताई। बाद में परिवार को जानकारी देने पर मामला मिर्जापुर के लालगंज थाने पहुँचा, जहाँ पॉक्सो एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ था। यह आरोप सामने आते ही धार्मिक जगत और तुलसीपीठ दोनों में हलचल मच गई थी।
रामभद्राचार्य की सफाई और साजिश का आरोप
इन आरोपों पर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने वीडियो संदेश जारी किया और कहा कि यह सब तुलसीपीठ को बदनाम करने की साजिश है। उन्होंने इस आरोप को मनगढ़ंत और उनकी लोकप्रियता को चोट पहुँचाने का षड्यंत्र बताया।

फिर भी, सवाल उठ रहे हैं कि संतों पर टिप्पणी करने वाले स्वामी रामभद्राचार्य ने जय मिश्रा को उत्तराधिकारी पद से मुक्त क्यों नहीं किया। इसके बाद भी वे बड़े राजनीतिक और धार्मिक कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल होते रहे।
जय मिश्रा पर लगे आरोपों से तुलसीपीठ की छवि धूमिल हुई है और रामभद्राचार्य के निर्णय पर भी सवाल उठ रहे हैं। हालाँकि यह हाई प्रोफाइल केस समय के साथ रफा दफा कर दिया गया पर अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया।

कठघरे में रामभद्राचार्य
आए दिन अपने विवादित बयानों से चर्चा में रहने वाले स्वामी रामभद्राचार्य पर यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वे वास्तव में उन ऊँचे आदर्शों को मानते हैं जिनकी अपेक्षा वे दूसरों से करते हैं और जिन पर सवाल खड़े करते हैं?
यदि ऐसा है तो उनके उत्तराधिकारी के चयन पर सवाल उठता है। क्या उन्होंने उचित परख और मर्यादा का ध्यान रखा? क्या इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपने से पहले जय मिश्रा के व्यक्तित्व और आचरण की गहराई से जाँच नहीं की जानी चाहिए थी?
बताया यह भी गया कि जय मिश्रा वास्तव में स्वामी रामभद्राचार्य के रिश्तेदार हैं इस वजह से उन्हें उत्तराधिकारी बनाया गया। क्या रिश्तेदार होना ही संत होने की योग्यता है, वह भी तब जब उस शख्स पर अवैध यौनाचार के गंभीर आरोप लगे हों।
उनके शब्द और आचरण स्वयं विवाद पैदा कर रहे हैं, तो वे संत समाज और धर्म की एकता के प्रतीक कैसे बन पाएँगे? संत परंपरा को मूर्ख सिद्ध करना और उत्तराधिकारी पर दुष्कर्म जैसे आरोप, दोनों ही स्वामी रामभद्राचार्य को कठघरे में खड़ा करते हैं। अब देखना होगा कि इन सवालों के जवाब वे समाज को कैसे देते हैं।