Rajasthan: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने ना केवल राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि राजस्थान की सियासी फिजाओं में भी उबाल ला दिया है। इसे एक साधारण ‘स्वास्थ्य कारणों’ से लिया गया फैसला मान लेना राजनीतिक दृष्टि से बड़ी चूक हो सकती है।
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खासतौर पर तब जब राज्य में जाट समुदाय की भूमिका को देखते हुए भाजपा को नई रणनीति की आवश्यकता महसूस हो रही है।
Rajasthan: राजस्थान में लगभग 14-15% जाट मतदाता
राजस्थान में लगभग 14-15% जाट मतदाता हैं जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की सभी 25 सीटें जीती थीं, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ,
जिनमें से 6 सीटें नागौर, सीकर, चूरू, झुंझुनूं, श्रीगंगानगर और बाड़मेर – जाट बहुल इलाके हैं। यह वो क्षेत्र हैं जहां जगदीप धनखड़ का प्रभाव विशेष रूप से महसूस किया जाता रहा है, खासकर शेखावाटी बेल्ट में।
धनखड़ के इस्तीफे से कई नए सवाल खड़े
राज्य सरकार में भाजपा ने दो कैबिनेट और दो राज्य मंत्री जाट समुदाय से बनाए हैं, जबकि केंद्र में सिर्फ अजमेर से सांसद भागीरथ चौधरी को ही राज्यमंत्री बनाया गया है।
ऐसे में धनखड़ का इस्तीफा कई नए सवाल खड़े करता है क्या भाजपा जाट समुदाय के भीतर अपनी खोई हुई पकड़ को फिर से मजबूत करना चाहती है? क्या किसी बड़े जाट चेहरे को आगे लाने की तैयारी हो रही है?
गहलोत ने बताया राजनीति दबाव
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने धनखड़ के इस्तीफे को महज संयोग नहीं, बल्कि दबाव की राजनीति का नतीजा बताया है। उन्होंने कहा, “मुझे पहले से लग रहा था कि लोकसभा अध्यक्ष और उपराष्ट्रपति दोनों किसी दबाव में काम कर रहे हैं।
अब इस्तीफे से सच्चाई सामने आ गई है।” गहलोत ने यह भी इशारा किया कि आरएसएस और भाजपा कुछ बड़ा सियासी घटनाक्रम रचने की योजना में हैं।
वहीं, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भाजपा पर किसानों के बेटों के साथ ‘यूज एंड थ्रो’ की नीति अपनाने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, “विश्वास करना मुश्किल है कि धनखड़ ने केवल स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है। वे हाल के दिनों में अपनी बात खुलकर कह रहे थे। धीरे-धीरे परतें खुलेंगी।”
धनखड़ का इस्तीफा ऐसे समय में आया है जब भाजपा को राजस्थान में जातीय संतुलन साधने की सख्त जरूरत है। यदि जाट समुदाय की नाराजगी को गंभीरता से नहीं लिया गया,
तो आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं, कांग्रेस इस मौके को भाजपा की कमजोरी के तौर पर भुनाने की तैयारी में है।