संसद से सड़क तक विपक्ष का नाटक, राहुल की अराजक राजनीति
दिल्ली: संसद भवन में सोमवार सुबह INDIA गठबंधन की बैठक में जो हुआ, उसने एक बार फिर साबित कर दिया कि सत्ता से वंचित विपक्ष अब पूरी तरह दिशाहीन और अराजक हो चुका है।
बैठक का एजेंडा था, मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव। लेकिन असली एजेंडा था प्रधानमंत्री मोदी और संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ विष उगलना।
राहुल गांधी का नया शिगूफ़ा, चुनाव आयोग को चोर बताना
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने रविवार को जिस तरह चुनाव आयोग पर हमला बोला, वह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक है।
राहुल का कहना था कि, “पहले चोरी छिपकर होती थी, अब खुलेआम हो रही है।” क्या यह किसी जिम्मेदार नेता की भाषा है या फिर सत्ता से बाहर होकर भटके हुए, हताश नेता की बकवास?
राहुल गांधी का यह बयान साफ दर्शाता है कि वे न चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं, न संविधान का।
असल में राहुल गांधी की मानसिकता यह है कि अगर चुनाव जीतें तो ठीक, और हारें तो आयोग चोर। यही राजनीति उन्हें बचकाना और अराजक साबित करती है।
संवैधानिक संस्थाओं पर हमला, कांग्रेस की परंपरा
राहुल गांधी का यह कदम कोई नया नहीं है। कांग्रेस का इतिहास ही यही बताता है कि जब-जब उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा, उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने का प्रयास किया।
कभी राष्ट्रपति पर सवाल, कभी सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर हमला, कभी उपराष्ट्रपति को कटघरे में खड़ा करना और अब चुनाव आयोग पर महाभियोग की धमकी, यही है कांग्रेस की असली पहचान।
चिराग पासवान का करारा जवाब, “देश अराजकता में नहीं डूबेगा”
लोजपा (रामविलास) नेता चिराग पासवान ने राहुल गांधी की पोल खोलते हुए कहा कि यह साफ समझ से परे है कि उनकी “वोटर अधिकार यात्रा” का मकसद क्या है।
उन्होंने कहा, “अगर किसी संवैधानिक संस्था पर ही भरोसा नहीं करेंगे तो देश अराजकता में डूब जाएगा।” राहुल गांधी दरअसल जनता को भड़काने और भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं।
लेकिन चिराग की बात ने विपक्ष का असली चेहरा उजागर कर दिया ये लोग केवल अफवाह और अराजकता की राजनीति करना चाहते हैं।
बिहार चुनाव से पहले बौखलाहट
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को असली लड़ाई नीतीश कुमार और भाजपा से लड़नी थी। लेकिन हार का अंदेशा इतना गहरा है कि अब इन्होंने रेफ़री, यानी चुनाव आयोग को ही निशाना बना लिया।
खेल का पुराना नियम है जो टीम रेफ़री पर हमला करने लगे, समझ लीजिए उसने हार मान ली है।
सत्ता से दूर कांग्रेस, हताशा की राजनीति
दस साल सत्ता से दूर रहकर कांग्रेस पूरी तरह नंगी हो गई है। सत्ता के बिना यह पार्टी अस्तित्वहीन और अराजक हो जाती है।
राहुल गांधी की सोच केवल सत्ता प्राप्ति तक सीमित है। देश, लोकतंत्र, संविधान, इन शब्दों का उनके लिए कोई मतलब नहीं।
जनता अब समझ चुकी है कि राहुल गांधी का हर आंदोलन, हर बयान, हर यात्रा सिर्फ और सिर्फ सत्ता की भूख से प्रेरित है।
नतीजा, राहुल गांधी = अराजकता + विध्वंस ?
राहुल गांधी बार-बार साबित कर चुके हैं कि वे एक अराजक नेता हैं, जिन्हें न इतिहास का ज्ञान है, न राजनीति की समझ।
उनकी भाषा, उनके बयान और उनका रवैया देशविरोधी तत्वों को ही मजबूत करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव सिर्फ उनकी हताशा और निराशा का प्रतीक है।
कांग्रेस और उसका गठबंधन अब लोकतंत्र को नहीं, बल्कि अराजकता और अंधकार को आगे बढ़ा रहा है।