राहुल गाँधी के ताजा आरोप और विवादित प्रस्तुति
राहुल गाँधी ने हाल ही में दावा किया कि किसी सॉफ्टवेयर की मदद से संगठित तरीके से कॉन्ग्रेस समर्थक मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग इस पूरी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर कोई ठोस जानकारी नहीं दे रहा। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने अमित शाह का फोटो और मीम्स तक इस्तेमाल किए।
फॉर्म 7 और सिस्टम की असलियत
मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित फॉर्म 7 का इस्तेमाल कोई भी पंजीकृत वोटर कर सकता है।
इसमें उचित कारण देना जरूरी होता है, जैसे घर बदलना, मृत्यु या किसी अन्य निर्वाचन क्षेत्र में पंजीकरण। आवेदन के बाद अधिकारियों द्वारा व्यक्तिगत जाँच की जाती है।
आरोपों की परत और वास्तविक स्थिति
राहुल गाँधी ने एक मामले का हवाला देते हुए कहा कि व्यक्ति ने कभी आवेदन नहीं किया, फिर भी उसके नाम से आवेदन दर्ज दिखा। उस आवेदन में गलत मोबाइल नंबर भी दर्ज था।
यह जरूर एक खामी है, लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार इसे धोखाधड़ी कहकर साबित नहीं किया जा सकता। आयोग खुद इसकी जाँच कर रहा है।
सॉफ्टवेयर, हैकर और प्रक्रिया की पड़ताल
मान लें कोई हैकर सॉफ्टवेयर से फर्जी आवेदन कर भी दे, तो भी इससे नाम अपने आप मतदाता सूची से नहीं हट जाते।
प्रक्रिया पूरी तरह मैनुअल है और हर आवेदन की पुष्टि स्थानीय अधिकारी करते हैं। आयोग ने स्पष्ट कहा है कि संदेहास्पद आवेदन से किसी का नाम गलत तरीके से नहीं हटाया गया।
राहुल गाँधी के दावों पर चुनाव आयोग का रुख
चुनाव आयोग ने बताया कि FIR आयोग के ही अधिकारी ने दर्ज कराई थी। यानी मामला छुपाया नहीं गया। राहुल गाँधी ने कोई सबूत भी पेश नहीं किया कि किसी का नाम गलत ढंग से काटा गया।
आयोग के मुताबिक सभी संदेहास्पद फॉर्म की जानकारी की जाँच कर सही निष्कर्ष निकाला जाएगा।
भाजपा IT सेल और पन्ना प्रमुख की थ्योरी
राहुल गाँधी ने BJP IT सेल और पन्ना प्रमुख पर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सेल CIA और मोसाद से भी ताकतवर है, जो मतदाताओं की निगरानी कर उनके नाम हटवाने में सक्षम है।
हालांकि, यह आरोप भी हास्यास्पद नजर आया, क्योंकि अलंद सीट पर कॉन्ग्रेस ही जीती थी।
वास्तविकता और राजनीतिक नाटक
अगर BJP मतदाता नाम हटवाने में शामिल होती तो वह अपने समर्थकों को नुकसान नहीं पहुँचाती। अलंद सीट कॉन्ग्रेस के पास रही है।
ऐसे में राहुल गाँधी के आरोप केवल राजनीतिक नाटक जैसे लगते हैं। यह साफ है कि उनके ‘हाइड्रोजन बम’ में सिर्फ धुआँ था, धमाका नहीं।
युवाओं को प्रभावित करने का कथित एजेंडा
राहुल गाँधी की रणनीति का मुख्य मकसद युवाओं, खासकर Gen Z को प्रभावित करना बताया जा रहा है। उनका इरादा यह दिखाना है कि लोकतंत्र खतरे में है, जिससे सड़क पर विरोध और हिंसा हो।
उनका मानना है कि ऐसे हालात 2029 में कॉन्ग्रेस को बड़ी संख्या में सीटें दिला सकते हैं।
हाइड्रोजन बम या राजनीतिक धुआँ ?
पूरा विवाद दिखाता है कि राहुल गाँधी बार-बार चुनावी व्यवस्था की कमियों को साजिश की शक्ल देकर प्रचारित करते हैं। लेकिन हर बार उनके दावे बगैर सबूत फुस्स साबित हो जाते हैं।
यह घटना भी उनकी मानसिकता और राजनीति में शॉर्टकट खोजने की प्रवृत्ति को उजागर करती है।