Friday, December 5, 2025

पुतिन को साधारण सी फॉर्च्यूनर में बैठाकर लाए मोदी, वीवीआईपी सुरक्षा के लिए किया ऐसा कारनामा

वीवीआईपी दौरे पर मुंबई पुलिस की फॉर्च्यूनर ने क्यों खड़े किए सवाल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की हालिया यात्रा के दौरान जिस टोयोटा फॉर्च्यूनर एसयूवी का इस्तेमाल हुआ, उसने सुरक्षा और प्रोटोकॉल विशेषज्ञों के बीच तीखी चर्चा छेड़ दी।

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दोनों राष्ट्राध्यक्षों का एक ऐसी गाड़ी में चलना असामान्य माना गया जो केंद्र के आधिकारिक काफिले का हिस्सा नहीं थी।

सामान्यतौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय के पास अत्यधिक उन्नत और केंद्रीकृत नियंत्रित आधिकारिक बेड़ा होता है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप और सुरक्षा एजेंसियां मिलकर मानकीकृत करती हैं।

ऐसे में किसी राज्य में पंजीकृत, स्थानीय उपयोग से प्रसिद्ध वाहन का चयन परंपरागत सुरक्षा धाराओं से अलग कदम के रूप में देखा जा रहा है।

राज्य पुलिस अधिकारी के नाम पर दर्ज गाड़ी में दो शीर्ष राष्ट्राध्यक्ष

जांच में सामने आया कि जिस फॉर्च्यूनर में विश्व राजनीति के दो अत्यंत प्रभावशाली नेता सवार थे, वह महाराष्ट्र में पंजीकृत है और कागजों में मुंबई पुलिस के एडिशनल पुलिस आयुक्त के नाम पर दर्ज है। यह तथ्य जैसे ही सामने आया, सुरक्षा प्रबंधन के जानकारों में जिज्ञासा और बढ़ गई।

इस वाहन का राजनीतिक उपयोग भी पहले से चर्चा में रहा है। यही वही गाड़ी है जिसका इस्तेमाल पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और बाद में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तथा वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के आवागमन के लिए किया जाता रहा। यानी यह कार पहले से राज्य सत्ता के उच्चतम स्तर के लिए आरक्षित मानी जाती रही है।

राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के नाम पर पंजीकृत इस गाड़ी का राष्ट्रीय स्तर की अतिउच्च सुरक्षा श्रेणी में इस्तेमाल यह संकेत देता है कि इसे केवल नाममात्र का विभागीय वाहन न मानकर विशेष कार्यों के लिए तैयार किया गया होगा।

ऐसे वाहन कागज पर साधारण दिखते हुए भी व्यावहारिक रूप में अत्यधिक संवेदनशील ड्यूटी के लिए रखे जाते हैं।

पीएम के आधिकारिक काफिले से अलग चुनाव कई परतों वाली पहेली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आधिकारिक काफिला सामान्यतः दुनिया के उन्नततम सुरक्षा मानकों वाली यूरोपीय और जापानी लग्जरी गाड़ियों से सुसज्जित रहता है।

उनके पास बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज जैसी यूरोपीय बख्तरबंद लिमोजिनें हैं, साथ ही रेंज रोवर तथा उनकी व्यक्तिगत पसंद मानी जाने वाली टोयोटा लैंड क्रूजर भी काफिले का हिस्सा रहती है।

ऐसे में सवाल उठता है कि जब दिल्ली में पहले से उच्च सुरक्षा मानकों को पूरा करने वाला आधिकारिक बेड़ा उपलब्ध है, तब एक ऐसी फॉर्च्यूनर को क्यों चुना गया जो किसी राज्य पुलिस अधिकारी के नाम पर पंजीकृत है और जिसका स्थानीय राजनीतिक उपयोग भी सार्वजनिक जानकारी का हिस्सा रहा है। यही असामान्यता इस निर्णय को चर्चित बनाती है।

सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, प्रोटोकॉल के मानक काफिले से अलग वाहन चयन के पीछे कोई साधारण तर्क नहीं हो सकता।

यह या तो अत्यंत विशेष स्तर पर की गई सुरक्षा समीक्षा का परिणाम होगा, या किसी विशिष्ट परिस्थितिजन्य आवश्यकता के कारण लिया गया निर्णय, जिसे आधिकारिक रूप से सार्वजनिक करना फिलहाल संभव नहीं समझा गया।

सुरक्षा विशेषज्ञों की राय विशेष बख्तरबंद संशोधनों की संभावित भूमिका

कई सुरक्षा विश्लेषक मानते हैं कि इस निर्णय के पीछे इस फॉर्च्यूनर में किया गया विशिष्ट और अत्यंत उन्नत बख्तरबंद संशोधन निर्णायक कारण हो सकता है।

स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कुछ वाहनों को समय के साथ इतनी उच्च सुरक्षा श्रेणी में अपग्रेड कर दिया जाता है कि वे औपचारिक कूटनीतिक बेड़े से अधिक व्यावहारिक साबित हों।

मुंबई जैसी संवेदनशील महानगरी में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां प्रायः कुछ चुनिंदा वाहनों को विशेष ड्यूटी के लिए तैयार रखती हैं।

इन पर अतिरिक्त आर्मर, टायर सुरक्षा, ब्लास्ट रोधी परत, संचार प्रणाली और आपातकालीन निकासी से जुड़ी कई अदृश्य व्यवस्थाएं फिट की जाती हैं, जिनका विवरण सार्वजनिक दस्तावेजों में नहीं दिखता।

ऐसे वाहन बाहर से सामान्य एसयूवी की तरह दिखते हैं, जिससे शत्रुतापूर्ण तत्वों के लिए उनकी वास्तविक क्षमता का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार दो शीर्ष राष्ट्राध्यक्षों को ऐसे प्लेटफॉर्म पर बैठाना इंगित करता है कि इस फॉर्च्यूनर की बख्तरबंद क्षमता और भरोसेमंद परीक्षण रिकॉर्ड पहले से स्थापित था।

स्थानीय विशेष वाहन प्रोटोकॉल पर प्राथमिकता कब और क्यों मिलती है

उच्च स्तर की वीवीआईपी सुरक्षा व्यवस्था में कई बार केंद्रीय प्रोटोकॉल से ऊपर स्थानीय वास्तविकताएं प्राथमिकता ले लेती हैं।

किसी शहर या राज्य में पहले से परिचित और बारबार जांचे परखे विशेष वाहनों को स्थानीय भूगोल, मार्ग, जोखिम प्रोफाइल और आपात मार्गों के हिसाब से बेहतर माना जाता है।

इस फॉर्च्यूनर को राज्य पुलिस के तथाकथित विशेष ड्यूटी बेड़े का हिस्सा माना जा रहा है, जो उच्च जोखिम वाले गणमान्य व्यक्तियों के आवागमन के लिए स्थानीय रूप से कस्टमाइज किया गया होगा।

इसमें मार्ग की प्रकृति, सड़क की गुणवत्ता, मोड़, पुल, अंडरपास और भीड़ की घनत्व तक को ध्यान में रखकर सुरक्षा डिजाइन तैयार की जाती है।

कई बार आधिकारिक कूटनीतिक बेड़े की अत्यधिक पहचानयोग्य गाड़ियों के मुकाबले ऐसे स्थानीय प्लेटफॉर्म बेहतर छद्म सुरक्षा प्रदान करते हैं।

वे भीड़ में अपेक्षाकृत घुलमिल जाते हैं, जबकि अंदर से उनकी बख्तरबंद क्षमता और सुरक्षा स्तर अंतरराष्ट्रीय मानकों के बराबर या उससे अधिक भी हो सकता है।

वीवीआईपी सुरक्षा प्रबंधन के बड़े संकेत और अनुत्तरित सवाल

इस पूरे प्रकरण ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत में वीवीआईपी सुरक्षा प्रबंधन केवल चमकदार विदेशी ब्रांडों पर निर्भर नहीं है, बल्कि जरूरत पड़ने पर राज्य पुलिस के पास मौजूद विशेष रूप से तैयार प्लेटफॉर्म भी सर्वोच्च स्तर की ड्यूटी में लगाए जा सकते हैं। यह स्थानीय और राष्ट्रीय संसाधनों के संयोजन का व्यावहारिक उदाहरण है।

फिर भी तथ्य यह है कि दो अतिशय संवेदनशील नेताओं के लिए एक ऐसी गाड़ी चुनी गई जो आधिकारिक केंद्रीय बेड़े से बाहर है और जिसका स्थानीय राजनीतिक उपयोग भी दर्ज है।

यह सवाल स्वाभाविक है कि ऐसे निर्णय की प्रक्रिया, जोखिम मूल्यांकन और स्वीकृति किस स्तर पर और किन मानकों के आधार पर हुई।

सुरक्षा एजेंसियां स्वभावतः ऐसे निर्णयों की बारीकियां सार्वजनिक नहीं करतीं, किंतु इस प्रकरण ने यह संकेत अवश्य दे दिया कि भारत में सुरक्षा तंत्र परिस्थिति के अनुसार अत्यंत लचीला और परतदार निर्णय लेने में सक्षम है।

इस फॉर्च्यूनर की कहानी, वीवीआईपी सुरक्षा की नई सोच और बदलते जोखिम मानचित्र की ओर एक गहरा संकेत बनकर उभर रही है।

Mudit
Mudit
लेखक 'भारतीय ज्ञान परंपरा' के अध्येता हैं और 9 वर्षों से भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा एवं राजनीति पर गंभीर लेखन कर रहे हैं।
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