पाकिस्तान: कभी पाकिस्तान में हिंदू और सिख धार्मिक पहचान की सैकड़ों वर्ष पुरानी विरासत ज़िंदा थी। पूरे देश में 1817 मंदिर और गुरुद्वारे मौजूद रहे, जिनमें 1285 मंदिर और 532 गुरुद्वारे सक्रिय रूप से पूजा और सेवा के केंद्र थे, लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है।
एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार अब पाकिस्तान में सिर्फ 37 मंदिर और गुरुद्वारे ही बचे हैं, बाकी या तो तोड़ दिए गए, या उनकी उपेक्षा और खराब हालत के चलते इतिहास के पन्नों में समा गए।
इस्लामाबाद में हुई संसदीय अल्पसंख्यक समिति की बैठक में यह माना गया कि देश में अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों की स्थिति बेहद चिंताजनक हो चुकी है और जिन इमारतों को सुरक्षित रखना चाहिए था, वे धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं।
समिति ने साफ कहा कि इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड, जिसे मंदिरों और गुरुद्वारों की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी,
वह अपने काम में पूरी तरह विफल रहा है, लेकिन मंदिरों के टूटने की कहानी सिर्फ ढांचों की बर्बादी नहीं है, यह पाकिस्तान में हिंदू समुदाय के अस्तित्व से जुड़ी एक गहरी त्रासदी है।
पाकिस्तान: हिंदू आबादी घटी, धार्मिक स्थल हुए खत्म
असल सवाल यह नहीं कि मंदिर क्यों नहीं बचे, असली सवाल यह है कि हिंदू ही कहाँ बचे। आज़ादी के समय पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी 20.5% थी, लेकिन आज यह संख्या घटकर सिर्फ 2.17% रह गई है।
यह कोई सामान्य जनसांख्यिकीय बदलाव नहीं, बल्कि दशकों से होते आए उत्पीड़न, हिंसा, जबरन धर्मांतरण और सामाजिक अनिश्चितता का परिणाम है।
जैसे-जैसे हिंदू आबादी घटती गई, वैसे-वैसे उनके धार्मिक स्थल भी खत्म होते गए क्योंकि किसी भी समुदाय की पहचान उसकी मौजूदगी और सुरक्षा पर टिकी होती है।
लाखों हिंदू पाकिस्तान छोड़ने को मजबूर हुए
आज़ादी के बाद से पाकिस्तान के कई हिस्सों में हिंदुओं पर लगातार दबाव बढ़ा। कई परिवारों को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा, कईयों पर ज़बरदस्ती इस्लाम कबूल कराने का दबाव बना,
अनेक लड़कियों का अपहरण कर निकाह कर दिया गया, और अनेक गांवों में हिंदू परिवारों को धमकाकर हटाया गया। इन परिस्थितियों में लाखों हिंदू पाकिस्तान छोड़ने को मजबूर हुए।
कुछ भारत आए, कुछ दुनिया के अन्य देशों में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने लगे, और कई लोग अपनी आवाज़ बुलंद करने से पहले ही ख़त्म हो गए।
जो हिंदू आज भी पाकिस्तान में रह रहे हैं, वे लगातार डर, असुरक्षा और पलायन के दबाव में जी रहे हैं।
पाक ने स्वीकारा देखभाल में हुई चूक
यह कहना गलत नहीं होगा कि जब किसी देश में एक समुदाय शून्य की ओर बढ़ने लगे, तो उसके मंदिर, उसकी परंपराएँ, उसकी संस्कृति और उसके प्रतीक भी मिटने लगते हैं।
पाकिस्तान में मंदिरों की गिरती दीवारें सिर्फ पत्थरों की दरारें नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय की टूटी उम्मीदों का प्रतीक बन गई हैं।
आज मंदिरों का गायब होना यह बताता है कि देश में धार्मिक विविधता की जड़ें कितनी कमजोर पड़ गई हैं और हिंदू-सिख विरासत किस तरह धीरे-धीरे इतिहास में बदल रही है।
अब जब पाकिस्तान की संसदीय समिति भी स्वीकार कर रही है कि धार्मिक स्थलों की देखभाल में गंभीर चूक हुई है, तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ स्वीकार करने से स्थिति सुधर जाएगी।
सुधार तभी संभव है जब पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू, सिख और अन्य गैर-मुस्लिम नागरिकों को संवैधानिक सुरक्षा सिर्फ कागजों में नहीं, बल्कि वास्तविक रूप में मिले।
जब तक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, तब तक न तो मंदिर बचेंगे और न ही वे लोग जिनकी आस्था ने इन मंदिरों को जीवित रखा था।
पाकिस्तान के धार्मिक स्थलों की यह सच्चाई सिर्फ इतिहास का हिस्सा नहीं है, यह आज भी जारी एक गहरी पीड़ा और संघर्ष का प्रमाण है।

