जोकोविच की थकान और ग्रैंड स्लैम का संघर्ष
नोवाक जोकोविच आज भी लगातार चारों ग्रैंड स्लैम खेल रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अब वह किसी बड़े टूर्नामेंट के फाइनल तक भी नहीं पहुंच पा रहे।
सेमीफाइनल में हार उनकी नई वास्तविकता बन गई है, बावजूद इसके उनके नाम लगातार रिकॉर्ड दर्ज हो रहे हैं।
रिकॉर्ड्स की होड़, खिताब से ज्यादा अहम
अब जोकोविच के लिए खिताब जीतना सर्वोच्च लक्ष्य नहीं रहा। उनकी प्राथमिकता दो-तीन राउंड जीतना भर रह गई है।
इसी सिलसिले में फ्रेंच ओपन को छोड़कर बाकी तीन ग्रैंड स्लैम में वह रोजर फेडरर और राफेल नडाल जैसे दिग्गजों के सर्वाधिक जीत के रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे हैं।
धोनी जैसी लंबी पारी का सिलसिला
स्थिति ऐसी है मानो वह महेंद्र सिंह धोनी की तरह अंतिम वर्षों में खेल को खींचते हुए, चाहे प्रदर्शन कैसा भी हो, कोर्ट पर टिके रहने का प्रयास कर रहे हों।
जोकोविच अब भी रैकेट थामे दिखते हैं, जबकि सामने नई पीढ़ी के युवा खिलाड़ी उन्हें क्वार्टर फाइनल और सेमीफाइनल में पछाड़ देते हैं।
समय की पुकार और प्रशंसक की पीड़ा
प्रशंसक कहते हैं कि अब उम्र का तकाजा है, संयोग से 25वां ग्रैंड स्लैम जीतने की उम्मीद में बार-बार कोर्ट पर उतरना उचित नहीं। हर चीज़ का समय होता है, और शायद अब आराम करने का समय है।
जोकोविच के पुराने फैन को पीड़ा होती है जब वह उन खिलाड़ियों से हारते हैं, जिन्हें कुछ वर्ष पूर्व वह आसानी से मात दे देते थे।
अंतर्मन की सच्चाई
फैन का यह संदेश भले जोकोविच तक न पहुंचे, लेकिन सच यही है कि वह स्वयं भी अपने भीतर इसे महसूस करते होंगे। समय की पुकार अनसुनी नहीं की जा सकती।
और हर महान खिलाड़ी के करियर की तरह अब उनके लिए भी रैकेट को खूंटी पर टांगने का क्षण नजदीक आता दिख रहा है।