नोबेल शांति पुरस्कार 2025: इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार पूरी तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इर्द-गिर्द घूमता रहा।
दुनिया भर के मीडिया में यही चर्चा थी कि क्या ट्रंप को यह सम्मान मिलेगा, क्योंकि उन्होंने खुद को “शांति का दूत” बताते हुए इस पुरस्कार का सबसे योग्य दावेदार बताया था,
लेकिन आखिरकार इस बार की जीत वेनेजुएला की बहादुर नेता मारिया कोरिना मचाडो के नाम रही।
उन्हें अपने देश में लोकतंत्र की बहाली और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने पर यह पुरस्कार मिला है।
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नोबेल शांति पुरस्कार 2025: गाजा में कराया सीजफायर
ट्रंप को लेकर चर्चा इसलिए भी ज्यादा थी क्योंकि उन्हें कई देशों और नेताओं ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया था।
इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने औपचारिक रूप से ट्रंप का नाम आगे बढ़ाया था।
नेतन्याहू ने कहा था कि गाजा युद्धविराम और अब्राहम समझौते में ट्रंप की भूमिका ऐतिहासिक रही है।
उनके अनुसार ट्रंप ने ऐसे कदम उठाए जिससे पश्चिम एशिया में लंबे समय से चली आ रही अस्थिरता में सुधार आया।
भारत ने दावे को किया खारिज
इज़रायल ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान, कंबोडिया, रवांडा, आर्मेनिया और अज़रबैजान जैसे देशों ने भी ट्रंप को नामांकित किया।
पाकिस्तान सरकार ने कहा था कि भारत-पाक सीमा पर तनाव कम करने में ट्रंप ने अहम भूमिका निभाई, हालांकि भारत ने इस दावे को खारिज कर दिया।
दूसरी ओर, यूरोप और अमेरिका के कई सांसदों ने भी ट्रंप के नाम का समर्थन किया।
अमेरिकी सांसद अन्ना पॉलिना लूना, डेरेल इस्सा और क्लाउडिया टेनी ने नोबेल समिति को भेजे गए पत्र में कहा कि ट्रंप ने अब्राहम समझौते और गाजा युद्धविराम के जरिए वैश्विक शांति में योगदान दिया है।
31 जनवरी आखिरी तारीख
नोबेल समिति के सख्त नियमों के चलते ट्रंप की उम्मीदें अधूरी रह गईं। समिति हर साल नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी तय करती है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक ट्रंप के कई नामांकन इस तारीख के बाद पहुंचे जिसके कारण वे मान्य नहीं हो सके।
इसके अलावा, समिति का फैसला घोषणा से पहले ही तय हो चुका था, इसलिए किसी नए नामांकन का असर नहीं पड़ा।
हमने सात युद्ध खत्म कराया- ट्रंप
ट्रंप ने खुद को नोबेल शांति पुरस्कार का हकदार बताते हुए कहा था, हमने सात युद्ध खत्म किए, आठवें के करीब हैं, लेकिन शायद वे मुझे यह पुरस्कार न देने का कोई बहाना ढूंढ लेंगे।
हालांकि टाइम मैगज़ीन की रिपोर्ट के अनुसार उनके बताए सात में से केवल चार ही वास्तविक युद्ध थे इज़रायल-ईरान, भारत-पाकिस्तान, आर्मेनिया-अज़रबैजान और रवांडा-कांगो।
बाकी संघर्ष केवल कूटनीतिक विवाद थे। भारत ने साफ कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम अमेरिकी मध्यस्थता के बिना हुआ था।
शांति दूत मानने से हिचक
ट्रंप की छवि हमेशा एक सख्त और रणनीतिक नेता की रही है।
उन्होंने अपने कार्यकाल में कोई नया युद्ध तो शुरू नहीं किया,
लेकिन ड्रोन हमलों और 2020 में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या जैसी घटनाओं से उनकी नीति को आक्रामक कूटनीति का नाम दिया गया।
यही कारण है कि विशेषज्ञों का मानना था कि नोबेल समिति उन्हें शांति का दूत मानने से हिचक सकती है।
50 साल तक सार्वजनिक नहीं किया जाता
नोबेल शांति पुरस्कार की चयन प्रक्रिया बेहद गोपनीय होती है। किसी भी नामांकित व्यक्ति या संगठन का नाम 50 साल तक सार्वजनिक नहीं किया जाता।
समिति आमतौर पर उन्हीं व्यक्तियों को चुनती है जिन्होंने लंबे समय तक मानवता, न्याय और सहयोग के लिए ठोस काम किया हो।
मारिया कोरिना मचाडो का चयन इस बात का प्रतीक है कि संघर्ष भरे माहौल में भी लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखना दुनिया के लिए एक प्रेरणा है।
उन्होंने वेनेजुएला में तानाशाही और दमन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की, कई बार जेल गईं और धमकियों के बावजूद पीछे नहीं हटीं।
डोनाल्ड ट्रंप के लिए यह झटका जरूर है, लेकिन यह भी सच है कि उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सक्रिय भूमिका निभाई।
अगर भविष्य में वे किसी स्थायी शांति समझौते को सफलतापूर्वक लागू करते हैं, तो 2026 या 2027 में वे फिर से इस पुरस्कार के मजबूत दावेदार बन सकते हैं।