Tuesday, November 11, 2025

Nimbark Jayanti: निम्बार्क जयंती पर जयपुर में हुआ आध्यात्मिक उत्सव, जयादित्य पंचांग व वराह चालीसा का भव्य विमोचन

Nimbark Jayanti: जयपुर के स्टेशन रोड स्थित श्रीमाधोबिहारी जी मंदिर परिसर में सोमवार को श्रीनिम्बार्क परिषद् द्वारा आयोजित श्रीनिम्बार्काचार्य जयंती महोत्सव का छठा संस्करण श्रद्धा और भक्ति के साथ सम्पन्न हुआ। यह आयोजन निम्बार्क संप्रदाय की वैदिक परंपरा, आचार विचार और भक्ति की निरंतरता का प्रतीक बना।

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जयादित्य पंचांग 2083 और वराह चालीसा का विमोचन

Nimbark Jayanti: कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा राजस्थान के एकमात्र सूर्यसिद्धान्तीय पंचांग – “श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पंचांग 2083” तथा “श्रीवराह चालीसा” का लोकार्पण।

विमोचन समारोह में महामंडलेश्वर स्वामी पद्मनाभशरणदेवाचार्य महाराज, शुकपीठाधीश्वर अलबेलीमाधुरीशरण महाराज (सरसनिकुंज), महंत वृन्दावनदास महाराज (वृन्दावन), महंत कल्याणदास महाराज (जगतपुरा), महंत बनवारीशरण महाराज (जूसरी) और महंत सर्वेश्वरशरण महाराज (नायला) ने संयुक्त रूप से ग्रंथों का विमोचन किया।

Nimbark Jayanti: संत-महात्माओं और विद्वानों की रही गरिमामयी उपस्थिति

इस अवसर पर प्रवीण बड़े भैया सरसनिकुंज, श्रीनिम्बार्क परिषद के अध्यक्ष देवेश स्वामी, महामंत्री अमित शर्मा, वराह मंदिर महंत पवन शर्मा, लाडलीजी मंदिर महंत संजय गोस्वामी तथा अखिल भारतीय विद्वत् परिषद् के मुदित मित्तल सहित कई संत-महात्मा और विद्वान उपस्थित रहे।

आध्यात्मिकता, वैदिक ज्ञान और भक्ति का संगम

Nimbark Jayanti: कार्यक्रम में वक्ताओं ने निम्बार्क दर्शन की आध्यात्मिक गहराई, भक्ति मार्ग की महिमा, तथा सूर्यसिद्धान्तीय गणना पद्धति की वैज्ञानिक और धार्मिक प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे। संतों ने कहा कि निम्बार्काचार्य की शिक्षाएं आज भी समाज में प्रेम, संतुलन और वैदिक संस्कृति के पुनर्जागरण का संदेश देती हैं।

महारासलीला बनी आकर्षण का केंद्र

महोत्सव के समापन पर आयोजित भव्य महारासलीला ने भक्तों को राधा-कृष्ण की दिव्य लीलाओं के आनंद में सरोबार कर दिया। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी, जिन्होंने भक्ति रस में डूबकर कार्यक्रम का आनंद लिया और अंत में प्रसादी ग्रहण की।

परंपरा और संस्कृति के संरक्षण का संदेश

जयपुर में आयोजित यह निम्बार्क जयंती महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था का उत्सव रहा, बल्कि इसने संस्कृत साहित्य, वैदिक गणना और आध्यात्मिक परंपरा के संरक्षण का भी सशक्त संदेश दिया।

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