मुख्य न्यायाधीश
यदि वरिष्ठता के सिद्धांत का पालन किया जाए, तो वर्ष 2033 तक भारत के सर्वोच्च न्यायालय का नेतृत्व ये आठ मुख्य न्यायाधीश करेंगे।
भारत के अगले आठ मुख्य न्यायाधीश
23 नवम्बर 2025 को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई (B.R. Gavai) छह माह के कार्यकाल के बाद सेवानिवृत्त होंगे। उनके पश्चात न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Surya Kant) सर्वोच्च न्यायालय की बागडोर संभालेंगे और फरवरी 2027 तक एक वर्ष से अधिक का कार्यकाल पूरा करेंगे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीशों में दूसरे स्थान पर हैं।
मुख्य न्यायाधीश की भूमिका केवल मामलों की अध्यक्षता तक सीमित नहीं होती। यह न्यायालय के प्रबंधन से भी जुड़ी होती है। मुख्य न्यायाधीश ‘मास्टर ऑफ द रोस्टर’ (Master of the Roster) कहलाते हैं, जो यह तय करते हैं कि किन-किन न्यायाधीशों की पीठें (benches) गठित की जाएँ और किन मामलों की सुनवाई कौन करेगा। न्यायालय में उन्हें ‘पहले among equals’ अर्थात् ‘समानों में प्रथम’ माना जाता है।
मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति वरिष्ठता के सिद्धांत पर आधारित होती है। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश अपने उत्तराधिकारी का नाम सुझाते हैं, जो सामान्यतः अगले वरिष्ठतम न्यायाधीश होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के 75 वर्षों के इतिहास में केवल दो बार ऐसा हुआ है जब वरिष्ठता के सिद्धांत को दरकिनार कर कनिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया हो।
इस रिपोर्ट में हम उन न्यायाधीशों के कार्यकाल और प्रमुख निर्णयों पर दृष्टि डालते हैं जो वरिष्ठता के क्रम के अनुसार भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने की पंक्ति में हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice Surya Kant)

न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 नवम्बर 2025 को पदभार ग्रहण करेंगे और लगभग 1.2 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद 9 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्त होंगे।
वे मई 2019 से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं और न्यायमूर्ति गवई के साथ ही नियुक्त हुए थे। वे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से आते हैं जहाँ उन्हें जनवरी 2004 में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में भी कार्य किया।
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति सूर्यकांत संविधान पीठों के सदस्य रहे जिन्होंने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण (Abrogation of Article 370) और नागरिकता अधिनियम की धारा 6A (Section 6A of the Citizenship Act) की वैधता को बरकरार रखा। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे को मान्यता देने वाले निर्णय में असहमति जताई थी।
वे उस खंडपीठ के सदस्य थे जिसने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब नीति मामले में सीबीआई जांच के दौरान जमानत दी।
इस मामले में न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने एक अलग मत लिखा जिसमें उन्होंने माना कि सीबीआई ने केजरीवाल की गिरफ्तारी के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन किया था, जबकि वे पहले से प्रवर्तन निदेशालय (ED) की हिरासत में थे।
उन्होंने उस खंडपीठ में भी भाग लिया जिसने “इंडियाज़ गॉट लेटेंट” विवाद के बाद यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया पर किसी भी प्रकार की सामग्री अपलोड करने पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया था, जिसे बाद में हटाया गया।
वे पाँच-न्यायाधीशीय पीठ में भी रहे जिसने राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से संबंधित राष्ट्रपति के परामर्श संदर्भ (Presidential Reference) पर सुनवाई की।
इसके अतिरिक्त, वे बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision of Electoral Rolls) पर सुनवाई करने वाली पीठ में भी शामिल रहे, जहाँ अदालत ने आधार कार्ड को पहचान-पत्र के रूप में अपनाने का निर्देश दिया।
वर्तमान में वे विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत संघ (2021) मामले की पुनर्विचार याचिका सुन रहे हैं, जिसमें ईडी (Enforcement Directorate) को व्यापक जांच शक्तियाँ और धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA, 2002) के तहत कठोर जमानत शर्तें दी गई थीं।
मनुपात्रा (Manupatra) के आँकड़ों के अनुसार, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अब तक सर्वोच्च न्यायालय में 291 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ (Justice Vikram Nath)

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ फरवरी 2027 में न्यायमूर्ति सूर्यकांत के उत्तराधिकारी के रूप में मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। उनका कार्यकाल अपेक्षाकृत छोटा होगा, लगभग सात महीने, और वे 23 सितम्बर 2027 को सेवानिवृत्त होंगे।
वे अगस्त 2021 से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं। उन्हें तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमणा ने नौ न्यायाधीशों के समूह में नियुक्त किया था, उसी समूह में से तीन भविष्य के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। वे वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के तीसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं।
न्यायमूर्ति नाथ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में सितम्बर 2004 से सितम्बर 2019 तक न्यायाधीश के रूप में कार्य किया और उसके बाद गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने।
वे उस संविधान पीठ का हिस्सा रहे जिसने अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के भीतर उपवर्गीकरण (sub-classification) को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण के लिए वैध ठहराया। वर्ष 2023 में वे उस पाँच-न्यायाधीशीय पीठ के सदस्य थे जिसने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे की माँग को अस्वीकार किया। न्यायमूर्ति नाथ राष्ट्रपति के परामर्श संदर्भ वाली पीठ में भी न्यायमूर्ति सूर्यकांत के साथ थे।
उन्होंने अब तक सर्वोच्च न्यायालय में 260 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना (Justice B.V. Nagarathna)

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना सर्वोच्च न्यायालय के 75 वर्षों के इतिहास में पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनेंगी। यह ऐतिहासिक क्षण हालांकि केवल 36 दिनों के लिए रहेगा, क्योंकि उनका कार्यकाल बहुत संक्षिप्त होगा। वे 30 अक्टूबर 2027 को सेवानिवृत्त होंगी।
न्यायमूर्ति नागरत्ना को अगस्त 2021 में उन्हीं नौ न्यायाधीशों के साथ पदोन्नत किया गया था जिनमें न्यायमूर्ति नाथ भी शामिल थीं। वे फरवरी 2008 से अगस्त 2021 तक कर्नाटक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहीं।
उन्होंने 2016 की विमुद्रीकरण (Demonetisation) योजना को वैध ठहराने वाले संविधान पीठ के निर्णय में एकमात्र असहमति व्यक्त की थी, यह कहते हुए कि इस योजना को अपनाने में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
उन्होंने दो अन्य मामलों में भी असहमति जताई, जिनमें औद्योगिक शराब पर नियंत्रण और खनन-खनिजों पर कराधान से जुड़े मामले थे। दोनों बार उन्होंने कहा कि संघीय ढाँचे में भी केंद्र की सर्वोच्चता (Union Supremacy) का सम्मान होना चाहिए।
अगस्त 2025 में न्यायमूर्ति नागरत्ना तब सुर्खियों में आईं जब उन्होंने न्यायमूर्ति वी.एम. पंचोली की नियुक्ति के विरोध में खुलकर असहमति दर्ज की, जो आगे चलकर स्वयं मुख्य न्यायाधीश बनने की पंक्ति में हैं।
अब तक उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में 326 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा (Justice P.S. Narasimha)

न्यायमूर्ति नरसिम्हा, न्यायमूर्ति नागरत्ना के सेवानिवृत्त होने के बाद अक्टूबर 2027 में पदभार ग्रहण करेंगे। उनका कार्यकाल छह माह से अधिक का होगा और वे 4 मई 2028 को सेवानिवृत्त होंगे।
वे तीसरे ऐसे न्यायाधीश होंगे जो सीधे बार (Bar) से मुख्य न्यायाधीश बने। उनसे पहले सीजेआई एस.एम. सिकरी और यू.यू. ललित ऐसे न्यायाधीश रहे हैं।
न्यायमूर्ति नरसिम्हा अगस्त 2021 में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त हुए। उससे पूर्व वे सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले वकील थे और वर्ष 2014 में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General) बने।
उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से अयोध्या शीर्षक विवाद (Ayodhya Title Dispute), राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) प्रकरण और इच्छामृत्यु (Euthanasia) मामले में बहस की थी।
न्यायाधीश के रूप में उन्होंने उस संविधान पीठ में सहमति मत लिखा जिसने यौन अल्पसंख्यकों (sexual minorities) को विवाह का अधिकार देने से इनकार किया।
साथ ही, उन्होंने उस मामले में असहमति जताई जिसमें यह निर्णय हुआ कि सार्वजनिक-निजी अनुबंधों (public-private contracts) में एकतरफा शर्तें संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं।
उन्होंने अब तक 218 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला (Justice J.B. Pardiwala)

न्यायमूर्ति पारदीवाला मई 2028 में मुख्य न्यायाधीश बनेंगे और 11 अगस्त 2030 तक दो वर्ष से अधिक का कार्यकाल पूरा करेंगे। इस सूची में वे एकमात्र न्यायाधीश हैं जिनका कार्यकाल दो वर्ष से अधिक रहेगा।
वे मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त हुए और गुजरात उच्च न्यायालय से आते हैं। वे सर्वोच्च न्यायालय के लिए नियुक्त होने वाले चौथे पारसी न्यायाधीश हैं।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के आरक्षण को बरकरार रखने वाले निर्णय में सहमति मत लिखा। उन्होंने नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता पर असहमति जताई, यह कहते हुए कि यह धारा “कालगत अनुचितता” (temporal unreasonableness) के कारण असंवैधानिक है।
वे उस खंडपीठ के सदस्य थे जिसने आवारा कुत्तों (stray dogs) को आठ सप्ताह के भीतर आश्रयों में स्थानांतरित करने का आदेश दिया, जिसने उस समय व्यापक विरोध उत्पन्न किया।
उन्होंने वह निर्णय भी लिखा जिसने राज्यपाल और राष्ट्रपति को राज्य विधेयकों पर स्वीकृति देने की समयसीमा निर्धारित की। इस निर्णय के एक महीने बाद राष्ट्रपति का परामर्श (Presidential Reference) मांगा गया।
उन्होंने अब तक सर्वोच्च न्यायालय में 307 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन (Justice K.V. Viswanathan)

न्यायमूर्ति विश्वनाथन चौथे ऐसे मुख्य न्यायाधीश होंगे जो सीधे बार (Bar) से नियुक्त होंगे। उनका कार्यकाल दस माह का रहेगा और वे 25 मई 2031 को सेवानिवृत्त होंगे।
वे मई 2023 में सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त हुए थे। उन्हें 2009 में सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) घोषित किया गया था।
वकील के रूप में उन्होंने इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (Internet Freedom Foundation) की ओर से व्हाट्सएप प्राइवेसी नीति (WhatsApp Privacy Policy) पर संविधान पीठ के समक्ष पैरवी की। उन्होंने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विवाह अधिकार के पक्ष में तर्क रखे।
वर्ष 2018 में उन्हें amicus curiae (न्यायालय के सहयोगी) के रूप में नियुक्त किया गया था ताकि जिला न्यायालयों में रिक्तियों की पूर्ति की निगरानी में सहायता दी जा सके। उन्होंने गुजरात, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और केरल राज्यों में नियुक्तियों की प्रक्रिया की निगरानी में सहायता की।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन न्यायाधीश के रूप में उस खंडपीठ के सदस्य रहे जिसने केरल सरकार द्वारा केंद्र के विरुद्ध दायर मूल वाद (original suit), जिसमें राज्यों के उधार लेने की शक्तियों की सीमा पर विवाद था, को संविधान पीठ के पास भेजा।
उन्होंने अब तक सर्वोच्च न्यायालय में 78 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची (Justice Joymalya Bagchi)

न्यायमूर्ति बागची न्यायमूर्ति विश्वनाथन के सेवानिवृत्त होने के बाद मई 2031 में मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। उनका कार्यकाल चार माह का रहेगा और वे 2 अक्टूबर 2031 को सेवानिवृत्त होंगे।
सर्वोच्च न्यायालय में आने से पहले वे कोलकाता उच्च न्यायालय और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहे। कोलेजियम ने उनकी नियुक्ति की अनुशंसा करते समय विशेष ध्यान दिया कि वर्ष 2013 में सीजेआई अल्तमस कबीर की सेवानिवृत्ति के बाद से कोलकाता उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश नहीं बना था।
उनकी नियुक्ति से स्पष्ट हुआ कि मुख्य न्यायाधीश बनने की संभाव्यता भी कोलेजियम के विचारों में एक महत्वपूर्ण तत्व होती है।
वे वर्तमान में उस पीठ में हैं जो बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision of Electoral Rolls) से संबंधित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
उन्होंने अब तक सर्वोच्च न्यायालय में 17 निर्णय लिखे हैं।
न्यायमूर्ति विपुल पंचोली (Justice Vipul Pancholi)

न्यायमूर्ति पंचोली 60वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में मई 2033 में पदभार ग्रहण करेंगे और लगभग डेढ़ वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त होंगे।
इससे पहले वे पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। उन्हें अक्टूबर 2014 में गुजरात उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
बाद में उनका स्थानांतरण पटना उच्च न्यायालय में हुआ जहाँ वे जुलाई 2025 में मुख्य न्यायाधीश बने।
उनकी नियुक्ति विवादास्पद रही क्योंकि खबरों के अनुसार कोलेजियम की सदस्य न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने उनके नाम का विरोध किया था।
बताया जाता है कि उन्होंने इसे “न्यायिक प्रशासन के लिए प्रतिकूल” और कोलेजियम की साख के लिए “हानिकारक” बताया था।
यह था वर्ष 2025 से 2033 तक के आठ संभावित मुख्य न्यायाधीशों का क्रम और उनका विस्तृत परिचय, जो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आगामी दशक को आकार देंगे।
यह जानकारी इस मूल अंग्रेजी लेख से साभार ली गई है।