Thursday, September 11, 2025

नेपाल तख्तापलट: नेपाल भी हो सकता था भारत का हिस्सा, लेकिन नेहरू ने नहीं माना राजा त्रिभुवन का प्रस्ताव

नेपाल तख्तापलट: 1949 में जब चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई और उसका असर पूरे क्षेत्र में दिखाई देने लगा और 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया, उसी समय नेपाल भी राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था।

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इन परिस्थितियों से नेपाल को सुरक्षित रखने के लिए नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने पंडित नेहरू से नेपाल को भारत में शामिल करने का प्रस्ताव दिया था, मगर नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया ।

नेपाल तख्तापलट: प्रस्ताव स्वीकार न करने के मुख्य कारण

नेपाल तख्तापलट: जब नेपाल के राजा ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने नेपाल को भारत का एक राज्य बनाने का प्रस्ताव रखा, तो नेहरू ने इसे इसलिए अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि भारत को एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में देखा जाए जो अपने पड़ोसियों पर विस्तार करना चाहता है।

नेपाल को भारत में शामिल करने से भारत की साख पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता था। भारत का लक्ष्य एक स्वतंत्र और सर्वोच्च नेपाल का समर्थन करना था, न कि उसे अपने अधीन कर लेना।

नेपाल तख्तापलट: भारत के लिए नेपाल का स्वतंत्र और स्थिर रहना उसके जियोपॉलिटिकल हितों के लिए भी आवश्यक था। भारत नेपाल को एक “बफर स्टेट” के रूप में देखता था, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत और चीन के बीच महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

नेपाल तख्तापलट: 75 साल पहले नेपाल भारत में क्यों शामिल होना चाहता था?

दरअसल, चीन के तिब्बत पर कब्ज़े के बाद राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह को चीन की बढ़ती आक्रामकता और विस्तारवादी नीतियों का डर सताने लगा था। इसी कारण वे नेपाल को भारत में शामिल करना चाहते थे, ताकि चीन भविष्य में नेपाल पर आक्रमण न कर सके।

नेपाल तख्तापलट: साथ ही, उस समय नेपाल राणा शासन के अधीन राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था। लेकिन राजा लोकतांत्रिक शासन चाहते थे। भारत के साथ गठबंधन का एक बड़ा कारण चीन के प्रभाव से सुरक्षित रहना भी था।

उन्हें राणा शासन से मुक्ति और राजनीतिक स्थिरता की आवश्यकता थी, और उम्मीद थी कि भारत में शामिल होने से नेपाल में लोकतंत्र स्थापित होगा।

नेपाल तख्तापलट: नेपाल में 10 वर्षों तक चला था गृह युद्ध

नेपाल तख्तापलट: नेपाल में समय-समय पर राजनीतिक बदलाव होते रहे, लेकिन लोग असंतुष्ट बने रहे। 1996 में राजशाही के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन शुरू हुआ, जो 10 वर्षों की हिंसा और अस्थिरता के लंबे दौर से गुजरने के बाद 2006 में समाप्त हुआ। इसके बाद माओवादियों की सरकार बनी, लेकिन इन सरकारों ने भी जनता को अक्सर निराश ही किया।

इस युद्ध के बाद नेपाल केवल एक हिंदू राष्ट्र नहीं रहा बल्कि एक गणतांत्रिक देश बन गया। 2008 में माओवादियों की जीत के बाद 240 साल पुरानी राजशाही समाप्त हुई। हालांकि 2006 की “पूर्ण” क्रांति के बाद भी जनता के हालात आज तक अधिक नहीं बदले हैं।

नेपाल ने 2015 में अपने नए संविधान के साथ खुद को एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया। लेकिन आज भी नेपाल अपने अतीत की जंजीरों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है। लोकतंत्र लगातार उलझनों में घिरा हुआ है और राजशाही समय-समय पर सिर उठाकर अपने लिए अवसर तलाश रही है।

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