नेपाल Gen-Z आंदोलन: गाजियाबाद के मास्टर कॉलोनी निवासी 58 वर्षीय रामवीर सिंह गोला और उनकी पत्नी राजेश गोला 7 सितंबर को नेपाल पहुंचे थे।
उनका उद्देश्य पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन करना और काठमांडू के धार्मिक माहौल का अनुभव लेना था।
लेकिन यह यात्रा 9 सितंबर की रात अचानक ही मातम में बदल गई, जब हिंसक आंदोलनकारियों ने उस लग्जरी होटल को आग के हवाले कर दिया जिसमें यह दंपति ठहरा हुआ था।
Table of Contents
नेपाल Gen-Z आंदोलन: कैसे भड़का Gen-Z आंदोलन?
नेपाल में 8 सितंबर से Gen-Z आंदोलन की शुरुआत हुई थी। यह आंदोलन उस सरकारी फैसले के खिलाफ था जिसमें सोशल मीडिया पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे।
प्रदर्शनकारियों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना और सड़कों पर उतर आए।
शुरुआत शांतिपूर्ण रही, लेकिन जल्द ही यह प्रदर्शन हिंसक हो गया। राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में सरकारी इमारतों पर हमला हुआ,
गाड़ियाँ जलाई गईं और निजी प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाया गया। स्थिति तब और बिगड़ गई जब प्रदर्शनकारी संसद भवन तक पहुंचने की कोशिश करने लगे।
पांच सितारा होटल बना आग का निशाना
हिंसक भीड़ ने राजधानी काठमांडू के एक पांच सितारा होटल पर धावा बोल दिया, जहां कई विदेशी पर्यटक ठहरे हुए थे।
इसी होटल की ऊपरी मंजिल पर गाजियाबाद का गोला परिवार भी मौजूद था। प्रदर्शनकारियों ने निचली मंजिलों में आग लगा दी,
जिससे होटल तेजी से धुएं और लपटों में घिर गया। ऊपरी मंजिलों पर फंसे मेहमानों के पास बचने का रास्ता लगभग खत्म हो गया।
पति ने दिखाई बहादुरी, पत्नी की गई जान
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जब होटल में धुआं भर गया और सीढ़ियों से नीचे उतरना संभव नहीं रहा तो रामवीर सिंह गोला ने खिड़की का शीशा तोड़ा।
उन्होंने चादरों और पर्दों को बांधकर रस्सी जैसा बनाया और गद्दे नीचे फेंककर सुरक्षित उतरने का इंतजाम किया।
वह खुद किसी तरह नीचे उतरने में सफल रहे, लेकिन जब उनकी पत्नी राजेश नीचे आने की कोशिश कर रही थीं, तो हाथ फिसल गया और वह संतुलन खो बैठीं।
वह सीधे नीचे गिर गईं और गंभीर चोटों से घायल हो गईं। अस्पताल ले जाते समय अधिक खून बहने की वजह से उनकी मौत हो गई।
बेटे ने सुनाया हादसे का दर्दनाक किस्सा
राजेश गोला के बड़े बेटे विशाल ने बताया कि आग लगने के बाद होटल में हड़कंप मच गया था। सीढ़ियों पर धुआं भर गया था और लोग चीख-पुकार कर रहे थे।
उनके पिता ने बहादुरी दिखाते हुए खिड़की से निकलने का रास्ता बनाया, लेकिन मां हादसे का शिकार हो गईं।
विशाल ने यह भी कहा कि पूरे दो दिन तक उन्हें माता-पिता की लोकेशन का पता नहीं चला क्योंकि काठमांडू में नेटवर्क ठप था। बाद में राहत शिविर से पिता मिले, लेकिन मां को खोने का गहरा सदमा झेलना पड़ा।
दूतावास पर उठे सवाल
विशाल ने आरोप लगाया कि इस संकट की घड़ी में भारतीय दूतावास ने बहुत कम मदद दी।
उन्होंने कहा कि लगातार संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन नेटवर्क ठप होने और दूतावास की ओर से समुचित प्रयास न होने के कारण परिवार को भटकना पड़ा।
उन्होंने दुख जताया कि अगर समय पर मदद मिलती तो शायद उनकी मां को बचाया जा सकता था।
गाजियाबाद में मातम का माहौल
शुक्रवार को जब राजेश गोला का पार्थिव शरीर गाजियाबाद लाया गया तो मास्टर कॉलोनी में शोक की लहर दौड़ गई। रिश्तेदारों और पड़ोसियों की भीड़ घर पर उमड़ पड़ी।
परिवार के लोगों का रो-रोकर बुरा हाल था। मोहल्ले के लोगों ने भी इस घटना को बेहद दर्दनाक बताते हुए कहा कि धार्मिक यात्रा पर गए इस परिवार को ऐसी त्रासदी का सामना करना पड़ेगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी।
भारतीय पर्यटकों की सुरक्षा पर चिंता
नेपाल में जारी हिंसक आंदोलन ने वहां मौजूद विदेशी पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता खड़ी कर दी है। काठमांडू जैसे पर्यटन केंद्र में अगर
पांच सितारा होटल भी सुरक्षित नहीं रह गया तो साधारण यात्रियों की स्थिति और भी भयावह हो सकती है।
भारत सरकार और भारतीय दूतावास के सामने अब यह बड़ी चुनौती है कि फंसे हुए भारतीयों को सुरक्षित निकाला जाए और भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए ठोस रणनीति बनाई जाए।
धार्मिक यात्रा ने दी जीवनभर का घाव
राजेश गोला की मौत सिर्फ उनके परिवार की निजी पीड़ा नहीं है बल्कि यह उन सभी लोगों के लिए चेतावनी है जो राजनीतिक अस्थिरता वाले इलाकों में यात्रा की योजना बनाते हैं।
धार्मिक आस्था से जुड़ी इस यात्रा ने गाजियाबाद के इस परिवार को हमेशा के लिए अधूरा कर दिया।
राजेश की मौत ने यह साफ कर दिया कि जब राजनीतिक असंतोष हिंसा में बदलता है तो उसका सबसे ज्यादा खामियाजा निर्दोष आम नागरिकों और पर्यटकों को उठाना पड़ता है।