सूर्य मेष संक्रान्ति: 14 अप्रैल 2025, सोमवार, प्रातः 05:37 बजे सूर्य का प्रवेश मेष राशि में हुआ। इसी के साथ वसंत ऋतु का अंतिम चरण आरम्भ और खरमास की समाप्ति हो गयी। यह संक्रमण स्वाती नक्षत्र, कौलव करण और विषुव संक्रांति के योग में हुआ, जो इसे और भी विशेष बनाता है। यह जानकारी सूर्यसिद्धान्त पर आधारित जयपुर के जयादित्य पंचांग द्वारा दी गई है:-
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उच्च के सूर्य का राशियों पर प्रभाव
मेष – मेहनत अधिक करनी होगी। धन खर्च बढ़ेगा। परिस्थितियां प्रतिकूल होंगी। क्रोध व यात्रा की अधिकता।
वृषभ – मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, ज्वर व अन्य शारीरिक कष्ट। मित्र ही शत्रु के समान व्यवहार करें।
मिथुन – स्थान की प्राप्ति, मान-सम्मान में वृद्धि, आर्थिक लाभ व उत्तम स्वास्थ्य के योग।
कर्क – इच्छित कार्यों की सिद्धि, सफलता व शुभ कार्यों से मन प्रसन्न रहेगा।
सिंह – संकट, अपमान, प्रियजनों से दूरी, कार्यों में बाधाएं और हानि संभव।
कन्या – स्वास्थ्य संबंधी परेशानी, भय, चिंता, विवाद और सरकारी अड़चनें।
तुला – भागदौड़ में वृद्धि, पाचन संबंधी समस्या, आत्मबल में कमी व मानहानि।
वृश्चिक – रोग व शत्रु बाधाओं से मुक्ति, मानसिक शांति व नकारात्मकता से राहत।
धनु – मानसिक व्याकुलता, भ्रम और रोगों से परेशान करने वाला समय।
मकर – स्वास्थ्य में गिरावट, पारिवारिक क्लेश और हृदय संबंधी कष्ट।
कुंभ – स्थान व पद प्राप्ति, धन लाभ, शुभ समाचार और शत्रुओं पर विजय।
मीन – धनहानि, सुख में कमी, जिद्दी स्वभाव और धोखे की आशंका।
मेष संक्रांति, भारतीय पंचांग के अनुसार नए सौर वर्ष का आरंभ भी है। यह दिन न केवल खगोलीय दृष्टि से, बल्कि धार्मिक व सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

संक्रांति का स्वरूप: खड़ी संक्रांति, नीला वस्त्र, तलवार, भिक्षान्न
सूर्य मेष संक्रान्ति: ज्योतिषीय दृष्टि से इस बार की मेष संक्रांति ‘कौलव करण’ में प्रवेश कर रही है, जिसके कारण यह सर्प जाति की संक्रांति है। यह संक्रांति वराह वाहन पर आरूढ़ होकर आती है। उसका रूप—नीले वस्त्रों में लिपटी हुई, तलवार धारण किए, भिक्षा स्वरूप अन्न ग्रहण करती हुई, और लाल चंदन का लेपन किए हुए बताया गया है। वह बकुल व अशोक के पुष्पों से सुशोभित, गतालक अवस्था की युवती की भाँति, रति मुद्रा में खड़ी हुई प्रवेश करती है।
सूर्य मेष संक्रान्ति: यह काल वृष्टिकारक होता है। परंतु सैन्य, औज़ार, वाहन और भोजन जैसे कार्यों व इनसे जुड़ी आजीविका वालों के लिए यह काल शुभ नहीं माना गया है। इस वर्ष की संक्रांति स्वाती नक्षत्र में पड़ रही है, जो कि मात्र 15 मुहूर्तों की है। आने वाले समय में अन्न, अनाज और खाद्य वस्तुएं महंगी हो सकती हैं। स्वाती नक्षत्र में जन्मे जातकों को इस काल में धनहानी, मानसिक कष्ट या विरोध का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे जातकों के लिए कमल, हल्दी और सरसों मिले जल से स्नान करना लाभकारी है।
मेष संक्रांति का प्रतीक रूप
सूर्य मेष संक्रान्ति: शास्त्रों में इस संक्रांति को बाघ की सवारी करने वाली, जटाजूटधारी, अग्निरूपा, तीन नेत्रों वाली, रक्तवर्णा, कपाल धारण करने वाली, एकमुखी कराली देवी के रूप में दर्शाया गया है। इसका धाता (अधिपति) सूर्य को माना गया है। इस संक्रांति के अवसर पर ‘मेषदान’ विशेष पुण्यदायी माना जाता है।