महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रहा विवाद एक बार फिर चर्चा में है। मुंबई के मुंब्रा इलाके में हुई एक घटना ने साफ कर दिया कि जबरन मराठी थोपने की कोशिश हर समुदाय पर एक जैसी नहीं चलती। मुस्लिमों ने इस धमकी के खिलाफ एकजुट होकर ऐसा जवाब दिया, जिसने राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के मराठी आंदोलन की हवा निकाल दी। यह घटना इस बात का भी सबूत है कि मराठी माणूस का जोर अब केवल हिंदुओं पर ही चलता है, जबकि मुस्लिम समुदाय के सामने यह बहादुरी फीकी पड़ रही है।
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बाजार में हुई बहस, मराठी की जिद पड़ी भारी
मुंब्रा, जो मुस्लिम बहुल इलाका माना जाता है, वहाँ एक मनसे कार्यकर्ता बाजार में यह जाँचने निकला था कि कौन मराठी नहीं बोलता। राज ठाकरे का यह समर्थक विशाल गवली भाषावाद फैलाने में लिप्त था। उसने एक रेहड़ीवाले से सामान लिया और मराठी में कीमत पूछी। रेहड़ीवाले ने हिंदी में जवाब दिया, जिस पर कार्यकर्ता भड़क गया। उसने चिल्लाकर कहा, “महाराष्ट्र में मराठी बोलनी पड़ेगी।”
इसके बाद दोनों के बीच हिंदी और मराठी बोलने को लेकर बहस शुरू हो गई। मौजूद लोगों के अनुसार उसने रेहड़ीवाले से गाली-गलौच की और इलाके को बंद करवाने की धमकी तक दे डाली। विशाल ने धमकी दी थी, “अगर तुम्हें महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी में बोलना होगा, मैं मुंब्रा बंद करा दूंगा।”
मुस्लिम समुदाय की एकजुटता, कार्यकर्ता को घेरा
लेकिन कहानी में तब मोड़ आया, जब पता चला कि रेहड़ीवाला मुस्लिम समुदाय से था और वह इलाका मुस्लिम बहुल था। देखते ही देखते 100-150 लोग इकट्ठा हो गए और कार्यकर्ता को घेर लिया। गुस्साई भीड़ ने उसे दबोच लिया और 7-8 थप्पड़ जड़ दिए। स्थानीय लोगों ने हिंदी में जवाब देते हुए उसे सबक सिखाने का फैसला किया। आखिरकार उस कार्यकर्ता को दोनों हाथों से कान पकड़कर उठक-बैठक करनी पड़ी और माफी माँगनी पड़ी—वो भी हिंदी में। यह नजारा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया।
मनसे की रणनीति फेल, मुस्लिमों से डरे ठाकरे के गुंडे
इस घटना ने मनसे के मराठी आंदोलन को करारा झटका दिया है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं को नई सलाह दी है—पहले पूरी तरह कन्फर्म कर लो कि हिंदी बोलने वाला हिंदू है, तभी उस पर हाथ उठाओ। अगर वह मुस्लिम निकला, तो चुपचाप चले जाओ, वरना कुटाई तय है। यह सलाह साफ करती है कि मुस्लिम समाज के सामने मनसे की जबरन मराठी थोपने की रणनीति नाकाम हो रही है। मुस्लिम समुदाय ने अपनी एकजुटता से यह साबित कर दिया कि वह अपनी भाषा और पहचान पर किसी तरह का दबाव बर्दाश्त नहीं करेगा।
केवल हिंदुओं पर चलता है मराठी का जोर
यह घटना इस कड़वे सच को भी उजागर करती है कि मनसे का मराठी माणूस का नारा अब केवल हिंदू समुदाय पर ही असर दिखा रहा है। जानकारों का मानना है कि हिंदू समुदाय में डर या सहमति की वजह से मनसे की बात मान ली जाती है, लेकिन मुस्लिम समाज ने साफ संदेश दे दिया कि वह ऐसी धमकियों को चुपचाप सहन नहीं करेगा। एक स्थानीय नागरिक ने कहा, “यहाँ सब अपनी मर्जी से मराठी सीख सकते हैं, लेकिन जबरदस्ती से कुछ नहीं होगा।”
इस घटना ने समाज में नई बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे भाषाई असहिष्णुता का नतीजा मान रहे हैं, तो कुछ इसे सांस्कृतिक टकराव का उदाहरण बता रहे हैं। एक दुकानदार ने कहा, “महाराष्ट्र में सभी को अपनी भाषा बोलने का हक है। मराठी थोपना गलत है।” वहीं, मनसे समर्थकों का कहना है कि मराठी उनकी पहचान है और इसे बढ़ावा देना उनका अधिकार है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाषा के नाम पर धमकी और हिंसा सही रास्ता है?
हाल ही में गुड़ी पड़वा पर भी मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे ने बैंकों में मराठी लागू करने की घोषणा कर दी थी जिसके बाद मनसे कार्यकर्ता बैंक कर्मचारियों को धमका रहे थे। इसके बाद राज ठाकरे ने मुस्लिमों के डर से इस आन्दोलन को वापिस लेने की घोषणा भी कर दी।
सबक और सौहार्द की जरूरत
मुंब्रा की इस घटना ने साफ कर दिया कि जबरन कुछ थोपने की कोशिश अब आसान नहीं होगी। मुस्लिम समाज की एकजुटता ने मनसे के मराठी आंदोलन की कमजोरी उजागर कर दी है। महाराष्ट्र जैसे विविधतापूर्ण राज्य में सामाजिक सौहार्द के लिए सभी समुदायों के बीच आपसी समझ और सम्मान जरूरी है। अगर भाषा के नाम पर टकराव बढ़ा, तो यह राज्य की एकता के लिए खतरा बन सकता है। हालांकि यह घटना जनवरी 2025 की है पर यह एक सबक है कि विविधता को सम्मान देना ही सही रास्ता है।
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