Saturday, December 28, 2024

Manmohan Singh: जिन्हें कभी बताया ‘जोकर’ वही मनमोहन सिंह आज कांग्रेस के लिए महानायक, कई बार किया गया अपमान

Former PM Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जीवन भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था में उनका योगदान एक अविस्मरणीय अध्याय है। 92 वर्षीय डॉ. मनमोहन सिंह का दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने उनके निधन को निजी क्षति बताते हुए उनके साथ बिताए समय को याद किया है।

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बता दें आज कॉन्ग्रेस पार्टी जिन मनमोनह सिंह के योगदान का गुणगान कर रही है, वही पार्टी कई मौकों पर उन्हें अपमानित करने का कारण भी बनी। इस लेख में डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन की उन 4 प्रमुख घटनाक्रमों के बारे में बताया जा रहा है, जब उन्होंने अपमान सहते हुए भी देश के लिए काम किया।

राजीव गाँधी ने योजना आयोग की तुलना जोकर आयोग से की

साल 1986 में राजीव गाँधी भारत के प्रधानमंत्री थे और डॉ. मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष। मनमोहन सिंह ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लेकर एक प्रजेंटेशन दिया। राजीव गाँधी इससे नाराज हुए और अगले दिन सार्वजनिक रूप से योजना आयोग को ‘जोकर आयोग’की संज्ञा दे डाली। यह टिप्पणी मनमोहन सिंह के लिए बेहद अपमानजनक थी। कहा जाता है कि उन्होंने इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन दोस्तों और सहकर्मियों की समझाइश के बाद वे अपने पद पर बने रहे। आज वही कॉन्ग्रेस पार्टी उन्हें देश का महानायक बता रही है, जबकि अतीत में उसने हमेशा डॉ. मनमोहन सिंह का अपमान ही किया।

वित्त मंत्री के तौर पर कॉन्ग्रेस सांसदों ने किया विरोध

साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया गया। उन्होंने आर्थिक सुधारों की दिशा में साहसिक कदम उठाए और लाइसेंस राज खत्म करने जैसे अहम फैसले लिए। लेकिन कॉन्ग्रेस के सांसदों ने इन नीतियों का जमकर विरोध किया। संसदीय दल की बैठक में मनमोहन सिंह को सांसदों की कड़ी नाराजगी झेलनी पड़ी। यहाँ तक कि पार्टी के अखबार नेशनल हेराल्ड ने भी उनकी नीतियों को मिडिल क्लास विरोधी बताया। यह मनमोहन की दृढ़ता ही थी कि उन्होंने देश की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए अपमान का यह घूँट पी लिया।

राहुल ने संसद में फाड़ा अध्यादेश, किया अपमान

साल 2013 में मनमोहन सिंह सरकार ने सजायाफ्ता अपराधियों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए एक अध्यादेश लाने का फैसला किया। यह अध्यादेश कैबिनेट से पारित हो चुका था। लेकिन राहुल गाँधी ने इसे सरेआम ‘बकवास’ कहकर फाड़ डाला। राहुल के इस काम और बयान ने न केवल मनमोहन की सरकार को शर्मिंदा किया, बल्कि प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भी ठेस पहुँचाई। कहा जाता है कि मनमोहन सिंह इस घटना से इतने आहत हुए कि उन्होंने इस्तीफा देने का मन बना लिया था, लेकिन अंततः उन्होंने पद पर बने रहकर देश की स्थिरता को प्राथमिकता दी।

माथे पर हमेशा रहा ‘कठपुतली’ का कलंक

डॉ. मनमोहन सिंह का कार्यकाल इस बात का प्रतीक बन गया कि किस तरह सत्ता का केंद्र कहीं और होता है और प्रधानमंत्री केवल एक प्रतीक बनकर रह जाता है। 10 साल तक देश का नेतृत्व करने वाले मनमोहन को उनके निर्णय लेने की शक्ति से वंचित रखा गया। द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर और अन्य कई किताबों व संस्मरणों ने इस बात को उजागर किया कि 10 जनपथ (सोनिया गाँधी का आवास) से मनमोहन सरकार को नियंत्रित किया जाता था। आज कॉन्ग्रेस पार्टी मनमोहन सिंह को महानायक बता रही है। लेकिन इतिहास यह नहीं भूल सकता कि वही पार्टी, जिसने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया, कई बार उनके सम्मान को ठेस पहुँचाने का भी कारण बनी।

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