महाराष्ट्र ATS के पूर्व पुलिस इंस्पेक्टर मेहबूब मुजावर ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया कि मालेगांव बम धमाके की शुरुआती जांच में उन्हें कुछ खास लोगों को गिरफ्तार करने के गोपनीय निर्देश दिए गए थे। इनमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का नाम भी शामिल था।
मुजावर का दावा है कि इस आदेश का उद्देश्य ‘भगवा आतंकवाद’ की स्क्रिप्ट तैयार करना था। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें राम कालसंगरा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार और मोहन भागवत को उठाने के निर्देश दिए गए थे, मगर उन्होंने इसे मानने से इंकार कर दिया।
उनके अनुसार, मोहन भागवत जैसी प्रतिष्ठित हस्ती को बिना किसी पुख्ता सबूत के पकड़ना उनके लिए असंभव था। उनके आदेश नहीं मानने पर आईपीएस अधिकारी परमबीर सिंह ने उनके खिलाफ फर्जी केस दर्ज कराया, जिससे उनकी 40 साल की पुलिस सेवा पर विराम लग गया।
‘फर्जी अफसर’ के नेतृत्व में झूठी जांच: मुजावर का आरोप
मुजावर ने आगे कहा कि मालेगांव ब्लास्ट की पूरी जांच एक ‘फर्जी अधिकारी’ की अगुवाई में हुई थी और इसकी पूरी रूपरेखा ही गलत तथ्यों पर आधारित थी। उन्होंने अदालत के ताज़ा फैसले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय ने जो निर्णय दिया है, वह उस दौर की झूठी जांच को बेनकाब करता है।
उन्होंने साफ कहा कि ‘भगवा आतंकवाद’ जैसी कोई चीज़ थी ही नहीं। यह सबकुछ राजनीतिक षड्यंत्र के तहत रचा गया झूठ था, जिसका मकसद विशेष विचारधारा और संगठनों को बदनाम करना था।
कर्नल पुरोहित का बयान: RSS और योगी का नाम लेने के लिए दी गईं थीं यातनाएं
इससे पहले एक और सनसनीखेज खुलासा हो चुका है, जिसमें लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित ने कोर्ट में गवाही देते हुए कहा था कि महाराष्ट्र ATS उन्हें RSS, विश्व हिंदू परिषद और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम लेने के लिए अमानवीय यातनाएं देती रही।
कर्नल पुरोहित ने अदालत को बताया, “मेरे साथ युद्ध बंदी से भी बदतर बर्ताव किया गया। हेमंत करकरे, परमबीर सिंह और कर्नल श्रीवास्तव लगातार दबाव बनाते रहे कि मैं मालेगांव ब्लास्ट की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लूँ और इन नेताओं के नाम लूँ। तीन नवम्बर 2008 तक मुझे क्रूर यातनाओं का सामना करना पड़ा।”
NIA कोर्ट का फैसला: सबूतों के अभाव में सभी आरोपित बरी
2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में NIA की विशेष अदालत ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सभी 7 आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि आरोप सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं और यह मामला राजनीतिक षड्यंत्र प्रतीत होता है।
यह फैसला उन सभी आरोपों पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है जो तथाकथित ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा के तहत लगाए गए थे। अब यह पूरी कहानी, जिसमें राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को फँसाने की कोशिश की गई, बेनकाब होती दिखाई दे रही है।