Maharashtra: मुंबई में राजनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षण सामने आया जब दो दशकों की दूरी के बाद शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) अध्यक्ष राज ठाकरे एक मंच पर साथ नजर आए।
यह मिलन न सिर्फ भावनात्मक रहा, बल्कि आने वाले दिनों की राजनीतिक दिशा की भी झलक दे गया।
संयुक्त रैली में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे को गले लगाकर जनता के बीच एकजुटता का संदेश दिया, जिससे कार्यक्रम स्थल पर मौजूद हजारों समर्थकों के बीच जोश और उत्साह की लहर दौड़ गई।
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Maharashtra: भाषा विवाद
यह ऐतिहासिक एकता ऐसे समय में सामने आई है जब महाराष्ट्र सरकार ने स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला लिया, जिसे बाद में भारी विरोध के बाद रद्द करना पड़ा।
इस निर्णय ने राज्य में भाषा और अस्मिता को लेकर लंबे समय से दबे मुद्दों को फिर से सतह पर ला दिया। मराठी स्वाभिमान और सांस्कृतिक पहचान को लेकर उठते सवालों के बीच ठाकरे बंधुओं की यह एकता जनभावना का प्रतिनिधित्व करती नजर आई।
“मेरा महाराष्ट्र किसी भी राजनीति से बड़ा” – राज ठाकरे
राज ठाकरे ने अपने संबोधन की शुरुआत बेहद भावुक लहजे में की। उन्होंने कहा, “मैंने पहले ही कहा था कि मेरा महाराष्ट्र किसी भी राजनीति और झगड़े से बड़ा है। आज बीस साल बाद हम दोनों भाई साथ आए हैं।
जो बालासाहेब ठाकरे भी नहीं कर सके, वो आज सत्ता की जिद और बीजेपी की नीतियों ने कर दिखाया।” उनके इस वक्तव्य को जनता ने जोरदार तालियों से समर्थन दिया।
हिंदी भाषा नहीं, थोपने की प्रवृत्ति के खिलाफ
राज ठाकरे ने स्पष्ट किया कि वह हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन किसी भी भाषा को जबरन थोपे जाने की नीति का वे विरोध करते हैं। उन्होंने कहा, “ये तय करना कि कौन सी भाषा कौन सी उम्र में सीखे, यह लोगों का अधिकार है।
सत्ता के बल पर जब कोई चीज थोपी जाती है तो वह लोकतंत्र के खिलाफ होती है।” राज ने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने सरकार को तीन बार पत्र लिखे थे, लेकिन जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्हें खुलकर विरोध करना पड़ा।
ठाकरे बंधुओं की एकजुटता
राज ठाकरे ने मंच से कहा कि यदि कोई महाराष्ट्र की तरफ आंख उठाकर देखेगा, तो उसे अब ‘हमारा सामना’ करना होगा। इस एकजुटता को मात्र एक भावनात्मक क्षण मानना भूल होगी।
विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले मुंबई और अन्य नगर निगम चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह गठजोड़ विपक्षी दलों के समीकरणों को पलट सकता है। शिवसेना (UBT) और MNS के कार्यकर्ता, जो वर्षों से आपसी खींचतान में लगे थे, अब एक दिशा में काम कर सकते हैं।
आने वाले समय पर टिकी निगाहें
हालांकि यह देखना बाकी है कि ठाकरे बंधुओं की यह साझेदारी केवल भाषण और मंच तक सीमित रहती है या आगामी चुनावों में कोई ठोस राजनीतिक गठबंधन के रूप में सामने आती है।
महाराष्ट्र की राजनीति में जहां धर्म, भाषा और अस्मिता जैसे मुद्दे अक्सर ध्रुवीकरण का कारण बनते हैं, वहां इस प्रकार की एकता से नए विकल्प पैदा हो सकते हैं।
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