ईरान कभी लिबरल देश हुआ करता था, लेकिन ये इस्लामिक देश में तब्दील हो गया। ऐसा कहा जाता है कि इसमें यूपी के एक युवक का हाथ था, तो चलिए आपको बताते है क्या है पूरा मामला।
ईरान कभी पर्शिया देश के नाम से जाना जाता था। यह एक लिबरल देश था जो आज इस्लामिक मुल्क के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। आपको जानकर हैरानी होगी की ईरान सन् 1979 पहले ऐसा नहीं था, जैसा आज हमें नजर आता है। यहां पर हिजाब न पहनने तक पर सजा सुना दी जाती है। आपको जानकर हैरानी होगी की यह देश भी पश्चिमी देशों की तरह बोल्ड हुआ करता था। जानकारों का ऐसा मानना है कि एक लिबरल देश से इस्लामिक मुल्क बनने का जो इतिहास है वो यूपी के बाराबंकी जिले से जुड़ा हुआ है।
यूपी का लड़का पहुंचा ईरान
सन् 1979 में रुहुल्लाह खुमैनी को ईरान का पहला शासक बनाया गया था। फिर इसके बाद लिबरल देश शिया मुल्क में बदलता चला गया। खुमैनी को बचपन से ही इस्लाम में काफी दिलचस्पी थी। साथ ही शिया संप्रदाय के प्रति बेहद लगाव भी था। जोकि उन्हें ये सारी चीजे विरासत में अपने दादा सैय्यद अहमद मुसावी हिंदी से मिला हुआ था। मुसावी एक शिया मौलवी थे और उनका ईरान के इतिहास में एक अहम रोल है।
वो भारत से ईरान आये थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के पास किंतूर मे हुआ था। लोगों का मानना है कि अगर वो भारत लौट जाते तो ईरान आज जैसा है वैसा नहीं होता। हालांकि खुमैनी ने अपने दादा को कभी नहीं देखा, लेकिन मुसावी का इस्लामिक शिक्षा का परिवार पर काफी असर था। खुमैनी भी बचपन से उसी माहौल में रहें। खुमैनी ने अपने दादा और उनकी बातें परिवार के लोगों से ही सुनीं थी।
खुमैनी के दादा क्यों भारत के यूपी से ईरान आए?
सैय्यद खुमैनी साल 1830 में भारत से ईरान आए थे। उस समय भारत पर अंग्रेजी हूकूमत थी। खुमैनी इस्लामी पुनरुद्धार विचारधारा से प्रेरित थे और उन्हें लगता था कि इस्लाम को समाज में ऊंचा स्थान प्राप्त करने की आवश्यकता है। इसी विचारधारा को लेकर वो इराक के रास्ते होते हुए ईरान जा पहुंचे।
बता दें कि इराक के नजफ में अली का मकबरा है और मकबरे की तीर्थ यात्रा के लिए ही उन्होंने भारत छोड़ा था। अहमद हिंदी के पिता दीन अली शाह 18वीं शताब्दी में ईरान से भारत आए थे। फिर वो चार साल बाद ईरान के खुमेइन शहर में पूरे परिवार के साथ जाकर बस गए। पत्रकार बकर मुईन की किताब में लिखा गया है कि खुमेइन अहमद हिंदी ने तीन शादिया कीं और उनके पांच बच्चे थे। उनके एक बेटे का नाम मुस्तफा था और रुहुल्लाह खुमैनी उन्हीं के बेटे थे।
क्यों लगाते थे हिंदी
लोग अक्सर ये सोचते है कि रुहुल्लाह के दादा अपने नाम के आगे हिंदी क्यों लगाते थे। दरअसल भारत में बिताई जिंदगी और समय की याद बनी रहें, इसलिए उन्होंने अपने नाम के आगे हिंदी जोड़ रखा था। साथ ही भारत के साथ जुड़ाव देखने के लिए भी वो अपने नाम के आखिर में हिंदी लगाते थे। उनकी मृत्यु साल 1869 में हुई थी।
मो.रजा पश्चिमी सभ्यता के पक्षधर
1920 से 1979 के इस्लामिक रेवॉल्यूशन से पहले तक ईरान में पहलवी वंश का राज था। इस दौरान देश काफी लिबरल हुआ करता था। यहां के शासक मो.रजा पश्चिमी सभ्यता के पक्षधर हुआ करते थे। वहीं रुहुल्लाह खुमैनी उनके विरोधी थे और वह राजशाही की जगह विलायत-ए-फकीह से शासन की वकालत करते थे। इस वजह से उन्हें 1964 में ईरान से निकाला दिया गया। जब हालात बद से बदतर होने लगे तो मो.पहलवी देश छोड़कर अमेरिका चले गए। फिर खुमैनी की ईरान में वापसी हुई और उन्हें यहां का सुप्रीम लीडर बनाया गया। साथ ही विपक्षी नेता बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।
कौन बनेगा ईरान का शासक
रुहुल्लाह खुमैनी की साल 1989 में तेहरान में मृत्यु हो गई थी। मौजूदा समय में ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली खामेनेई हैं। ईरान में सुप्रीम लीडर की पावर सबसे ज्यादा होती है और राष्ट्रपति को ही सुप्रीम लीडर का उत्तराधिकारी माना जाता है। बीते रविवार को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की विमान दुर्घटना में मौत के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि कौन उनके गद्दी पर काबिज होगा।