Wednesday, December 24, 2025

खीमजी रामदास परिवार, ओमान की धरती पर हिंदू अस्मिता का विराट अध्याय

खीमजी रामदास परिवार, मोदी की यात्रा और सभ्यताओं का जीवित सेतु

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओमान यात्रा केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है। यह उस ऐतिहासिक स्मृति को पुनर्जीवित करने का क्षण है, जिसे दशकों तक औपनिवेशिक इतिहास लेखन ने जानबूझकर हाशिए पर रखा।

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यह यात्रा उस सत्य को सामने लाती है कि भारत की सभ्यता तलवार से नहीं, व्यापार, संस्कृति, आस्था और विश्वास से दुनिया में फैली। ओमान की धरती पर आज जो हिंदू उपस्थिति दिखाई देती है, वह किसी उपनिवेशवाद की देन नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यतागत विस्तार का जीवंत प्रमाण है।

मांडवी से मस्कट तक 12वीं सदी का समुद्री संस्कार

गुजरात का मांडवी केवल एक बंदरगाह नहीं रहा, वह हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री चेतना का केंद्र था। 12वीं सदी से ही मांडवी के व्यापारी छोटे छोटे जहाजों और कश्तियों में बैठकर मस्कट तक जाते थे।

उस समय मस्कट केवल ओमान का नहीं, पूरे अरब क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। यह वह युग था जब भारत का व्यापार मसालों, कपड़े, धातु और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ चलता था।

आज भी मांडवी और मस्कट के बीच जहाजों का आवागमन जारी है। यह केवल व्यापारिक संपर्क नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही स्मृति का प्रवाह है।

मोदी द्वारा इस ऐतिहासिक रिश्ते का उल्लेख करना भारत की उसी भूली हुई समुद्री चेतना को पुनर्स्थापित करने का संकेत है।

खीमजी परिवार का मस्कट में बसना और सभ्यतागत जड़ें

इसी व्यापारिक परंपरा के प्रवाह में गुजरात के मांडवी से एक हिंदू परिवार मस्कट पहुंचा। यही परिवार आगे चलकर खीमजी रामदास परिवार के नाम से जाना गया।

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खीमजी रामदास परिवार, ओमान की धरती पर हिंदू अस्मिता का विराट अध्याय 11

जिस समय यह परिवार मस्कट में बस रहा था, तब ओमान भी अंग्रेजों का गुलाम था और भारत भी। दोनों देश एक ही औपनिवेशिक दमन के अधीन थे।

खीमजी परिवार ने वहां व्यापार किया, पर केवल धन अर्जन को ही जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया। उन्होंने स्थानीय समाज के साथ तादात्म्य स्थापित किया। यही हिंदू जीवन दृष्टि है, जहां निवास का अर्थ केवल रहना नहीं, बल्कि जिम्मेदारी निभाना होता है।

ओमान की आज़ादी में हिंदू परिवार की निर्णायक भूमिका

जब ओमान अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति की ओर बढ़ा, तब खीमजी रामदास परिवार ने केवल समर्थन नहीं दिया, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने ओमान के शेखों को संगठित किया, उन्हें आर्थिक सहायता दी और स्पष्ट कहा कि आज़ादी की लड़ाई में वे उनके साथ हैं।

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ओमान की आज़ादी के बाद स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण थी। नया सुल्तान था, पर देश चलाने के लिए संसाधन नहीं थे। उस समय रामदास खीमजी भाइयों ने आगे बढ़कर लगभग 20 मिलियन डॉलर की सहायता दी, ताकि ओमान की अर्थव्यवस्था खड़ी हो सके। इसके बाद भी समय समय पर इस परिवार ने ओमान को आर्थिक सहयोग दिया।

यह किसी कारोबारी सौदे का हिस्सा नहीं था। यह उस हिंदू भाव का विस्तार था जिसमें राष्ट्र और समाज के लिए दान कर्तव्य माना जाता है।

हिन्दू परिवार की सत्ता, सेवा और सम्मान

आज खीमजी रामदास परिवार ओमान का सबसे बड़ा बिजनेस समूह है। परिवार की अनुमानित नेटवर्थ करीब 1500 मिलियन डॉलर है। पर इस संपन्नता के साथ सत्ता और जिम्मेदारी भी जुड़ी है। इस परिवार के कई सदस्य ओमान में मंत्री रहे हैं और वर्तमान में भी तीन सदस्य मंत्री पद पर हैं।

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ओमान की संसद के अध्यक्ष इसी परिवार से हैं। भारत में जब जी20 सम्मेलन हुआ, तब ओमान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व पंकज खीमजी रामदास ने किया, जो ओमान के शेरपा थे।

आज प्रधानमंत्री मोदी के साथ जो उच्चस्तरीय बैठकें हो रही हैं, उनमें पंकज खीमजी रामदास की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि यह परिवार केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से भी ओमान के केंद्र में है।

ओमान की धरती पर शिवालय और आठ अन्य मंदिर

ओमान में 16वीं सदी से एक हिंदू परिवार का रहना अपने आप में असाधारण है, लेकिन उससे भी अधिक असाधारण है वहां एक भव्य और विशाल शिवालय का निर्माण।

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खीमजी रामदास परिवार ने भारत के बाहर ओमान की धरती पर यह शिव मंदिर बनवाया, साथ ही आठ अन्य मंदिरों का भी निर्माण कराया।

यह कोई छुपी हुई पूजा नहीं है, न ही किसी कोने में सिमटी हुई आस्था। यह खुले रूप में खड़ा हिंदू अस्तित्व है, जो यह दिखाता है कि जहां हिंदू समाज विश्वास और योगदान के साथ रहता है, वहां उसकी आस्था को स्थान मिलता है।

हिंदू जहां रहता है, वहां राष्ट्र बनाता है

यह परिवार इस सत्य का जीवित उदाहरण है कि हिंदू जिस देश में रहता है, उसे अपना मानता है। उसने ओमान को कभी बाहरी भूमि नहीं माना।

उसने वहां क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए ओमान क्रिकेट एसोसिएशन बनाई। उसने सामाजिक, सांस्कृतिक और खेल के माध्यम से ओमान के समाज को सशक्त किया।

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साथ ही यह परिवार आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा है। गुजरात के मांडवी को इस परिवार ने अपने संसाधनों से विकसित किया।

भारत के मंदिरों का नियमित भ्रमण, सांस्कृतिक सहभागिता और मूल भूमि के प्रति सम्मान आज भी इनके जीवन का हिस्सा है।

शेख की उपाधि और हिंदू स्वभाव

यह तथ्य केवल प्रतीकात्मक नहीं है कि खीमजी रामदास परिवार दुनिया का एकमात्र हिंदू परिवार है जिसे शेख की उपाधि मिली।

यह उस भरोसे और सम्मान का प्रतीक है जो ओमान के समाज और सत्ता ने इस परिवार को दिया।

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यह उपाधि इस बात का प्रमाण है कि हिंदू समाज जब किसी देश में रहता है तो वह सांस्कृतिक संघर्ष नहीं करता, बल्कि सांस्कृतिक समन्वय रचता है।

मोदी की यात्रा और भारत की पुनर्जागृत चेतना

प्रधानमंत्री मोदी की ओमान यात्रा इसी व्यापक संदर्भ में देखी जानी चाहिए। यह केवल रणनीतिक साझेदारी या ऊर्जा समझौतों की यात्रा नहीं है। यह भारत की उस सभ्यतागत स्मृति की वापसी है, जिसे लंबे समय तक दबाया गया।

मांडवी से मस्कट तक, खीमजी रामदास परिवार से ओमान की संसद तक, शिवालय से लेकर शेख की उपाधि तक, यह पूरी कहानी एक बात स्पष्ट करती है। भारत कभी भी दुनिया से कटा हुआ नहीं रहा। भारत ने दुनिया में अपना विस्तार हथियारों से नहीं, विश्वास से किया।

आज जब भारत फिर से अपने आत्मबोध के साथ खड़ा हो रहा है, तब ओमान की धरती पर बसे इस हिंदू परिवार की कथा केवल इतिहास नहीं, भविष्य की दिशा भी है।

Mudit
Mudit
लेखक 'भारतीय ज्ञान परंपरा' के अध्येता हैं और 9 वर्षों से भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा एवं राजनीति पर गंभीर लेखन कर रहे हैं।
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