करूड़ भगदड़: तमिलनाडु के करूड़ में हाल ही में मची भगदड़ को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। इस घटना में 41 लोगों की मौत हो गई थी,
जिसके बाद अब एक्टर विजय की पार्टी टीवीके ने राज्य पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
पार्टी की ओर से मद्रास हाई कोर्ट में कहा गया कि भगदड़ दरअसल पुलिस के लाठीचार्ज के कारण मची थी और इस हादसे की पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की है।
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करूड़ भगदड़: भीड़ में से कुछ लोगों ने फेंकीं चप्पलें
टीवीके का कहना है कि जब हजारों समर्थक अपने नेता विजय से मिलने का इंतजार कर रहे थे, तभी अचानक भीड़ में से कुछ लोगों ने चप्पलें फेंकीं।
इसके बाद पुलिस ने बिना किसी चेतावनी के लाठीचार्ज शुरू कर दिया, जिससे भगदड़ की स्थिति पैदा हुई।
पार्टी का आरोप है कि पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने में पूरी तरह विफल रही और उचित इंतजाम न होने के कारण यह त्रासदी हुई।
कार्यकर्ताओं का रवैया उग्र
हालांकि मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की अगुवाई वाली डीएमके सरकार ने इन आरोपों को बेबुनियाद करार दिया है।
सरकार का कहना है कि टीवीके के पास अपने दावे को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।
हाई कोर्ट ने भी मामले की सुनवाई के दौरान टीवीके पर सवाल उठाए और पार्टी के जिला सचिव एन. सतीश कुमार की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया।
अदालत ने पूछा कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में जुटी भीड़ को नियंत्रित करने में पार्टी क्यों नाकाम रही और विजय के रोड शो में कार्यकर्ताओं का रवैया इतना उग्र क्यों था।
कोर्ट ने तोड़फोड़ और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान को लेकर भी नाराजगी जताई।
उम्मीद से ज्यादा लोग पहुंचे
तमिलनाडु पुलिस प्रमुख जी. वेंकटरमन ने इस पूरे घटनाक्रम पर विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि विजय के कार्यक्रम में करीब 10,000 लोगों के आने की उम्मीद थी लेकिन 27,000 से ज्यादा लोग पहुंच गए।
भीड़ सुबह 11 बजे से ही जुटने लगी थी, जबकि विजय शाम करीब 7:40 बजे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे।
इस दौरान लोग तेज धूप में घंटों बिना पर्याप्त भोजन और पानी के इंतजार करते रहे। डीजीपी ने कहा कि इसी अव्यवस्था और भारी भीड़ के दबाव में हालात बिगड़ते चले गए।
करूड़ का मुद्दा बना राजनीति बहस
घटनास्थल का हाल बयान करते हुए अधिकारियों ने बताया कि वहां जूते और चप्पलों के ढेर, कुचली हुई पानी की बोतलें, फटे हुए झंडे,
कपड़ों के टुकड़े और पार्टी पॉपर्स से बिखरे कागज हर तरफ पड़े हुए मिले।
इससे साफ था कि भीड़ ने नियंत्रण खो दिया था और प्रशासन व आयोजक दोनों ही लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहे।
करूड़ की यह घटना न सिर्फ राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गई है बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि बड़े राजनीतिक आयोजनों में सुरक्षा और प्रबंधन की व्यवस्था कितनी मजबूत है।
हाई कोर्ट ने जिस तरह पार्टी की जवाबदेही तय करने पर जोर दिया है, उससे साफ है कि यह मामला आने वाले दिनों में तमिलनाडु की राजनीति में और ज्यादा तूल पकड़ सकता है।

