जिला मुख्यालय पर हुआ बड़ा हादसा
करौली मेडिकल कॉलेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. दीक्षा सिरोही की मौत सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी का आईना है।
यह हादसा हुआ NH-23 (पुराना 11B) पर, जहां से जिला कलेक्टर का कार्यालय महज़ 50 मीटर और नगर परिषद 100 मीटर से भी कम दूरी पर स्थित है।
इसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिला परिषद, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और अन्य बड़े सरकारी दफ्तर मौजूद हैं। जिला मुख्यालय की लगभग सभी प्रमुख संस्थाएं इसी 100 मीटर के दायरे में सटी हुई हैं।
बावजूद इसके, उसी जगह पर एक डॉक्टर को अपनी जान गंवानी पड़ी, जो प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाता है।
अतिक्रमण हटाने में प्रशासन नाकाम
विडंबना यह है कि जिस मार्ग से कलेक्टर रोज़ाना निकलते हैं, वहां वर्षों से अतिक्रमण फैला हुआ है।
करौली में डेढ़ साल से बैठे कलेक्टर अब तक अपने ही ऑफिस के बाहर की सड़क को भी अतिक्रमण से मुक्त नहीं करवा सके। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि जिले में अफसर आखिर कर क्या रहे हैं?
ट्रक और कार चालक की लापरवाही अपनी जगह है, लेकिन इस मौत का असली जिम्मेदार जिला प्रशासन और नगर परिषद दोनों को ठहराया जा रहा है।
यह प्रशासनिक लापरवाही से हुई मौत है। आज एक डॉक्टर की जान गई है, कल कोई और इसका शिकार हो सकता है।
प्रशासनिक हत्या के आरोप
मौत ने इस बार सुर्खियां इसलिए बटोरी क्योंकि पीड़िता डॉक्टर थी, लेकिन अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि ऐसी नाकामियों ने अब तक कितनी अनसुनी जानें निगल ली होंगी।
यह प्रशासनिक हत्या करौली के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की असलियत को उजागर करती है।
नगर परिषद और जिला प्रशासन की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। शहर की मुख्य जगहें गंदगी और अव्यवस्था से पट चुकी हैं।
लेकिन चेयरमैन और कमिश्नर को इसकी परवाह नहीं। वहीं, जिला कलेक्टर नीलाभ सक्सेना की नाकामी इस हादसे के साथ पूरी तरह सामने आ चुकी है।
ताज़ा उदाहरणों से उजागर नाकामी
अभी हाल ही में मामचारी गांव की तस्वीरें चर्चा में आई थीं, जहां शवयात्रा निकालने के लिए ग्रामीणों को घुटनों तक पानी में उतरकर कच्चे रास्ते से गुजरना पड़ा।
प्रशासन वहां तक एक सड़क भी नहीं बनवा सका। यह घटनाएं करौली जिले की हकीकत और अफसरों की विफलता की गवाही देती हैं।