जीवित्पुत्रिका व्रत 2025: संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए माताएँ जो कठिन व्रत करती हैं, उनमें जीवित्पुत्रिका व्रत विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष यह व्रत रविवार, 14 सितंबर 2025 को रखा जाएगा। इसे जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म में इसे छठ पर्व के बाद सबसे कठिन व्रत माना जाता है क्योंकि इसमें माताएँ संपूर्ण दिन निर्जला यानी बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास करती हैं।
व्रत तीन दिनों की परंपरा से जुड़ा है – नहाय-खाय, निर्जला उपवास और पारण। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान पर किसी प्रकार का संकट नहीं आता और वह जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
हालाँकि, हर माता के लिए यह व्रत शुभ होता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में महिलाओं को यह व्रत नहीं करना चाहिए। आइए जानें वे कौन-सी महिलाएँ हैं:
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जीवित्पुत्रिका व्रत 2025: गर्भवती महिलाएँ
जीवित्पुत्रिका व्रत 2025: यदि कोई महिला गर्भवती है, तो उसे यह व्रत रखने से बचना चाहिए। जीवित्पुत्रिका व्रत का सबसे बड़ा नियम निर्जला उपवास है, जो गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु दोनों की सेहत के लिए जोखिम भरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में महिलाएँ केवल पूजन-विधि कर सकती हैं और संतान की मंगलकामना कर सकती हैं।
निसंतान महिलाएँ
जीवित्पुत्रिका व्रत 2025: यह व्रत संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए रखा जाता है। इसलिए धार्मिक मान्यता के अनुसार जिन महिलाओं की संतान नहीं है, उन्हें यह व्रत नहीं रखना चाहिए। हालांकि, क्षेत्रीय परंपराओं में भिन्नता देखने को मिलती है।
कई जगहों पर बुजुर्ग मानते हैं कि यदि निसंतान महिला जितिया व्रत रखे तो उसकी गोद जल्दी भर सकती है। ऐसे मामलों में घर के बड़ों की सलाह लेना उचित होता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2025: व्रत के दौरान अन्न-जल का सेवन हो जाने पर
जिन महिलाओं ने व्रत का संकल्प लिया है, लेकिन अनजाने में व्रत के दौरान अन्न या जल का सेवन कर लेती हैं, तो उनका व्रत खंडित हो जाता है। ऐसे में उन्हें व्रत जारी रखने के बजाय केवल पूजा-पाठ कर लेना चाहिए।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2025: कुल मिलाकर, जीवित्पुत्रिका व्रत भले ही मातृत्व की शक्ति और संतान-स्नेह का प्रतीक है, लेकिन स्वास्थ्य और धार्मिक नियमों को ध्यान में रखते हुए हर महिला को यह तय करना चाहिए कि यह व्रत उसके लिए उपयुक्त है या नहीं।