हादसे में 7 मासूमों की जान गई, 9 की हालत नाजुक
राजस्थान के झालावाड़ जिले में 25 जुलाई को एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 28 अन्य घायल हुए हैं।
घायलों में से 9 की हालत बेहद गंभीर बताई जा रही है। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही की मिसाल बन गई है, बल्कि सरकार की प्राथमिकताओं पर भी गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
शिक्षामंत्री का ठंडा बयान: “हजारों स्कूल जर्जर हैं”
इस भयावह हादसे के बाद राजस्थान के शिक्षामंत्री मदन दिलावर का बयान सामने आया जिसने कई लोगों को आहत किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में हजारों स्कूल जर्जर स्थिति में हैं और सभी की तुरन्त मरम्मत कर पाना संभव नहीं है।

यह बयान ऐसे समय आया है जब वे स्वयं डेढ़ साल से इस पद पर कार्यरत हैं, और सरकार को पहले से ही कई बार चेताया जा चुका था कि अनेक स्कूलों की स्थिति दयनीय है।
जर्जर भवनों पर चेतावनी के बावजूद कोई वैकल्पिक कदम नहीं
स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों ने कई बार सरकार को स्कूल भवनों की खस्ताहाली को लेकर चेताया था। इसके बावजूद ना तो समय पर मरम्मत कराई गई और ना ही किसी तरह की वैकल्पिक व्यवस्था की गई। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या प्रशासन को किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार था?
सिलेबस विवाद में करोड़ों का नुकसान, फिर भी बचाव की कोशिश
इसी जुलाई में दिलावर ने यह कहकर विवाद खड़ा किया था कि कक्षा 11 और 12 की पुस्तक कांग्रेस प्रेरित है, और उन्होंने उसे सिलेबस से हटा दिया।
चौंकाने वाली बात यह है कि यही पुस्तक हाल ही में शिक्षा विभाग ने उनके ही कार्यकाल में 2.5 करोड़ रुपये खर्च कर 5 लाख प्रतियों में छपवाई थी। जब सरकारी धन के नुकसान पर सवाल पूछा गया तो मंत्री ने कहा, अगर ज़हर खरीद लिया है तो क्या खा भी लिया जाए?

ढाई करोड़ में बन सकती थीं 25 से अधिक छतें
शिक्षामंत्री का यह बयान अब और ज्यादा आक्रोश पैदा कर रहा है क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि उसी राशि से राज्य के 25 से अधिक स्कूलों की छतों की मरम्मत हो सकती थी। यदि ऐसा होता तो शायद इन मासूमों की जान बचाई जा सकती थी। शिक्षा को लेकर सरकार की गंभीरता अब कटघरे में है।
सिलेबस बदलने में हुई देरी पर भी सवाल
अगर वाकई सिलेबस में गड़बड़ी थी तो फिर पिछले डेढ़ साल में उसे क्यों नहीं बदला गया? सरकार को सत्ता में आए दो साल होने को हैं, लेकिन अभी तक कांग्रेस शासन की पुस्तकें ही पढ़ाई जा रही थीं। इससे विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया है कि भाजपा सरकार में भी कांग्रेस की ही नीतियाँ लागू हैं।
शिक्षकों की मांगों पर वन्दे मातरम से दबाई गई आवाज
26-27 जून को हनुमानगढ़ में आयोजित शिक्षक संघ अधिवेशन में भी शिक्षामंत्री दिलावर विवादों में रहे थे। जब शिक्षकों ने वेतन और पदोन्नति से जुड़ी मांगों को लेकर नारे लगाए तो दिलावर ने मंच से ‘वन्दे मातरम’ के नारे लगवाकर उनकी आवाज दबा दी। शिक्षक नाराज़ थे कि पिछली सरकार की व्यवस्था अब भी जारी है।
डोटासरा का तंज: “हमारी ज्यादा चलती है”
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व शिक्षामंत्री गोविन्द डोटासरा ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा था कि भजनलाल सरकार में मंत्रियों से ज्यादा तो कांग्रेस के नेताओं की ज्यादा चलती है।
डोटासरा ने पहले भी सार्वजनिक रूप से अपील की थी कि शिक्षा विभाग किसी और को दे दिया जाए, भले ही मदन दिलावर को मुख्यमंत्री बना दिया जाए।
डोटासरा ने पेश किए भयावह आंकड़े: पूछा- बच्चों की जान जाने के बाद भी मंत्री इस्तीफा क्यों न दें?
राजस्थान में सरकारी स्कूल की छत गिरने से हुई मौतों के बाद कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द डोटासरा ने शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही को उजागर करने वाले कई आंकड़े सार्वजनिक किए हैं। उन्होंने कहा कि ये आंकड़े भाजपा सरकार की नाकामी पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं, जिनका जवाब जनता को मांगना चाहिए।
उदयपुर से चित्तौड़गढ़ तक खतरे में हैं हजारों बच्चों की ज़िंदगियाँ
डोटासरा ने बताया कि अकेले उदयपुर में 20 स्कूल ऐसे हैं जो कभी भी गिर सकते हैं। जिले में कुल 450 स्कूलों की मरम्मत जरूरी है, जिनके लिए बार-बार बजट मांगा गया, लेकिन कोई फंड जारी नहीं हुआ। इसी तरह चित्तौड़गढ़ में 562 स्कूल भवन जर्जर स्थिति में हैं, जिनमें पढ़ाई जारी है।
शिक्षा मंत्री के जिले में भी खतरनाक हालात
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के खुद के गृह जिले में एक स्कूल की छत से प्लास्टर गिरने से पाँच छात्र घायल हो गए थे, जिनमें दो गंभीर रूप से जख्मी हुए।
इन जर्जर स्कूलों की दीवारों पर केवल ‘यहाँ खतरा है’ की पट्टियां लगाकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा जा रहा है। यह स्थिति दर्शाती है कि मंत्री अपने ही जिले की शिक्षा व्यवस्था सुधारने में असफल रहे हैं।

इतने आंकड़े, शिकायतें, निवेदन होने के बाद भी शिक्षा विभाग ने फंड जारी नहीं किया व जब यह भयावह दुर्घटना घटी उसके बाद आनन फानन में 200 करोड़ जारी करने का दावा किया जा रहा है।
बांसवाड़ा और कोटा में भयावह स्थिति, फिर भी सरकार चुप
बांसवाड़ा जिले में 54 स्कूलों के 164 कमरे और 73 बरामदे बेहद खतरनाक स्थिति में हैं, लेकिन बजट अब तक जारी नहीं हुआ। आदिवासी बहुल इलाके में 2142 आंगनबाड़ियों में से 657 भवनविहीन हैं और 1390 की छतें टपक रही हैं। कोटा में भी अधिकांश आंगनबाड़ी भवनों की हालत खस्ता है, लेकिन सरकार ने अधिकतर का बजट मंजूर नहीं किया।
मुख्यमंत्री के जिले में भी नहीं थम रही लापरवाही
डोटासरा ने तंज कसते हुए कहा कि खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह जिले भरतपुर में नंदी घरों की छतें उद्घाटन से पहले ही टपकने लगी हैं। यह उदाहरण दर्शाता है कि पूरी राज्य व्यवस्था कितनी लापरवाह और खोखली हो चुकी है।
शिक्षक संगठनों ने जताया रोष, तकनीकी जांच की मांग
झालावाड़ हादसे पर शिक्षक संगठनों ने गहरा दुख जताया है। शिक्षक संघ शेखावत के अध्यक्ष महावीर सिहाग ने इसे पूरे तंत्र की विफलता बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानाचार्य लगातार जर्जर भवनों की जानकारी देते हैं।

लेकिन सरकार की तरफ से कोई सुनवाई नहीं होती। सिहाग ने मांग की कि स्कूलों की छतों की जांच तकनीकी कर्मचारियों द्वारा कराई जाए, क्योंकि शिक्षक केवल लक्षण बता सकते हैं, असली कारण तो विशेषज्ञ ही जान सकते हैं।
नई शिक्षा नीति से पहले बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता देने की जरूरत
शिक्षक संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाया कि नई शिक्षा नीति लागू करने और स्कूल बंद करने में जितनी तेजी दिखाई गई, अगर उतनी ही प्राथमिकता स्कूलों की मरम्मत को दी जाती, तो आज यह भयावह घटना नहीं होती। अब जबकि बच्चों की मौत हो चुकी है, तो जनता को तय करना होगा कि क्या मंत्री का पद पर बने रहना उचित है?
इस्तीफे की मांग तेज, मृतकों की संख्या और बढ़ने की आशंका
झालावाड़ की घटना के बाद पूरे प्रदेश में आक्रोश फैल गया है। मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इस बीच विपक्ष और आम जनता ने शिक्षामंत्री मदन दिलावर के इस्तीफे की मांग तेज कर दी है। यह हादसा अब एक प्रशासनिक विफलता और राजनीतिक संवेदनहीनता की प्रतीक घटना बन चुका है।