Jammu and Kashmir : दर्द-शीना जनजाति कश्मीर की प्राचीन जनजातियों में से एक हैं जो अपनी खास शिना भाषा और समृद्ध संस्कृति के लिए जानी जाती है। यह जनजाति जम्मू और कश्मीर के उत्तरी कश्मीर की गुरेज़ घाटी में रहती है, जो लाइन ऑफ़ कंट्रोल ( LOC ) के पास है।
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आधुनिकता के प्रभाव और ज़मीन हड़पने की कोशिश
प्राचीन काल से ही इनका अस्तित्व रहा है, जिसका उल्लेख हेरोडोटस जैसे प्राचीन लेखकों के ग्रंथों में मिलता है। आजकल यह समुदाय आधुनिकता के प्रभाव और ज़मीन हड़पने की कोशिशों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिसके लिए सांस्कृतिक केंद्र खोले जा रहे हैं और शिना भाषा को बढ़ावा भी दिया जा रहा है।
बटवारे के समय कबीले को काफी दर्द झेलना पड़ा
Jammu and Kashmir : दरअसल गुरेज़ घाटी कश्मीर के उस किनारे पर बसी है, जहां से जरा आगे बढ़ते ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) की हद शुरू होती हैं, लेकिन जब साल 1947 जब बटवारा हुआ तब सब कुछ बदल सा गया था।
बंटवारे के बाद ही बॉर्डर के उस पार से लोगों ने आकर कत्लेआम करना शुरू कर दिया। साथ ही रास्ते में जो भी गांव आये उन्हें भी जला दिया और महिलाओं से गैंगरेप कर बच्चों को भी मार दिया गया। ऐसा कहा जाता है की यह वही लोग थे जिनसे कभी गुरेज़ियों का रोटी-बेटी का रिश्ता हुआ करता था।
इस हमले के लिए कोई भी तैयार नहीं था कई हफ़्तों चलने वाली यह मारकाट भारतीय सेना के दखल देने के बाद समाप्त हुई। इसके बाद यह लोग सेना के साथ एकजुट होकर गांव के लिए काम करने लगे और भारतीय सेना भी यहाँ तैनात कर दी गई।
भारतीय सेना का कहइसी वजना है की यह लोग गुरेज़ी हैं न की कश्मीरी अगर यहां कोई भी नया चेहरा दिखता है तो लोगों द्वारा सेना को खबर कर दी जाती हैं। लाइन ऑफ़ कंट्रोल के नज़दीक होने के बावजूद इस गावं में घुसपैठिये नहीं आ सकते।
बुज़ुर्ग हो या नई पीढ़ी कश्मीरी से खुद को अलग मानते हैं
गुरेज़ भी कश्मीर का ही हिस्सा है पर उसके बावजूद आज तक विकास और उन्नति से दूर रहा हैं । यहाँ गांवों तक जाने वली सड़के और हाल ही में यहाँ छोटे मोटे अस्पताल भी शुरू हुए हैं।
ऐसा कहा जाता हैं की गुरेज़ी लोग दिल के बहुत अच्छे और साफ़ होते हैं वह अपने मेहमानो का बहुत ख्याल रखते हैं अगर कोई गरीब हो तो भी वह अपने मेहमान को बिना कुछ खिलाये नहीं जाने देते हैं फिर भले ही उन्हें कहीं से मांगकर लाना क्यों न पड़े।
बर्फ की वजह से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं
गुरेज़ में साल के कुछ छह महीने ऐसी ठण्ड और बर्फ पड़ती हैं जो सब कुछ लगभग जमा ही देती हैं जिस वजह से लोगों को बहुत मुश्किल होती हैं।
इस समय तापमान माइनस 20 डिग्री तक पहुंच जाता हैं इन छह महीनों के लिए इन्हे बहुत तैयारी करनी पड़ती हैं रोज़ चूल्हा जलाने के लकड़ियां पहले से ही जमा करनी पड़ती हैं।
इन छह महीनो में न कोई बाहर जा सकता है न कोई अंदर आ सकता हैं सर्दियों के समय में इन्हे घर के अंदर ही बंद रहना पड़ता हैं।
गुरेज़ी औरतों को कई तकलीफों का सामना करना पड़ता हैं
Jammu and Kashmir : गुरेज़ी लड़कियों को बचपन से ही भारी सामान उठाने के लिए तैयार किया जाता हैं ताकि आगे जाकर उनकी शादी में कोई परेशानी ना हों।
मर्द ज्यादा से ज्यादा जमींदारी (खेती का काम) कर लेते हैं। बाकी, घास काटना, लकड़ी लाना- सब औरतें के हिस्से है। गांव से बाहर जाने के लिए भी इन्हे मर्दों के झुंड के साथ जाना पड़ता हैं वह भी बिना सिर ढके नहीं जा सकती हैं।
फर्स्ट ऐड किट और दवाइयों का इस्तेमाल नहीं जानते
वेली में कई जगह हाल ही में हेल्थ केयर सेंटर भी खुले हैं। सैन्य अधिकारियों का कहना हैं कि वह ज्यादातर गांवों में हर महीने विजिट करते हैं। पीएचसी में दवाएं तो हैं, लेकिन उनका करना क्या है, ये बहुतों को नहीं पता आर्मी मेडिकल अकसर दवाइयों पर पर्ची लगाकर देते हैं।
इस गावं में एक ही छोटा सा अस्पताल है वो भी बहुत दूर है ज़्यादा समस्या होने पर कहीं और जाना पड़ता हैं, लेकिन सर्दियों में जब छह महीने सड़कें रुक जाती हैं, तब सैन्य मदद से चॉपर आते हैं, लेकिन वह भी जब मौसम ख़राब होता है मुमकिन नहीं हो पता हैं।