JAAT REVIEW: सालों पहले ‘दामिनी’ में “ये ढाई किलो का हाथ…” कहकर दर्शकों के रोंगटे खड़े करने वाले सनी देओल अब एक बार फिर उसी गुस्से, उसी जोश और उसी स्वैग के साथ लौटे हैं। फर्क बस इतना है कि इस बार लड़ाई उत्तर भारत में नहीं, बल्कि साउथ की ज़मीन पर हो रही है। 67 साल के सनी देओल ने ‘जाट’ फिल्म में अपने एक्शन अवतार से फिर यह साबित कर दिया है कि उम्र सिर्फ एक नंबर है—और उनका ये ढाई किलो का हाथ अब भी दर्जनों गुंडों को अकेले धूल चटा सकता है।
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JAAT REVIEW: जाट’ की कहानी क्या है?
फिल्म की शुरुआत होती है घने जंगलों में एक बेहद हिंसक और चौंकाने वाले एक्शन सीक्वेंस से। यहां राणातुंगा (रणदीप हुड्डा) अपने भाई सोमुलू (विनीत कुमार सिंह) और गिरोह के साथ मिलकर जवानों की गर्दन काटते नजर आते हैं। श्रीलंका से अवैध तरीके से भारत में घुसा राणातुंगा, आंध्र प्रदेश के 30 गांवों पर कब्ज़ा कर, उन्हें अपने आतंक का अड्डा बना देता है।
JAAT REVIEW: लेकिन जैसे ही अत्याचार की हदें पार होती हैं, ब्रिगेडियर बलदेव प्रताप सिंह (सनी देओल) की दमदार एंट्री होती है। एक किसान की पृष्ठभूमि से आया यह योद्धा पहले हाथ से इडली गिरा देने वाले गुंडों को सबक सिखाता है, फिर एक-एक कर पूरे माफिया नेटवर्क को ध्वस्त कर देता है—बिना किसी चालाकी या दिमागी खेल के, बस अपने गुस्से, पंच और एक्शन से।
फिल्म कैसी है?
‘JAAT REVIEW: जाट’ पूरी तरह से एक टिपिकल साउथ स्टाइल मसाला फिल्म है। डायरेक्टर गोपीचंद मलिनेनी ने इस बात को बखूबी समझा है कि दर्शक यहां लॉजिक ढूंढ़ने नहीं, बल्कि एंटरटेनमेंट का फुल डोज लेने आए हैं। इसलिए उन्होंने फिल्म में दमदार एक्शन, भावुकता, और पुरानी फिल्मों वाला “एक मसीहा बनाम अत्याचारी” फार्मूला खूबसूरती से पिरोया है।
कहीं-कहीं फिल्म का प्लॉट हद से ज्यादा ड्रामेटिक हो जाता है—जैसे राष्ट्रपति का एक बच्ची की चिट्ठी पढ़कर अचानक सीबीआई को ऐक्शन में भेजना—मगर इन बातों पर ध्यान देना इस फिल्म का मिजाज नहीं है।
JAAT REVIEW: अभिनय और किरदारों की बात करें तो…
सनी देओल अपने पूरे एक्शन फॉर्म में हैं। कैमरे के सामने उनकी एंट्री हो या गुस्से से भरा डायलॉग—हर बार तालियों की गूंज सुनाई देती है।
रणदीप हुड्डा ने राणातुंगा के किरदार को शुद्ध बर्बरता और ठंडे खून से निभाया है, जो हीरो को और भी प्रखर बनाता है।
रेजिना कैसेंड्रा, राणातुंगा की पत्नी के किरदार में, अपने हिस्से के दृश्यों में प्रभाव छोड़ती हैं, भले ही कुछ सीन जरूरत से ज्यादा खिंचे हों।
संयामी खेर और विनीत कुमार सिंह जैसे कलाकारों को फिल्म में पर्याप्त स्पेस नहीं मिला, जो थोड़ा खलता है।
तकनीकी पहलू
JAAT REVIEW: फिल्म की सिनेमेटोग्राफी (ऋषि पंजाबी) शानदार है—विशेषकर जंगल के दृश्यों और क्लोज-अप्स में। एक्शन को भव्य तरीके से शूट किया गया है, लेकिन थमन एस का संगीत अपेक्षा से कमजोर है। वहीं एडिटिंग (नवीन नूली) को और कसावट की ज़रूरत थी—फिल्म लंबी महसूस होती है।
क्या देखनी चाहिए ‘जाट’?
अगर आप 80-90 के दशक की एक्शन से भरी फिल्मों के दीवाने हैं, और सनी देओल को फिर उसी रोल में देखना चाहते हैं, तो ये फिल्म आपके लिए है। लेकिन अगर आप लॉजिक, सॉफिस्टिकेशन और कहानी में गहराई खोजते हैं, तो ये अनुभव थोड़ा थका सकता है।