Iran Israel War:नमस्कार, आज हम बात करेंगे एक ऐसी कहानी की, जो ईरान की इस्लामिक बर्बरता का जीवंत दस्तावेज है। यह कहानी है आतिफा रजबी सहालेह की।
एक 16 साल की मासूम लड़की, जिसे ईरान के नेका शहर में, इस्लामिक शरिया के नाम पर, फांसी की रस्सी पर लटका दिया गया।
यह कहानी सिर्फ आतिफा की नहीं, बल्कि उस व्यवस्था की है, जो मानवता को कुचलकर, औरतों को गुलाम बनाकर, बच्चों को कुर्बान करके अपनी सत्ता को चमकाती है।
यह कहानी है इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की, जो अपने ही लोगों को, अपनी ही बेटियों को, क्रूरता की भेंट चढ़ाता रहा है।
Iran Israel War: आतिफा रजबी सहालेह। याद रखिए यह नाम। एक ऐसी लड़की, जिसने अपने 16 साल के छोटे से जीवन में दुखों का वो पहाड़ देखा, जो हम और आप शायद कभी कल्पना भी न कर सकें।
वो 1987 में ईरानी शहर नेका में पैदा हुई थी। छोटी सी उम्र में मां-बाप का तलाक हो गया। वो पांच साल की ही थी जब उसकी मां की कार हादसे में मौत हो गयी। छोटा भाई नदी में डूब गया। पिता नशे की लत में डूब गया।
और आतिफा? उसके नाजुक कंधों पर आ गई घर की जिम्मेदारी, वो अपने बूढ़े दादा-दादी की देखभाल करती रही, जिन्होंने उसे कभी प्यार नहीं दिया। लेकिन आतिफा नहीं हारी।
वह जीवन से भरी बुद्धिमान लड़की थी। वो सपने देखती थी। लेकिन उसे क्या पता था, कि उसके सपनों को इस्लामिक शरिया बेरहमी से कुचल डालेगा?
13 साल की उम्र। सोचिए, 13 साल की उम्र में आप क्या कर रहे थे? स्कूल जा रहे थे? दोस्तों के साथ हंस रहे थे?
लेकिन आतिफा को उस उम्र में जेल की सलाखें नसीब हुईं। उसका गुनाह क्या था? बस यह कि वो एक लड़के के साथ कार में पाई गई थी। बस इतना ही।
Iran Israel War: ईरान के इस्लामिक शरिया ने इसे “शीलभंग” का नाम दिया। उसे 100 कोड़े मारे गए। जेल में उसे प्रताड़ित किया गया। जेलर ने उसके साथ बलात्कार किया।
उसके शरीर में इतना दर्द था कि आतिफा ने अपनी दादी से कहा, “दादी, मैं सिर्फ हाथ-पैर के बल चल सकती हूं।” लेकिन किसी ने नहीं सुना। क्योंकि इस्लामिक शरिया में औरत की चीखें सुनने की कोई जगह ही नहीं है।
दो बार और उसे गिरफ्तार किया गया। दो बार और कोड़े मारे गए। और फिर मई 2003 में, उसे उसके घर से घसीटकर ले जाया गया। इस बार आरोप था “व्यभिचार” और “अनैतिकता”। सबूत?
सिर्फ पुलिस और स्थानीय अधिकारियों की रिपोर्ट। कोई गवाह नहीं। कोई ठोस आधार नहीं। लेकिन इस्लामिक शरिया को सबूतों की जरूरत कहां होती है? उसे तो बस कुर्बानी चाहिए।
आतिफा का केस सुनने वाला था हाजी रेजाई। इस जज के लिए शरिया का पाषाणयुगीन कबीलाई कानून ही सबकुछ था। आतिफा ने कोर्ट में सच बोला।
उसने कहा कि 51 साल का अली दराबी, एक शादीशुदा पूर्व रिवोल्यूशनरी गार्ड, पिछले तीन साल से उसके साथ बलात्कार कर रहा था।
लेकिन क्या हुआ? कोर्ट ने उसकी बात को अनसुना कर दिया। जब आतिफा को लगा कि उसका सच दबाया जा रहा है, तो उसने हिम्मत दिखाई।
उसने अपना हिजाब उतार फेंका और अपने जूते जज की ओर दे मारे। उसने चीखकर कहा, “सजा मुझे नहीं, बलात्कारी दराबी को मिलनी चाहिए!” लेकिन इस्लामिक शरिया में औरत की सफाई की कोई अहमियत ही नहीं है।
हाजी रेजाई ने आतिफा को फांसी की सजा सुना दी। उसके वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी वही हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “तीन बार दोषी ठहराई जा चुकी है, सजा बरकरार रहेगी।” और सबसे शर्मनाक बात?
आतिफा की उम्र को 22 साल बताया गया। क्यों? क्योंकि जज ने उसके “विकसित शरीर” को देखकर उम्र का अंदाजा लगाया। उसके जन्म प्रमाण पत्र को, उसके पिता की गवाही को, सबको नजरअंदाज कर दिया गया।
15 अगस्त 2004 को नेका की सड़कों पर एक क्रेन खड़ी थी। उस क्रेन से लटक रही थी 16 साल की आतिफा। उसे सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई। सैकड़ों लोग देख रहे थे।
लेकिन कोई नहीं चीखा, किसी ने नहीं रोका। क्योंकि इस्लामिक शरिया का डर सबके दिलों में बैठा था। आतिफा की आखिरी सांस के साथ, ईरान ने अपनी मानवता को भी फांसी दे दी।
ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। उसमें साफ लिखा है कि 18 साल से कम उम्र के किसी बच्चे को फांसी नहीं दी जा सकती।
लेकिन आतिफा को नाबालिग होने के बावजूद फांसी दी गई। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इसे मानवता के खिलाफ अपराध कहा। दुनिया भर के बच्चों के खिलाफ अपराध। लेकिन क्या इस्लामिक देश ईरान को शर्म आई? नहीं।
आतिफा की फांसी के बाद अंतराष्ट्रीय दबाव में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं जरूर हुईं। उसके परिवार की शिकायतों और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण हाजी रेजाई और कुछ मिलिशिया अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया। आतिफा को मरणोपरांत क्षमा दे दी गई।
लेकिन क्षमा? किस काम की वो क्षमा, जो एक मासूम की जान लेने के बाद दी जाए? आतिफा की चीखें आज भी ईरान के आसमान में गूंज रही हैं। और यही नहीं, आतिफा का शाप ही है, जो आज ईरान को भस्म कर रहा है।
देखिए ईरान को आज, अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और आसमान से मिसाइलें गिर रही हैं, राजधानी तेहरान सुनसान पड़ी है, इमारतें जमींदोज हो रही हैं, राष्ट्राध्यक्ष जान बचाने के लिए छिपने को मजबूर हैं।
यह आतिफा का ही शाप है। यह हर उस मासूम का शाप है, जिसे इस्लामिक शरिया ने कुचला। यह हर उस औरत का शाप है, जिसकी आवाज को दबाया गया।
इस्लामिक शरिया। एक ऐसा कानून, जो औरत को इंसान नहीं, माल समझता है। एक ऐसा कानून, जो 13 साल की बच्ची को कोड़े मारता है और 16 साल की बच्ची को फांसी पर लटकाता है।
एक ऐसा कानून, जो बलात्कारी को बचाता है और पीड़िता को फांसी देता है। इसे कानून कहना गलत होगा, यह कबीलाई बर्बरता है, पत्थर युग की क्रूरता है।
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान यह एक ऐसा देश है, जो अपनी बेटियों को कुर्बान करके, अपनी सत्ता को बचाने की कोशिश करता रहा है।
लेकिन आतिफा की चीखें ही ईरान की सत्ता को इस बार जड़ से उखाड़ फेंकेंगी। आतिफा का शाप ईरान को जला रहा है। और इस बार हमला इजरायल ने किया है।
इजराइल ईरान के साथ वही करेगा जो उसने पिछले 3 दशकों में फिलिस्तीन, इराक, लेबनान, जॉर्डन, इजिप्ट जैसे देशों के साथ किया है।
Iran Israel War: जिसने भी इजराइल के खिलाफ हथियार उठाया, वो देश बर्बाद हो गया, वहां क्रांति आई, और सत्ता भी पलटी। आतिफा की शहादत ईरान पर भी कयामत बनकर आएगी।
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