Impeachment motion: दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज, जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ा एक बड़ा अपडेट सामने आया है। अब केंद्र सरकार की ओर से उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाए जाने की संभावना है।
यह फैसला उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जाँच समिति की रिपोर्ट के बाद आई है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पूर्व चीफ जस्टिस (CJI) संजीव खन्ना की सिफारिश को राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष को भेज दिया है।
इस सिफारिश में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की बात कही गई थी।
जानकारी के मुताबिक, महाभियोग प्रस्ताव संसद के आगामी मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। मानसून सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह तक शुरू होने की उम्मीद है।
सरकार इस मामले पर विपक्षी दलों से भी सहमति बनाने की कोशिश करेगी, क्योंकि किसी जज को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित करना होता है।
जानें क्या है पूरा मामला?
मामला जस्टिस यशवंत वर्मा पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से जुड़ा है। 14 मार्च 2025 को उनके सरकारी आवास पर आग लगने के दौरान बड़ी मात्रा में कैश मिलने की बात सामने आई थी। इन आरोपों की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च 2025 को एक तीन सदस्यीय आंतरिक समिति का गठन किया था।
इस समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस अनु सिवरमन शामिल थीं।
समिति ने कई गवाहों के बयान दर्ज किए और 3 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को विश्वसनीय पाया गया।
रिपोर्ट सामने आने के बाद, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को जांच रिपोर्ट भेजते हुए जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की।
हालाँकि, जस्टिस वर्मा से इस्तीफा देने को कहा गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्हें 20 मार्च 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया था और उन्होंने 5 अप्रैल 2025 को वहाँ जज के रूप में शपथ ली, लेकिन उन्हें अभी तक कोई काम नहीं सौंपा गया है।
हाल ही में, 26 मई 2025 को, सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जस्टिस वर्मा पर समिति की रिपोर्ट माँगने वाली एक याचिका को भी खारिज कर दिया था।
कैसे काम करती है महाभियोग की प्रक्रिया?
संविधान के अनुसार, किसी संवैधानिक अदालत के न्यायाधीश को केवल गलत व्यवहार साबित होने पर या ‘अक्षमता’ के आधार पर ही हटाया जा सकता है। न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 में इसके लिए पूरी प्रक्रिया बताई गई है।
प्रस्ताव पेश करना- किसी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों और राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन से ही पेश किया जा सकता है।
जाँच समिति का गठन- यदि किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो अध्यक्ष/सभापति एक तीन सदस्यीय जाँच समिति का गठन करते हैं।
रिपोर्ट और बहस- यदि समिति जज को दोषी पाती है, तो उसकी रिपोर्ट सदन द्वारा अपनाई जाती है और फिर जज को हटाने पर बहस होती है।
वोट और राष्ट्रपति का आदेश- सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के लिए, लोकसभा और राज्यसभा दोनों में ‘उपस्थित और वोट करने वाले’ कम से कम दो-तिहाई सदस्यों को हटाने के पक्ष में वोट करना होता है।
साथ ही, पक्ष में वोटों की संख्या प्रत्येक सदन की ‘कुल सदस्यता’ के 50% से अधिक होनी चाहिए। यदि संसद ऐसा वोट पारित कर देती है, तो राष्ट्रपति जज को हटाने का आदेश जारी करते हैं।
अब देखना होगा कि सरकार इस मामले पर किस तरह आगे बढ़ती है और क्या संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित हो पाता है।